Thursday, April 12, 2012

आलस्य वनाम पिशाच :: जगदीश मण्‍डल


आलस्य वनाम पिशाच

वन विहार करैले वासुदेव, बलदेव आ सात्यकि घोड़ापर चढ़ि निकललाह। घनघोर जंगल रहने तीनू गोटे रास्तामे भटकि गेलाह, जाइत-जाइत एहेन सघन वनमे पहुँचि‍ गेलथि जइठामसँ ने पाछू होएब बननि आ ने आगू बढ़ब। मुन्हारि साँझ भ गेल गेल छलै। अन्हारमे चलब आरो कठिन भऽ गेलनि। अचताइत-पचताइत तीनू गोटे अटकि गेलाह। एकटा झमटगर गाछ छलैक जहिक निच्चाँमे घोड़ा बान्हि तीनू गोटे राति बितबैक कार्यक्रम बनौलनि। खाइ-पीबैले किछु रहबे ने करनि तँए गाछेक निच्चाँमे दूबिपर सुतैक ओरियान केलनि। मुदा मनमे शंका होइत रहनि जे जँ तीनू गोटे सूति रहब आ घोड़ा कियो खोलि कऽ ल जाए? तीनू गोटे वि‍चारलनि जे एक-एक पहर जागि अपनो आ घोड़ोक ओगरबाहि‍ कऽ लेब आ बेरा-बेरी सूतियो लेब।
पहरा करैक पहिल पारी सात्यकिक भेलनि‍। वासुदेव आ बलदेव सूति रहला। सात्यकि जगल रहलाह। कनी-कालक बाद गाछपर सँ पिशाच उतरि‍ सात्यकिकेँ मल्लयुद्ध करए लेल ललकारलक। ओहने उत्तर सात्यकियो देलक। दुनूक बीच घुस्सा-घुस्सी हुअए लगल। सौंसे पहर दुनूक बीच मल्लयुद्ध चलैत रहल। सात्यकिक देहमे चोटो लगलैक, छालो ओदरलै। पहर बीत गेल।
दोसर पारी बलदेवक आएल। सात्यकि सूति रहल। बलदेव पहरा करए लगल। थोड़े कालक बाद पिशाच पुनः आबि चुनौती देलकनि। बलदेवो ओहने उत्तर देलकै। पिशाचक आकार सेहो नमहर भ गेल छलै। दुनूक बीच मल्लयुद्ध शुरू भेल। पिशाच बलदेवोकेँ दुरगति क देलकनि। दोसरो पहर बीतल। तेसर पहरक पारी वासुदेवक छलनि। पुनः पिशाच आबि हुनको चुनौती देलकनि। मुदा वासुदेव हँसबो करथि‍ आ कहबो करथिन- बड़ मजगर अहाँ छी। निन्न आ आलससँ बचबाक लेल मित्र जकाँ मखौल करै छी।
पिशाचक बल घटए लगलै। आकारो छोट होइत गेलै। भिनसर भेल। नित्यकर्मसँ तीनू गोटे निवृत्ति भ चलैक तैयारी करए लगलथि। तखन सात्यकि आ बलदेव अपन रतुका चरचा करैत जतए-जतए चोट लगल रहनि सेहो देखोलखिन। हँसैत वासुदेव कहलखिन- ई पिशाच आरो किछु नै छी। ई मात्र कुसंस्कार रूपी क्रोध छी। ओकरो ओहने प्रत्युत्तर भेटलै तँए बढ़ैत गेल। मुदा जखन ओकरा उपेक्षाक रूपमे देखलि‍ऐ तखन ओ छोट आ दुर्बल भ गेल।

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