Friday, April 6, 2012

बिहनि कथा--"समय होत बलबान"




मालिक बाबा..माने श्री सुरुज ठाकुर..जमाना केँ जमींदार. एकटा समय छलै जखन बारह सौ बिगहा जोतैत रहथि. इनार,पोखरि,कलम-गाछी कथुक अभाव नहि.परोपट्टा मे नाम रहैन्ह. आँगा-पाँछा हरदम चारिटा लठैत रहैत छलन्हि.एही शान-रोआब दुआरे बड़का-छोटका सभ मालिक कहैत छलन्हि..एखनो कहैत छन्हि...कियो मालिक बाबा त' कियो मालिक काका. मुदा आब ओ समय नहि छन्हि.सुख-भोगक पाँछा निर्भूम भ' गेलाह.अपना खेतक लवाणो नहि होइत छन्हि.हँ घरारी एखनो पुरने छन्हि.बीच गामपर कम से कम पाँच बिगहा के. चारू कात जंगल जनमल रहैत छै आ' बिच मे पुरना हबेली छैन्ह.कतेको ठाम ढहल.मुदा रोआब एखनो पुरनके.चिनीया बिमारी छन्हि तइयो डाक्टर ल'ग जेबा सँ पहिने भरि पोख रसगुल्ला खा' लैत छथि. कहैत छथि -फेर सार डाक्टर मना करत. पहिने खा' लेब' दे. बात-बात मे गारि देब आदत बनल छैन्ह मुदा हुनकर गारि ककरो खराप नहि लगैत छैक.सभ असिरबादी बुझैत अछि.
परुका मलकाइन मरि गेलखिन्ह.बडड् प्रेम छलन्हि दुनू परानी मे.जहिया से मलकाइन मरलखिन्ह, मालिक बाबा बताह बनल रहैत छथि.एकदिन बारीक आमक गाछ पर कोइली बाजब सुनि अनेरे गरियाब' लगलाह.कोनो नेना ई घटना देखि लेलक. मालिक बाबा..कूउ..अनायास ओकर मुँह सँ बहरा गेलै. माइये-बहिन ओकरा गरिया देलखिन्ह.असर्ध गारि सभ. फेर की ई त' खिस्सा बनि गेल..मालिक बाबा ..कूउ..की बच्चा..की चेतन..सभ खौँझाबय लागल आ' असिरबादी सुनय लागल.
काल्हि मलिकाइन के बरखी छियैन्ह. एगारह टा ब्राह्मण के खुएथिन्ह तकरे इंतजाम मे लागल रहथि.घामे-पसेने तर.थाकि गेल रहथि. दरबज्जा पर बसि रहलाह.खरिहान मे एकटा बकरी चरैत रहय.बारी मे फेर कोइली बाजल..कूउ..तामस चढि गेल रहन्हि..मुदा गारि नहि बहरेलन्हि मुँह सँ..आँखि भीज गेलन्हि. गमछा लय मूह-आँखि पोछय लगलाह. बकरी मेमिया उठल..बुझेलन्हि जेना मलकाइन बौसि रहल हो. कहैत होइथिन्ह -"समय होत बलबान"

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