Saturday, July 21, 2012

विहनि कथाकार परिचय श्रृखंला भाग-13





मिथिलेश कुमार झा

जन्म---१२-१-१९७०केँ मातृक मनपौर ( मधुबनी )मे,
मूल गाम- जगति ( मधुबनी)
पिता- श्री विश्वनाथ झा, माता स्व. हीरा देवी
प्रकाशित कृति---- टीस ( विहनि कथा संग्रह )

Wednesday, July 18, 2012

विहनि कथाकर परिचय श्रृंखला भाग-12


वैकुंठ झा


जन्म--- चैत 1952


गाम--- सन्नहपुर ( दरभंगा )

प्रकाशित कृति ---- समय-संदर्भ-सोपान ( कविता संग्रह-1996, ) बुझनुक ( विहनि कथा-2001), संपादन नवतुरिया ( कानपुरसँ प्रकाशित पत्रिका )

Tuesday, July 17, 2012

विहनि कथाकर परिचय श्रृंखला भाग-11


श्री राज

जन्म---17/7/1950

गाम-- लोहना, मधुबनी
मूल नाम--- श्री राजेन्द्र झा

शिक्षा---B.A

प्रकाशित कृति--- ऐ अकाबोनमे ( कविता संग्रह )

विशेष---- विहनि कथा शब्दक प्रतिपादन सहयोगी। 50सँ बेसी विहनि कथाक लेखन आ ओहोमेसँ अनेको प्रकाशित।




ई परिचय मुन्ना जीक सहयोगसँ बनल अछि।...

Monday, July 16, 2012

विहनि कथाकर परिचय श्रृंखला भाग-10


चंडेश्वर खाँ


जन्म---15/2/1957


शिक्षा---B.A


गाम मेहँथ ( मधुबनी )


करीब 100सँ बेसी विहनि कथाक लेखन आ ओहिमेसँ कतेको पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित।






ई परिचय मुन्ना जीक सहयोगसँ बनल अछि।...

Saturday, July 14, 2012

विहनि कथा- इशारा

विहनि कथा- इशारा

चर्र .र . र . . ।केबार खुजल ।एकटा कारी साया घर मे प्रवेश केलक ।लड़खड़ाइत डेग ।पूरा घरमे सस्तौआ शराबक गंध पसरि गेल ।घरक एगो कोणमे दाबालपर माँछ-बाँस पारल छल आ ओकर नीचा अहिबातक दिपमे लाल साड़ी चमकि रहल छल ।लाल साड़ी बाली नारी ओहि कारी साया के खसैत देख दौड़ल ।धम्म . . . ।जा धरि पहुँचल ता धरि पिठे भरे खसल छल ओ साया ।ओ नारी पाँजमे पकड़ि उठेलक ओ सक्कत देह बाला मर्दके आ बैसेलक कोहबरक ओछेनपर ।घंटो पंखा हौँकलक तखन जा क' होश एलै ओ मर्द के ।मुदा इ की? होश आबिते नोचि लेलक कानक बाली । हँसैत बाजल-काल्हि एहिसँ दारू पियब । नाक पर साड़ि राखने छल ओ नारी ।मुदा अपन गहना लेल बिरोध केलक ।अथक बिरोध ।एकर बराबर सजा देलकै ओ बेदर्दी मर्द ।ओ नारीके पिठपर लाठी के भारि चामके लाल क' देने छलै ।ठोर आ कानसँ खून बहि रहल छल ।अचेत पड़ल ओ नारी सोचि रहल छल ।एहि जीवनमे एहिसँ बड़का दुख भेटतै इ त' मात्र दुखक पहाड़ के तरफ एकटा छोट इशारा छलै ।

