Thursday, April 12, 2012

सीखैक जिज्ञासा :: जगदीश मण्‍डल


सीखैक जिज्ञासा

महादेव गोविन्द रानाडे दछिन भारतक रहथि। ओ बंगला भाषा नै जनैत रहथि। एक दिन रानाडे कलकत्ता गेलाह। कलकत्तामे अपन काज-सभ निपटा आपस होइले गाड़ी पकड़ए स्टेशन एलाह तँ एकटा बंगला अखबार कीन लेलनि। बंगला अखबार देखि‍ आश्चर्यसँ पत्नी कहलकनि- अहाँ तँ बंगला नै जनै छी तखन अनेरे ई अखबार किअए कि‍नलौं?”
मुस्कुराइत रानाडे जबाब देलखिन- दू दिनक गाड़ी यात्रा अछि। आसानीसँ बंगला सीख लेब।
नीक-नहाँति रानाडे बंगला लिपि आ शब्दक गठनपर धि‍यान दऽ सीखए लगलथि। पूना पहुँचि‍ पत्नीकेँ धुर-झार अखबार पढ़ि क सुनबए लगलखिन।
एहेन छलनि साठि वर्षीए रानाडेक मनोयोग। तँए अंतिम समए धरि हर मनुखकेँ सीखैक जिज्ञासा रहक चाही।

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