Thursday, April 12, 2012

देश सेवाक व्रत :: जगदीश मण्‍डल


देश सेवाक व्रत

सुभाषचन्द्र बोस बच्चे रहथि। एक दिन सुतली रातिमे माए लगसँ उठि निच्चाँमे सुतए लगला। बेटाकेँ निच्चाँमे सुतैत देखि‍ माए पुछलखिन जे एना किएक करै छी?
सुभाष जबाब देलखिन- माए, आइ स्कूलमे मास्टर साहेब कहने छेलखिन जे हमर पूर्वज ऋृषि-मुनि जमीनेपर सुतबो करथि आ कठिन मेहनतो करैत छलाह। हमहूँ ऋृषि बनब। तँए कठिन जिनगी जीबैक अभ्यास शुरू कऽ रहल छी।
सुभाषचन्द्रक पिता जगले रहथिन। सभ बात सुनि सुभाषकेँ पिता कहलखिन- बेटा, जमीनेपर सूतब टा पर्याप्त नै होइत छैक। एकरा संग-संग ज्ञानोक संचय आ मनुखोक सेवा आवश्यक अछि। आइ माइये लग सूति रहू, जखन नमहर हएब तखन तीनू काज संगे करब।
सिर्फ शिक्षकेक बात नै पितोक बातकेँ सुभाष गीरह बान्हि लेलनि। आई.सी.एस. केलाक उपरान्त जखन नोकरीक बात सोझामे एलनि तखन ओ कहलखिन- हम जिनगीक लक्ष्य तँइ कऽ लेने छी। नोकरी नै करब। मातृभूमिक सेवा करब।

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