अमित मिश्र

Friday, July 13, 2012

विहनि कथाकार परिचय श्रृंखला भाग-9


शिव कुमार झा टिल्लु



पिताक नामः स्व. काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘, माताक नामः स्व. चन्द्रकला देवी,जन्म तिथिः 11-12-1973,शिक्षाः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थानः मातृक- मालीपुर मोड़तर, जि. - बेगूसराय, मूलग्रामः ग्राम-पत्रालय - करियन, जिला - समस्तीपुर, पिन: 848101,संप्रतिः प्रबंधक, संग्रहण,जे. एम. ए. स्टोर्स लि.,मेन रोड, बिस्टुपुर जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधिः वर्ष 1996 सँ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार-प्रसार हेतु डॉ. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्वमे संलग्न। प्रकाशित कृति: क्षणप्रभा-कविता-संग्रह, अंशु-समालोचना। ऐ के अतिरिक्त विहनि कथामे प्रयासरत।



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Thursday, July 12, 2012

मसोमात


चारि बरखक बाद, गामक माटि-पानि जेँ देहमे बहि रहल अछि हिलकोर मारलक  तँ सभ काज-बाज छोरि नोकरीसँ सात दिनक छुट्टी लए  कए गाम बिदा भेलहुँ | जेना-जेना गामक दुरी  कम भेल जए तेना-तेना हृदयक बेग आओर गामक माटिक गंध दुनू तेज भेल जए | ट्रेन आ बसक यात्रा क्रमसँ  खत्म भेला बाद गामक चौकसँ पएरे गाम हेतु बिदा भेलहुँ जेकर दुरी करीब एक किलोमीटर रहै | ओनाहितो असगर, समानक नामे  कन्हापर एकटा बैग आ दोसर गाम देखक लौलसा, रिक्सा छोरि पएरे चलैक लेल प्रेरित कएलक |
अपन  टोलमे प्रबेश करिते सभसँ पहिले छोटकी काकी पर नजैर परल | ओना गामक सम्बन्धमे ओ हमर बाबी लगैत छलथि मुदा गाममे सभ कियो हुनका छोटकी काकी कहि सम्बोधित करैत छलनि तइँ हमहूँ  हुनका छोटकी   काकी कहैत छलियैन | उज्जर पढ़िया सारी पहीरने आँचरसँ माथ आ एकटा खूटसँ नाक तक मुँह झपने | रस्तासँ आँगन जाइत  घरक कोन्टापर ओहो हमरा देखलथि, जा हुनका गोर लागि आशीर्वाद लेलहुँ |
"केँ... बच्चू" छोटकी काकीकेँ मुँहसँ खडखराइत अबाज निकलल
"हाँ काकी "
"कहीया एलअ"
"एखन आबिए रहल छी काकी "
"एसगरे एलअ हेँ "
"हाँ "
"आ दिल्लीमे कनियाँ, धिया-पुता सब ठीक"
"अहाँक आशीर्वादसँ सभ कुशल-मंगल, अहाँक की समाचार नीके छी ? "
ई प्रश्न सुनिते हुनका आँखिसँ नोर झहरअ लगलनि नोर रोकैक असफल प्रयास करैत, " कि बौआ, एहि मसोमातकेँ की नीक आ की बेजए, बेजए तँ ओहि दिन भए गेलहूँ जहिया अहाँक काका नबाड़ियेमे छोरि स्वर्ग चलि गेला, आब तँ एहि बुढ़ारीमे कियोक धूओ नहि देखए चाहैए, देखलासँ सभकेँ अमंगल होएत छैक | नहि जानि बिधाता एहि अभागनिकेँ आओर कतेक ओरदा देने छथि | आइ  महीनोंकेँ बाद ककरोसँ दूमुँह गप्प केलहुँ आ कियो हमरो द पुछलक ....."
ई  कहैत काकी अपन नोरकेँ नुकबैत कोन्टासँ अँगना दीस चलि गेली आ हमहूँ  गामक जिनगीक, बिधबा, मसोमात, बुढ़ारी सोचैत आगु  बढ़ि गेलहुँ |  

