Wednesday, April 11, 2012

सद्वि‍चार :: जगदीश मण्‍डल


सद्वि‍चार

एकटा न्यायप्रिय राजा साधुक भेषमे अपन प्रजाक कुशल-क्षेम बुझए लेल निकललथि। जहिया कहियो ओ राजा साधुक भेषमे निकलथि तहिया सिर्फ एकटा मंत्रीकेँ चेलाक रूपमे संग कऽ लथि। ने अंगरक्षक रहनि आ ने अमिला-फमिला आ ने ककरो जानकारी देथिन।
बहुतो गोटेसँ सम्पर्क करैत राजा एकटा बगीचामे पहुँचलाह। ओइ बगीचामे एकटा वृद्ध किसान नवका -बच्चा- गाछ रोपैत रहथि‍। गाछ देखि‍ राजा किसानकेँ पुछलखिन- ई तँ अखरोटक गाछ बूझि पड़ैत अछि।
मुस्कुराइत किसान कहलकनि- हँ भैया, अहाँक अनुमान बिलकुल ठीक अछि।
बीस-पच्चीस बर्खक गाछ भेलापर अखरोट फड़ैत छै, ताधरि अहाँ जीबते रहब?”
ऐ बगीचाकेँ हमर बाप-दादा लगौने छथि। खून-पसीना एक कए कऽ एकरा पटौलनि, देखभाल केलनि। जेकर फड़ हम सभ खाइ छी। तँए आब हमरो कर्तव्य बनैत अछि जे ओते हमहूँ रोपि दिऐक। अपनेटा लेल गाछ लगौनाइ तँ स्वार्थक बात भऽ जाइत छै। हम ई नै सोचै छी जे आइ ऐ गाछक उपयोगिता की छै? भविष्यमे दोसरकेँ फल दइ वस यएह इच्छा अछि।
किसानक विचार सुनि राजा मंत्रीकेँ कहलखिन- जँ एहि‍ना सभ बुझए लगै जे हमरा लगबैसँ मतलब अछि तँ समाजो आ परिवारोमे सद्ि‍वचार पसरि जाएत। जाधरि समाजमे सद्-वृत्ति‍क प्रसार नै हएत ताधरि नीक समाज बनब, मात्र कल्पना रहत।

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