Thursday, April 12, 2012

बेवहारिक :: जगदीश मण्‍डल


बेवहारिक

जीवनी आ अनाड़ी माने बेवहारि‍क आ अबेवहारिकक प्रश्न असान नै। ऐ विशाल संसारमे लाखो-करोड़ो ढंगक जिनगी बना लोक जीबैत अछि। एकक जिनगी दोसरसँ मिलबो करैत आ भिन्नो होइत। तँए एकक बेवहारिक ज्ञान दोसराक लेल नीको होइए आ अधलो।
चारि आदमी स्नातक महाविद्यालयसँ निकलि गाम जाइत रहथि। चारूकेँ अपन-अपन ज्ञानपर गर्व रहनि‍। दुपहर भऽ गेल छल। सभकेँ भूख लगलनि। रास्तामे रूकि खाइक ओरियानमे चारू गोटे जुटि गेलाह। तर्कशास्त्री चि‍क्कस अानए दोकान गेलाह। पोलीथीनक झोरामे चि‍क्कस कीन अबैत छल। मनमे फुड़लनि‍ जे झोरा मजगूत अछि की नै। तथ्य जनबाक लेल झोराकेँ हाथसँ दबलनि‍। झोरा फाटि गेल। चि‍क्कस छिड़िया कऽ माटिमे मिलि‍ गेल। फेर घुमि‍ कऽ चाउर कीन ओरिया कऽ लेने एलाह।
कलाशास्त्री जारन अानए गेल छलाह। हरिअर-हरिअर सुन्दर गाछ देखि‍ मुग्ध भऽ गेलाह। गाछसँ सुखल जारन नै तोड़ि काँचे झाड़ी काटि कऽ लेने आएल एलाह।
कहुना-कहुना कऽ तेसर पाक-शास्त्री वएह कँचका जारन पजारि बटलोही चढ़ौलथि‍। अदहन जखन भेलै तँ चाउर लगौलथि‍। कनियेँ कालक बाद बटलोहीमे चाउरो आ पानियो खुद-बुद करए लगल। बटलोहीमे खुद-बुद करैत देखि‍ पाक-शास्त्री मग्न भऽ गेलाह। चारिम जे व्याकरण जननिहार छलाह बटलोहीक खुद-बुद अवाज देखि‍-सुनि व्याकरणक उच्चारणक हिसाबसँ गलत बूझि, तमसा कऽ ओकरा उल्टा देलखि‍न। सभटा भात चूल्हिमे चलि गेल। एक गोटे सभ तमाशा देखैत रहथि‍। चारूकेँ भूखल देखि‍ दया लगलनि‍। ओ अपन मोटरीसँ नून-सत्तू निकालि चारू गोटेकेँ खाइले दैत बजलाह- किताबी ज्ञानसँ बेवहारिक अनुभवक मूल्य अधिक होइत छैक

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