Wednesday, April 11, 2012

तियाग :: जगदीश मण्‍डल


तियाग

सत्संग, भागवत आ प्रवचनमे बेर-बेर तियागक महिमाक चर्चा होइत अछि‍। ति‍यागकेँ ईश्वर प्राप्तिक रास्ता बताओल जाइत। बेर-बेर जरायुध ऐ चर्चाकेँ सुनथि‍। तँए मनमे बिसवास भऽ गेलनि जे सत्ते तियागसँ ईश्वर प्राप्ति होइत छै। जरायुध अपन सभ सम्पति‍ दान कऽ देलखिन। मुदा दान केलोपरान्त हुनका ने मनमे शान्ति एलनि आ ने ईश्वर भेटलनि। निराश भऽ जरायुध महाज्ञानी शुकदेव लग पहुँचि‍ पुछलखि‍न- जनक तँ संग्रही छलाह मुदा तैयो हुनका ब्रह्मज्ञान प्राप्ति भऽ गेल छलनि आ हम सभ कि‍छु तियागियोकेँ ने ब्रह्मज्ञान पाबि सकलौं आ नहि‍येँ शान्ति भेटल। एकर की कारण छै?”
धि‍यानसँ जरायुधक बात सुनि सुकदेव उत्तर देलखिन- आवश्यक वस्तुकेँ परमार्थमे लगा देब तँ नैतिक आ सामाजिक कर्तव्य बुझल जाइत। आध्यात्मिक स्तरक ति‍यागमे सभ वस्तुक ममत्व छोड़ि ओकरा ईश्वरक घरोहर बुझए पड़त। शरीर आ मन सेहो सम्पदा छी। ओकरा ईश्वरक अमानत मानि हुनके इच्छानुसार केलापर बुझबै जे सही ति‍याग भेल आ मोक्षक रास्ता भेटत।

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