Wednesday, April 11, 2012

आठलाखक कार

कलुआही जयनगर राजमार्ग, बरखाक समय, पिचक काते-कात खधिया सभमे पानि भड़ल | दीनानाथजी आ हुनक जिगरी दोस्त रामखेलाबनजी, दुनू गोटा अपन-अपन साईकिलपर उज्जर चमचमाईत धोती-कूर्ता पहिर, पान खाइत, मौसमकेँ आनन्द लैत बतियाइत चलि  जाइत रहथि | कि पाछुसँ एकटा नव चमचमाईत बड्डका एसी बुलेरो कार दीनानाथजीकेँ  उज्जर धोती-कूर्तापर थाल-पानि उड़बैत दनदनाईत आगू निकैल गेलन्हि |
दुनू दोस्तक साईकिल एका-एक रुकल | रामखेलाबनजी हल्ला करैत कारबलाकेँ  गरिएनाइ शुरू केलन्हि |
दीनानाथजी,  "रहए दियौ दोस्त किएक अपन मुँह खराप करै छी, एसी कारमे बंद ओ  कि सुनत, भागि गेल | ओनाहो ओ आठ लाखक कारपर चलैत अछि, हम आठ सएकेँ  साईकिलपर छी तँ  पानि- थालक छीत्ता तँ हमरे परत |"

No comments:

Post a Comment