*****
जगदानन्द झा 'मनु'
   

Wednesday, July 11, 2012

विहनि कथाकार परिचय श्रृंखला भाग-8


राजदेव मंडल







शिक्षा- एम.ए.द्वय, एल एल बी.,पता- ग्राम-मुसहरनियाँ, रतनसारा (निर्मली, मधुबनी)। प्रकाशित कृति- अम्बरा- (कविता संग्रह), हमर टोल (उपन्यास) आ संगे-संग अनेक विहनि कथा एवं आलेख प्रकाशित।




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Tuesday, July 10, 2012

विहनि कथाकार परिचय श्रृंखला भाग-7


उमेश मंडल

गाम---बेरमा

ई ने मात्र कविता लीखै छथि आ ने मात्र विहनि कथा। जँ हिनक प्रतिभा देखबाक हो तँ मिथिलाक वनस्पति स्लाइड शो , मिथिलाक जीव-जन्तु स्लाइड शो , मिथिलाक जिनगी स्लाइड शो, आदिमे देखू जे की मैथिलीमे पहिल तरहक प्रयोग अछि आ ई एहन प्रयोग अछि जे बहुत कम्मे आदमी कए पबैत छथि।


प्रकाशित कृति: निश्तुकी- कविता संग्रह (2009), मिथिलाक संस्कार गीत, विध-व्यवहार गीत आ गीतनाद (संकलन)



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Saturday, July 7, 2012

विहनि कथाकार परिचय श्रृंखला भाग-6


ज्योति सुनीत चौधरी



महिला विहनि कथा लेखनमे अग्रणी भूमिका। विहनि कथाक अतिरिक्त जापानी काव्य विधापर केन्द्रित कार्य



जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।



ई परिचय मुन्ना जीक सहयोगसँ बनल अछि।...

Friday, July 6, 2012

ई नोर छै गरीबी के


प्रस्तुत अछि नवल श्री जीक ई विहनि कथा


दक्षिण-पूब भर सँ अटूट मेघ घेरैत देखि बुधनी पूवैर बाधक एकपेरिया बाट पर नमहर-नमहर डेग झटकारने घर दिश विदा भेल. माथ पर घासक छिट्टा, कांख तऽर थोड़ सुखैल राहटक जारैन आ खोइंछ में नुका धेने छल सात-आठ टा रस्फट्टू आम जे अबैत काल बाट में बिछने छल अल्हुआ वला खेत लगका कलकतिया आमक गाछ तर सँ.. गाम परहक चिंता जान खेने जा रहल छलै. सात वरखक बेटा बंटी के घरे पर छोड़ि आयल छल. ओना ओ तऽ छाल छोड़ेने छल बाध अबै लेल मुदा रौद तेहन ने चंडाल उगल छलैक जे बुधनी के मोन नहि मानलकै आ ओकरा सुगिया काकी अंगना छोडि आयल छल. बुधनी के सभ सँ बेशी चिंता अहि गप्पक छलै जे जों ओकरा घर पर पहुंचै सँ पहिने वरखा शुरू भ गेलै तऽ जुलुम भऽ जेतै. चिपरी सभ बाहरे में सुखाइत छलै आ अंगना में खुद्दी सेहो पसारल छलै...आ हाँ चार पर बिरियो तऽ देने छलै बना कऽ सुखाई लेल, सभटा चौपट भऽ जेतै.. विचारक अहि उथल-पुथल में अगुताइल भागल जैत छल घर दिश.

