Thursday, April 12, 2012

स्वर्ग आ नर्क :: जगदीश मण्‍डल


स्वर्ग आ नर्क

विद्यालयक ओसारपर बैस गुरु आ शिष्य गप-सप्‍प करैत रहथि। एकटा शिष्य गुरुसँ स्वर्ग आ नर्कक संबंधमे पुछलकनि। शिष्यकेँ बुझबैत गुरु बजलाह- स्वर्ग आ नर्क अही धरतीपर अछि। जे कर्मक अनुसार अही जिनगीमे भेटै छै
गुरुक उत्तरसँ शिष्य संतुष्ट नै भेल। शंका बनले रहलै। पुनः गुरुसँ अपन शंका व्यक्त केलक। गुरु बुझलनि जे बिना बेवहारिक जिनगी देखौने शिष्य संतुष्ट नै हएत। ओ उठि शिष्य सभकेँ संग केने गाम दिस विदा भेलाह।
गाममे एकटा बहेलियाक घर छलै। ओइठाम पहुँचते सभ देखलक जे पेट-पोसैक लेल बहेलिया जीव-हत्या कऽ रहल अछि। ततबे नै, जीव हत्यो केने ने देहपर वस्त्र छै आ ने भरि पेट भोजन भेटै छै। धि‍यो-पुतोक देहपर माछी भिनकै छै। एक्को क्षण ओतए रहैक इच्छा ककरो नै होइत छलैक। चुपचाप गुरुजी शिष्यक संग ओतएसँ विदा भ गेलाह। दोसर ठाम पहुँचला। ओ बेश्याक घर छलै। युवावस्थामे ओ बेश्या खूब पाइयो कमेने छलि आ भोगो केने छलि। मुदा बुढ़ाड़ीमे आबि अनेको रोगोसँ ग्रसित भ परिवारो-समाजोसँ तिरस्कृत भेल छलि‍। पेटक दुआरे भीख मंगैत छलि। सभ कि‍यो देखि‍ ओतएसँ विदा भ गेलाह।
तेसर परिवार गृहस्तक छल। जइठाम जा सभ देखलखिन जे गृहस्त जेहने संयमी छथि तेहने परिश्रमी। स्वभावसँ उदार आ सद्गुणी सेहो छथि। जइसँ परिवार सुख-समृद्धिसँ भरल-पूरल छलैक। गृहस्तक परिवार देखि‍ गुरुजी शिष्यक संग आगू बढ़ि चारिम परिवारमे पहुँचलाह। पोखरिक मोहारपर एकटा संत कुटी बनौने रहथि। शिक्षा आ प्रेरणा पबैक लेल दिन-राति समाजक लोक अबैत-जाइत रहै छल। संतजी मस्त-मौला जिनगी बितबैत रहथि‍। ने मनमे एक्को मिसिया क्रोध आ ने कोनो तरहक चिन्ता।
चारू परिवार देखि‍ शिष्यक संग गुरुजी विद्यालय दिस चललाह। रास्तामे शिष्यकेँ कहलखिन- पहिल जे दुनू परिवार देखलि‍ऐ ओ नरकक रूपमे छल आ बादक जे दुनू परिवार देखलि‍ऐ ओ स्वर्गक रूपमे।

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