Thursday, April 12, 2012

खलीफा उमरक सि‍नेह :: जगदीश मण्‍डल


खलीफा उमरक सि‍नेह

खलीफा उमर गुलामक संग बूलैले देहात दिस जाइत रहथि। किछु दूर गेलापर देखलखिन जे एकटा बुढ़िया जोर-जोरसँ अंगनमे बैस कानि रहल अछि। रास्तासँ ससरि ओ डेढ़ियापर जा ओइ‍ बुढ़ियासँ कनबाक कारण पुछलखिन। हिचुकैत बुढ़िया कहए लगलनि- हमर जुआन बेटा लड़ाइमे मारल गेल। हम भूखे मरै छी मुदा एक्कोदिन खलीफा उमर खोजो-खबरि लइले नै आएल।
बुढ़ियाक बात सुनि उमर चोट्टे घुमि‍‍ घरपर आबि एक बोरी गहुम अपने माथपर लऽ बुढ़िया ओइठाम विदा भेलाह। माथपर गहुमक बोरी देखि‍ गुलाम कहलकनि- अपने बोरी नै उठबि‍यो। हमरा दिअ लेने चलै छी।
गुलामकेँ उमर जबाब देलखिन- हम अपन पापक बोझ उठा खुदाक घर नै जाएब तँ पाप केना कटत? अहाँ तँ हमरा पापक भागी नै हएब।
गहुमक बोरी बुढ़ियाक घर उमर पहुँचा देलखिन। गहुम देखि‍ बुढ़िया नाओं पुछलकनि। मुस्कुराइत उमर जबाब देलखिन- हमरे नाओं उमर छी
अासिरवाद दैत बुढ़िया कहलकनि- अपन परजाक दुख-दरदकेँ अपन परिवारक दुख-दरद जकाँ बूझि कऽ चलब तखने आदर्श बनि सकब। जखन आदर्श बनब तखने हजारो-लाखो लोकक दुआ भेटत आ अमर हएब

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