Thursday, April 12, 2012

विधवा बि‍आह :: जगदीश मण्‍डल


विधवा बि‍आह

राजस्थानक इतिहासमे हठी हम्मीरक विशेष स्थान अछि। ओ एहेन जिद्दी छल जे जे उचित बुझै छलै, करै छल। भलहिं कतबो विरोध आ निन्दा किअक ने होय। जखन हम्मीर बि‍आह करै जोकर भऽ गेल तखन बि‍आहक चरचा शुरू भेल। विद्यार्थिये जीवनमे हम्मीर विधवाक दुर्दशाकेँ गहराइसँ अध्ययन केने छल। पढ़ैयेक समए संकल्प क लेने छल जे हम विधवे औरतसँ बि‍आह करब। हम्मीरक बि‍आहक चरचा पसरलै। मुदा हम्मीर एकदम संकल्पित छल जे विधवेसँ बि‍आह करब। कुटुम परिवार सभ हम्मीरपर बिगड़ै मुदा तकर एक्को पाइ गम नै। पंडित सबहक माध्यमसँ परिवारबला कहबौलक जे विधवा अमंगल सूचक होइत तँए एहेन काज नै करक चाही। मुदा हम्मीर ककरो बात सुनैले तैयारे नै।
एकटा बाल-विधवाकेँ हम्मीर देखलक। विधवाकेँ देखि‍ हृदए पसीज गेलै। तखने ओइ विधवाकेँ हम्मीर कहलक- हम अहाँसँ बि‍आह करब। भलहिं परिवारक कतबो विरोध हुअए।
हम्मीरक बात सुनि विधवा खुशीसँ अह्लादित भ उठल। हम्मीर बि‍आहक दिन तँइ क कुटुम-परिवार आ पुरहित-पंडितकेँ छोड़ि अपन संगी-साथी आ सैनिक सभकेँ संग केने जा बि‍आह कऽ लेलक।
जखन हम्मीर मेबारक शासक बनल तखन सभ विरोधी सहयोगी बनि गेलै। पंडित सभ घोषणा केलक- विधवा नास्ति अमंगलम्।

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