डर नै करी
उगैत सुरुज जकाँ जिनगी अपन दिशामे अपना ढंगसँ बढ़ैत जा
रहल छल। एक विरामपर जा जिनगी पाछू मुँहे घुमि कऽ तकलक तँ चौंक गेल। चंडालिनी सन
कारी आ कुरुप छाया पाछू-पाछू अबैत छल। छायाकेँ देखि जिनगी ललकारि कऽ पुछलक- “अभागिनी, तोँ के छेँ? हमरा पाछू-पाछू किएक अबै छेँ? तोहर कारी आ कुरुप काया देखि
हमरा डर होइए। जो भाग। हमरासँ हटि कऽ रह।”
छाया छिप गेल। मुदा जिनगी घिंघयाइत बढ़ल। पुनः छाया आबि
कहलकै- “बहिन, हम तोहर सहचरी छियौ। तोरे
संग हमहूँ चलि रहल छी। आ अंतमे दुनू गोटे संगे रहब। तँए डरैक कोनो बात नै। तोँ हमरा
नै चिन्है छेँ, हमरे नाओं मृत्यु थिक।”
मृत्युकेँ
पाछू लगल अबैत देखि जिनगी डरि गेल। सकपका कऽ गिर पड़ल।
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