Thursday, April 12, 2012

एकता :: जगदीश मण्‍डल


एकता

एकटा पैघ भवनक निर्माण होइत छलैक। निर्माणस्थल लग एक भाग पजेबा, दोसर भाग बालु, तहि‍ना लकड़ी, सि‍मटी, चून इत्यादि जमा छल। ढेरीसँ पजेबा बाजल- अकास ठेकल कोठा हमरेसँ बनत, तँए कोठाक श्रेय हमरे भेटक चाही।
पजेबाक बात सुनि सिमटी आ बालु प्रतिवाद करैत कहलकै- तोँ झूठ बजै छेँ। तोरा ई नै बुझल छौ जे एकसँ दोसर पजेबाक बीच जँ हम नै रहबौ तँ तूँ ढनमनाइते रहमे। संगे तोरा इहो नै बुझल छौ जे जत्ते दूर तक तोँ जेमे तत्ते दूर तक हमहूँ संगे जेबौ आ तोरोसँ ऊपर हमहीं सुइत क रक्षो करबौ।
बालु आ सिमटीक बात सुनि खिड़की आ केबाड़ीक लकड़ी तामसे थरथराइत कहलकै- तोरा तीनू बूत्ते बड़ हेतौ तँ देबाल बनि जेमे, मुदा बिना हमरे ने छत बनि सकमे आ ने मुँह-कान चिक्कन हेतौ। जाबे हम नै रहबौ ताबे कुत्ता-बिलाइक घर रहमे।
सभ सामानक बीच कटौझ चलैत छल। कारीगर चाह पीबि‍ बीड़ी सुनगेलक। बिड़ियो पीऐ छल आ मने-मन हँसबो करै छल। जखन भरि मन बीड़ी पीलक, मूड साफ भेलै, तखन तीनूकेँ चुप करैत कहलक- अगर तूँ सभ मिलाने क लेमे, तइसँ की हेतौ? जाबे हम नै इलमसँ तोरा सभकेँ बनेबौ ताबे ओहिना माटिपर पड़ल रहमे आ कौआ-कुकुड़ आबि-आबि गंदा करैत रहतौ।
सबहक विचार सुनि निर्णए करैत भवन कहलकै- अपना-अपना जगहपर सबहक महत छौ। मुदा जाबे एक-दोसरसँ मेल कए कऽ नै रहमे ताबे भवन नै कहेमे। अोहिना पजेबा, सिमटी, चून, लकड़ी रहमे। तँए अपन-अपन बड़प्पन छोड़ि मिलानक रास्ता पकड़ जइसँ कल्याण हेतौ।

No comments:

Post a Comment