शिष्टाचार
एकटा इनारपर चारिटा पनि-भरनी पानि भरैले आएल छलि। एक्केटा
डोल छलै तँए एक गोटे पानि भरैत छलि आ तीन गोटे गप-सप्प करैत छलि। सभ अपन-अपन
बेटाक बड़ाइ करैत। पहिल औरत बाजलि- “हमर बेटाक आवाज एत्ते मधुर अछि जे रजो-रजवारमे ओकरा सम्मान भेटतै।”
दोसर कहलकै- “हमरा बेटाक शरीरमे एत्ते तागति अछि जे नमहर भेलापर बड़का-बड़का पहलमानकेँ पटकत।”
तेसर बाजलि- “हमर बेटा एहेन तेजगर अछि जे सभ साल इस्कूलमे फस्ट करैए।”
मुड़ी निच्चाँ केने चारिम कहलक- “आने बच्चा जकाँ हमर बेटा साधारण
अछि।”
पनिभरनी सभ इनारपर गप-सप्प करिते छल आकि स्कूलमे छुट्टी
भेलै। अबैत-अबैत चारूक बेटा इनार लग देने गुजरैत रहए। एकटा गीत गबैत दोसर कूदैत-फनैत,
तेसर किताब खोलि किछु पढ़ैत छल। चारिम पाछू-पाछू चुपचाप अबैत छल। इनार लग अबिते चारिम
अपन माएक भरल घैल माथपर लऽ लेलक आ माएक हाथमे अपन बस्ता दऽ देलक। आगू-पाछू दुनू माए-बेटा
आंगन विदा भेल।
इनारे लग
एकटा बुढ़िया बैसल सभ बात सुनैत छलि। ओ चारू पनिभरनीकेँ रोकि, कहलक- “ई चारिम
लड़का जे अछि ओ सभसँ नीक अछि। एकर शिष्टाचार सभसँ नीक छै।”
No comments:
Post a Comment