Thursday, April 12, 2012

स्रष्टाक समग्र रचना :: जगदीश मण्‍डल


स्रष्टाक समग्र रचना

सृष्टि निर्माणक काज सम्पन्न भऽ गेल। प्राणी सभकेँ बजा ब्रह्मा अपन-अपन कमीक पूर्ति करा लइले कहलखिन। सभ प्राणी अपन-अपन कमीक चरचा करए लगल। मुदा एक्के बेर जे सभ बाजए लगल तँ हल्लामे कि‍यो ककरो बात सुनबे ने करैत। तखन सभकेँ शान्त करैत ब्रह्मा बेरा-बेरी बजैले कहलखिन। सबहक बात सुनि ब्रह्मा ककरो अठन्नी ककरो चौबन्नी, ककरो दस पैसी सुधार कऽ देलखिन।
अखन धरि मनुक्ख पछुआएले छल। पहिने ब्रह्मा नारीकेँ पुछलखिन- अहाँमे की कमी रहि गेल अछि, बाजू?”
तमतमाइत नारी कहलकनि- हमरा तँ बड़ सुन्नर बनेलौं मुदा अपना सन दोसर नारीकेँ देखि‍ मनमे जलन हुअए लगैत अछि। तँए एक रंग दूटा नारी नै बनबि‍यौक।
मुस्कुराइत ब्रह्माजी एकटा अइना आनि नारीक हाथमे दऽ देलखिन आ कहलखिन- बस, एक्केटा सहेली अहाँ सन बनेलौं। जखन मन हुअए तखन आगूमे अइना रखि देखि‍ लेब। जँ सेहो देखैक मन नै हुअए तँ अइना देखबे ने करब।

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