घर पहुँचते देरी छिट्टा अंगना में पटकि पहिने बंटी के शोर पारलक. ता धरि तऽ एकदम गुप्प अन्हार भऽ गेल छलैक आ जोड़-जोड़ सँ बिजलोका लोकय लागल छलै. संगहिं मेघ सेहो ढन-ढन गरज लागल छलै. बुधनी हडबडा कऽ सभटा काज करय लागल. आ बंटी... ओहो पाछू कियैक रहत..! ओहो छोटकी पथिया में चिपरी समेट कऽ उठाब लागल. कने कालक बाद खूब जोड़ सँ वरखा शुरू भऽ गेलै. बुधनी बंटी के लऽ कऽ दौड़ कऽ घर दिश भागल...मुदा ताहि सँ की..? घर की कोनो अंगना सँ नीक छलै..! सड़ल खऽर... मोनो नहि जेऽ कैऽ वरख भऽ गेल छलै छड़वेला. कोरो-बाती सेहो सड़ल-गलल. ओहिना टुक-टुक मेघ देखाइत...! राति कऽ बंटी घरे में बैसले-बैसल चंदा मामा सँ बतिया लैत छल आ तरेगन सँ खूब लुका-छिपी खेलैत छल. सौंसे घर में गर-गर पाइन चुबैत. कनिए काल में घर पाइन सँ भरि कऽ डबरा भऽ गेल. बुधनी छिपिया लऽ पाइन उपछ लागल. ओ पाइन उपछैत-उपछैत अप्सियांत भेल छल. आ बंटी.... ओकरा लेखे केहनो सन नहि....आ रहबे कियैक करतैक...? ओ तऽ कागतक नाह बना घर में अई कोन सँ ओई कोन धरि बहा कऽ आनंद सँ विभोर भऽ रहल छल.

कने कालक पश्चात जहन खेलाइत-खेलाइत बंटी थाकि गेल तऽ नाह के ओहिना पाइने में हेलैत छोडि बुधनी के कोरा में जा बैसल आ बाजल माय गे भूख लागल अछि, किछु खाई लेल दे ने...! बुधनी एक दू बेर तऽ अन्ठेलक मुदा जहन बंटी छाल छोड़बय लागल तऽ बुधनी चिनवार पर बासन सभ के उनटा-पुन्टा कऽ देख लागल. किछु नहि भेटलैक...किछु रहतैक तहन ने भेटतै. मुदा बंटी कियैक मानत..आ फेर जे माइन गेल से नन्ने की..? बुधनी अकबकैल ओकर मूंह तकैत छल तखने कोठिक गोड़ा पर राखल मरुआ रोटिक एकटा टुकड़ी पर ओकर नजरि गेलै. बुधनी मोन पारय लागल जे कहिया के छियैक.... हाँ मोन पड़ल परसुए भोर में तऽ बनने छलियैक.. बुधनी ओ मरुआ रोटी पर थोड नून आ सुखायल अचार धऽ बंटी के दऽ देलकै. बंटी मगन भऽ खाय लागल. नेनाक चंचल मोन तऽ देखू…खाइत-खाइत बंटी बाजल माय गेऽ दू टुकड़ी पियाउज दे ने..! बुधनी सौंसे घर ढुरलक तऽ आधा टा पियाउज भेटलै.. ओ पियाउज सोहि बंटी के देबय लागल....!

बुधनिक आंखि में नोर भरि गेलै. बंटी माय के मुंह दिश तकलक तऽ बाजल…की भेलऊ माय कियैक कने छिही. नहि तऽ कहाँ कनैत छी हम. नहि-नहि फेर नोर कियैक बहि रहल छौ. मोन खराब छौ की.. माथ दुखाई छौ, हम जाइंत दियौ...? नहि बउआ किछु नहि भेलै हमरा. हमरा कियैक माथ दुखैत…? ई सुनि बंटी चहकि कऽ बाजल... ओहो आब बुझलियौ तों पियाउज कटलहिन्ह हैं तैं तोरा आंखि सँ नोर बहैत छौ - छैऽ नेऽ..? बुधनी मोने-मोन सोचे लागल जे बउया तोड़ा कोना कहियौ जेऽ ई नोर माथ दुखेबाक कारणे आ की पियाउज कटबाक कारणे नहि बहि रहल अछि.... इ नोर...इ नोर तऽ गरीबी केर छैक. मुदा बुधनी सभटा दर्द अपना मोन में समेटने विरोगे लोल कोंचियाबैत आ जबरदस्तिये कनी मुस्कियैत बाजल "हाँ बउया पियाउज कटलियै तहि दुआरे नोर बहय लागल...! बंटी मायक ई गप्प सुनि ठिठिया कऽ हंसल आ मरुआ-रोटी-नून-अचार पियाउजक टुकड़ी संगे खाय में मगन भऽ गेल. गाल पर नोरक सुखायल धार नेने बुधनी के ओकर नेनपनक सत्य आ सुन्दर छवि देखि अजीब सन संतोषक अनूभूति भऽ रहल छलय..!!!

