Thursday, April 12, 2012

मजूरी :: जगदीश मण्‍डल


मजूरी

एक दिन गाड़ीक प्रतीक्षामे लियो टाल्सताय स्टेशनपर ठाढ़ रहथि। एकटा अमीर परिवारक महिला, साधारण आदमी बूझि हुनका कहलकनि- हमर पति सामनेबला होटलमे छथि। अहाँ जा क हुनका ई चिट्ठी द अबियनु। ऐ काजक लेल दू आना पाइ देब।
चिट्ठी लेने टाल्सताय होटल जा दऽ देलखिन। घुमि‍ क आबि अपन कमेलहा दू आना पाइयो ल लेलनि। कनीकालक बाद एकटा अमीर आदमी आबि, प्रणाम कऽ टाल्सतायसँ गप-सप्‍प करए लगल। ओ आदमी हुनकासँ नम्रतापूर्वक गप्प करैत। गप-सप्‍पक क्रममे ओ आदमी टाल्सतायकेँ आदर सूचक शब्द काउंट सँ सम्बोधित करैत रहनि‍। बगलमे बैसल ओ महिला सभ कि‍छु देखैत-सुनैत। ओ महिला एक गोटेकेँ पुछलक- ई के छथि?”
ओ आदमी लियो टाल्सतायक नाओं कहलखिन। टाल्सताइक नाओं सुनि ओ महिला, टाल्सताय लग आबि क्षमा मांगि अपन दुनू आना पाइ घुमा दइले कहलकनि। हँसैत टाल्सताय उत्तर देल- बहिन जी, ई हमर मजूरीक पाइ छी। एकरा हम किन्नहु नै घुमाएब।

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