आत्मबल-२
जइ समैमे डाॅक्टर राधाकृष्णन कओलेजमे
पढ़ति रहथि, घटना ओइ समैक छी। काॅलेजमे पादरी शिक्षक अधिक।
एक दिन एकटा प्रोफेसर, क्लासेमे हिन्दू धर्मक निन्दा
खुलायाम केलनि। बालक राधाकृष्णन सेहो क्लासमे रहथि। प्रोफेसरक बातसँ हुनका एते क्रोध
भेलनि जे सम्हारि नै सकलाह। उठि कऽ ठाढ़ होइत पुछलखिन- “महाशय, की इसाई धर्म आन धर्मक
निन्दा केनाइ सिखबैत अछि?
राधाकृष्णनक प्रश्न सुनि ओ तमसा कऽ बाजलाह- “आैर की हिन्दुधर्म दोसराक प्रशंसा
करैत अछि।”
राधाकृष्णन जबाब देलखिन- “हँ, हम्मर धर्म कोनो धर्मक अधलाह नै करैत अछि। गीतामे कृष्ण कहने
छथिन ‘कोनो देवताकेँ उपासना केलासँ हमरे उपासना होइत अछि।’ आब अहीं कहू जे हम्मर धर्म
ककर निन्दा करैत अछि।”
प्रोफेसर
निरुत्तर भऽ गेलाह।
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