जते चोट तते सक्कत
कोशाम्बीक राजा शूरसेनसँ मंत्री भद्रक पुछलकनि- “राजन, अपने श्रीमंत थिक। राकुमारक
शिक्षाक लेल एकसँ एक विद्वान् रखि सकै छिऐ। तहन अपने ऐ पुष्प सन बच्चाकेँ वन्य प्रदेशमे
बनल गुरुकुलमे किअए पठबैत छियनि? जइठाम सुविधाक घोर अभाव छै। एहेन कष्टमय जीवनचार्यामे बच्चाकेँ
पठाएब उचित नै?”
मंत्रीक विचार सुनि मुस्कुराइत शूरसेन उत्तर देलखिन-
“हे भद्रक, जहिना आगिमे तपौलासँ
सोना चमकै छै तहिना कष्टपूर्ण जीवनचर्यासँ मनुख बनैत अछि। कष्टे मनुखकेँ धैर्य, साहस
आ अनुभव दइ छै।
वातावरणक प्रभाव सभसँ बेसी नव उमेरक बच्चेपर पड़ैत अछि।
ऋृषि सम्पर्क आ कष्टमय जिनगी राजमहलमे थोड़े भेट सकैत अछि। ऐठाम तँ हम ओकरा भोगिये-विलासी
बना सकै छी। जँ क्षणिक मोहमे पड़ब तँ ओकर भविष्ये चैपट्ट भऽ जेतै। तँए ओकर उज्ज्वल
भविष्यक लेल गुरुकुल पठाएब उचित अछि।”
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