Thursday, April 12, 2012

समता :: जगदीश मण्‍डल


समता

गुरुकुलमे जे विद्याध्ययन होइत ओ अमृत सदृश होइत। किएक तँ ओ साधनाक नै उच्च स्तरीय आदर्शक निर्माण करैत। ऐ हेतु गुरुकुलक छात्र उपभोगकेँ नै उपयोगक महत सत्-प्रयोजनक लेल अपन अगिला माने भावी दिशाधाराकेँ निर्धारित करैत अछि।
एक दिन सम्पन्न घरसँ आएल छात्र गुरुकुल संचालक आत्रेयसँ पुछलकनि‍- भगवन, जे कियो अपना घरसँ नीक भोजन आ नीक वस्त्र मंगा सकै छथि ओ ओकर उपयोग किअए ने कऽ सकै छथि? ओहो किअए निर्धने परिवारक छात्र जकाँ जीवन-यापन करत?”
गंभीर मुद्रामे आत्रेय कहलखिन- छात्र, श्रेष्ठ माने उत्तम मनुख, जइ समाजमे रहै छथि ओ ओइ समाजक अनुकूल जीवन-यापन करै छथि। यएह समता अपनो आ दोसरोले सौजन्य उत्पन्न करैत अछि। सम्पन्नता प्रदर्शन इर्ष्‍या आ अहंकारकेँ उत्पन्न करैत अछि। जइसँ विग्रहक जन्म होइत अछि। जे सहयोगक नींवकेँ दोमि‍ दैत अछि। विषमतेसँ समाजमे अनेको विग्रह ठाढ़ होइत अछि। अपराध बढ़ैत अछि‍‍, जइसँ अनाचारक जन्म सेहो होइत अछि। ऐठाम माने गुरुकुलमे समान जीवन जीबैक रास्ता सिखाओल जाइत अछि। धनिक अपन धन गरीबकेँ उठबैमे लगबए नै कि निजी सुविधा-संवर्द्धनमे।
समताक दूरगामी सत्-परिणामकेँ छात्र बूझि अधिक उपयोगक विचारकेँ बदलि लेलक।

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