देह
साँझक लुकझुकमे लाल भौजीकेँ घामसँ नहाएल धरफड़ाएल चल अबैत देखलियनि। रुकलहुँ। पुछलियनि- “भौजी अहाँ? ”
“की पुछैत छी! मंगल छै से हनुमानजी मन्दिर गेल रही। बुझलिऐ नै, साँझ भऽ गेलै। ”
हुनका डेराएल देखि कऽ कहलियनि- “से ठीके! सुनसान सड़कपर लुटपाट बढ़ि गेल छै। ”
अपन शरीर दिस देखैत कहलनि- “से कोन गहना पहिरने छी? ..कोन रुपैय्या रहैए?... ”
“तखन? ”
“तखन? अहाँ की बुझबैक!...मौगीक लेल देहे जंजाल छै!”
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