यथार्थक बोध
शिखिध्वज ब्रह्मज्ञानी बनए चाहैत रहथि। ओ सुनने रहथि
जे तियाग आ वैराग्यसँ मनुख ब्रह्मज्ञानी बनैत अछि। तँए शिखिध्वज घर-परिवार छोड़ि जंगलमे
कुटी बना रहए लगलथि। ओइ वनमे तपस्वी शतमन्यु सेहो रहै छलखिन। शतमन्युकेँ पता लगलनि
जे एकटा नवांकुर घर-परिवार छोड़ि कुटी बना रहैत अछि।
शतमन्यु आबि शिखिध्वजकेँ कहलखिन- “गामक घर-गिरहस्ती उजारि वनमे
वएह सभ सरंजाम जुटबैमे लागि गेलौं, तइसँ की लाभ? वैराग्य तँ अहंता आ लिप्सासँ हेबाक चाही। जँ भऽ सकए तँ
घरेमे तपोवन बना सकै छी।”
शतमन्युक
विचार सुनि शिखिध्वजकेँ वास्तविकताक बोध भऽ गेलनि। ओ घुमि कऽ घर आबि परिवारक बीच रहि
सेवा-साधनामे जुटि गेलाह। शिखिघ्वज एकांकी मुक्तिक जगह सामूहिक मुक्तिक मार्ग अपनौलनि।
हुनके वंशमे बाल्यखिल्य ऋृषि भेलखिन, जे सौंसे जम्वूद्वीपकेँ देवभूमि बना देलखिन।
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