Thursday, April 12, 2012

देवता :: जगदीश मण्‍डल


देवता

मनुक्खक रोम-रोममे ईश्वर परब्रह्म समाएल छथि। ककरो अहित करैक इच्छा करब अपना लेल पापकेँ बजाएब थिक। दधीचिक पुत्र पिप्लाद अपन माइक मुँहे अपन पिताक हड्डी देवता द्वारा मांगब आ ओइसँ बनाओल बज्रसँ अपन पराण बचाएब सुनलनि। सुनिते पिप्लादकेँ देवताक प्रति असीम घृणा मनमे उठलनि। मने-मन सोचए लगलथि जे अपन स्वार्थ साधैले दोसरक प्राण हरब, कत्ते नीचता थिक। मनमे क्रोध जगलनि। पिताक बदला लेबा लेल पिप्पलाद तप करैक विचार केलनि।
पिप्पलाद तप शुरू केलनि। तप शुरू करिते मनक ताप कमए लगलनि। बहुत दिनक उपरान्त भगवान शिव प्रकट भऽ कहलखिन- वर मांगू?”
प्रणाम कऽ पिप्पलाद शिवकेँ कहलखि‍न- अपने अपन रुद्र रूप धारण कऽ ऐ देवता सभकेँ जरा कऽ भस्‍म कऽ दियौक।
पिप्पलादक बात सुनि शिव स्तब्ध भऽ गेलाह। मुदा अपन वचन तँ पूरब पड़तनि। तँए देवताकेँ जरबए लेल तेसर आँखि खोलैक उपक्रम करए लगलथि। ऐ उपक्रमक आरंभेमे पिप्पलादक रोम-रोम जरए लगल। अपन अंगकेँ जरैत देखि‍ जोरसँ हल्ला करैत शिवकेँ कहए लगलखिन- भगवान, ई की भऽ रहल अछि? देवताक बदला हम खुदे जरि रहल छी।
मुस्की दैत शिव कहलखिन- देवता अहाँक देहमे सन्हिआएल छथि। अवयवक शक्ति हुनके सामर्थ्‍य छियनि। देवता जरता आ अहाँ बँचल रहब से केना हएत? आगि लगौनिहार स्वयं सेहो जरैत अछि।
पिप्पलाद अपन याचना घुमा लेलनि। तखन भगवान शिव कहलखिन- देवता सभ ति‍यागक अवसर दऽ अहाँ पिताक काजकेँ गौरवान्वित केलनि। मरब तँ अनिवार्य थिक। ऐसँ ने अहाँक पिता बँचितथि आ ने वृत्तासुर राक्षस।
पिप्पलादक भ्रम टूटि गेलनि। ओ आत्म कल्याण दिस मूड़ि‍ गेलाह।

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