***इति श्री***

< पंकज चौधरी (नवलश्री) >
< ०५.०७.२०१२ >

Tuesday, July 3, 2012

रहस्य



बाबा-बाबीक विवाहक चालीसम बर्खगांठ | दुनू गोटे अपन सम्पूर्ण परिवारक बिच घेरएल  बैसल | चारूकात एकटा खुशीक वातावरण बनल | सभकेँ मुँहपर हँसी आ प्रशन्ता झलकि रहल छल | बाबीक पंद्रह बरखक पोती, बाबीक गरदनिपर पाछूसँ लटकि कए झुलति पुछलक,  "बाबी एकटा गप्प पुछू |'
बाबी,  " हाँ पूछै"
पोती, "बाबा-बाबी हम अहाँ दुनूकेँ कहियो झगडा करति नहि देखलहुँ, एकर की रहस्य छैक |"
बाबी लजाइत अपन पोतीकेँ कन्हासँ उतारैत, "चल पगली, एकरा ई की फुरा गेलै |"
बाबीक छोटका बेटा, "नहि माए ई तँ  हमरो बुझैक अछि, ओनाहितो हमर नव-नव ब्याह भेलए ई मन्त्र तँ चाहबे करी |"
बाबी, " चल निर्लज, सब एक्के रंगक भए गेलै, अपन बाबूसँ पूछै हुनका सब बुझल छनि |"
छोटका बेटा बाबूसँ , "हाँ बाबू अहीँ कहु न अपन सफल विवाहिक जीवनक रहस्य | हमहूँ अहाँ दुनूमे  कहियो झगड़ा नहि देखलहुँ, ई मन्त्र हमरो दिअ  न ' ( अपन कनियाँ दिस देख कए) देखू ने निर्मल तँ  सदिखन हमरासँ लड़िते रहैत अछि |"
बाबा, एकटा बड्डकाटा साँस लैत जेना अतीतकेँ देखैक प्रयास कए रहल छथि | छोटकाकेँ माथपर सिनेहसँ हाथ फेरैत  बजला, "एकरा कियो झगडा कहैत छैक ? अहाँ दुनूमे जे सिनेह अछि ओहिमे किछु नोक-झोंक भेनाइ  सेहो आवश्यक छैक | जेना भोजनमे चटनी, जीवनमे सब पक्षक अपन-अपन महत्व छैक मुदा हाँ ई मात्र नोक-झोंक तक रहवा चाहि झगडा नहि, नहि तँ  एहिसँ आगू जीवन नर्क भए जाइत छैक | पती पत्नीक  बिचक आपसी सम्बन्ध नीक अछि तँ  स्वर्गक कोनो जरुरी नहि आ यदि सम्बन्ध नीक नहि अछि तँ  नर्कक कोनो आवश्यकता नहि ओहि अवस्थामे ई जीवने नर्क अछि |"
सभ कियो एकदम चूप एकाग्रतासँ हुनक गप्प सुनैत | चुप्पीकेँ तोड़ैत  बाबा आगू बजलाह,  "रहल हमर आ तोहर माएकेँ बिचक सम्बन्ध तँ  ई बहुत पुरान गप्प छैक, जखन हमर दुनूकेँ ब्याह भेल आ हम दुनू एक दोसरकेँ पहिल बेर देखलहुँ तखने हम तोहर माएसँ वचन लेलहुँ जे जखन हमर मोन तमसेए  तँ  ओ नहि तमसेती आ जखन हुनकर मोन तमसेतनि तखन हम नहि तमसाएब | बस ओ दिन आ आइ  धरि  हमरा दुनूकेँ बिच नोक-झोंक भेल झगडा कहियो  नहि |"
*****
जगदानन्द झा 'मनु'