Thursday, April 12, 2012

कलंक :: जगदीश मण्डल


कलंक

गामक कोन लेखा जे पचकोसीक लोक किसुन भायकेँ इमानदार बुझै छन्‍हि। ओना ओ एकचलिया लोक छथि जबकि गामो आ परोपट्टाक लोक बहुचलिया। तँए किसुन भायकेँ जत्ते प्रशंसा होइत ओतबे निन्दो। ओना ज्ञान-अज्ञानक बीच, सुख-दुखक बीच, धरम-पापक बीच, उत्थान-पतनक बीच, प्रशंसा-निन्दाक बीच तँ पहिनहिसँ संघर्ष होइत आएल अछि। मुदा किसुन भाय अनकर प्रशंसा-निन्दाकेँ ओत्ते महत नै दैत जत्ते अपन सैद्धान्ति जिनगीकेँ। अपन जिनगीक रास्तापर सदिखन सचेत रहै छलथि। कएक दिन एहेन होइत जे किसुन भायक वि‍चारसँ अलग सौंसे गामक लोकक विचार होइत। मुदा तेकर एक्को पाइ गम हुनका नै। अपन रास्तापर ओ असगरो निर्भीकसँ ठाढ़ रहैत छलाह। मुदा वि‍चार बदलैक लेल तैयार नै होथि।
जिनगीक आरंभे किसुन भाय खेतीसँ केलनि। खेत तँ बहुत नै छलनि मुदा जतबे छलनि तइमे मेहनति‍क बले परिवार चला लथि। बाढ़ि, रौदी आ आरो-आरो प्राकृतिक आफत तथा उपद्रव जकाँ मानवीय आफतक मुकावला करबाक लूरि सीख लेने छथि। तँए आन परिवार जकाँ परिवारमे चिन्तो नै होन्‍हि‍। खानदानी खेतीकेँ कतौ बदलि तँ कतौ सुधारि क करथि‍। जइसँ गामोक खेतिहर अचता-पचता क हुनके अनुकरण करैत छल।
तेसर साल टहलैले पंजाब गेल रहथि। टहलैले की जइतथि, खेती देखैले गेल रहथि‍। पंजाबक खेती अगुआएल तँए देखब जरूरी बूझि पड़लनि। पंजाबमे झिमनिक खेती देखलखिन। मिथिला क्षेत्रमे जत्ते-जत्ते घेड़ा, होइत तत्ते-तत्ते झिंगुनी देखलखिन। फड़ो अटुट। झिंगुनी देखि‍ किसुन भायक मनमे गड़ि गेलनि‍। मने-मन सोचलनि जे जइ पंजाबक माटि गोंग अछि तखन जब एहेन अछि तँ अपन माटि (मिथिलाक माटि) मे केहेन हएत, तत्काल ओ नै सोचि सकलथि। मुदा बीआ लेने एलाह। समैपर बीआ रोपलनि। ओइ चारि कट्ठा झिंगुनिक खेतीसँ किसुन भाय एकटा जरसी गाए किनलनि। अपना लेल ओते बीआ शुरूहेक फड़ रखि लेलनि जे छः कट्ठा खेती अगिला साल करब। धुर-झाड़ जखन झिंगुनी बेचए लगलथि तखन गामोक लोक बीआ मंगलकनि। पचता फड़क बीआ लोक सभले रखि देलखिन अगता फड़क समए तँ निकलि गेल छल।
ऐबेर गाममे, झिंगुनिक अनधुन खेती भेल। किसुन भायक उपजा तँ पछि‍ले साल जकाँ भेल मुदा गामक लोकक दब भ गेलै। दब होइक कारण छलैक उपजबैक ढंग आ पचता बीआ। सौंसे गामक लोक हुनका ठक कहि कलंकित करए लगलनि। कतेक गोटे सोझोमे कहलकनि। ठकक कलंकसँ किसुन भाय सोगाए लगलथि। जेना कते भारी कुकर्म क लेने होथि। मनमे सदिखन यएह नचैत रहनि जे- एना भेलै किएक?”
ऐ प्रश्नक उत्तर मनमे जगबे ने करनि। अनायास एक दिन हृदैसँ आवाज उठलनि- किसुन, तोहर दोख एक्कोपाइ नै छह। अनेरे सोगाइल छह। तोहर कलंकक कारण बीआक मुरहन आ दौजी गुणे भेल छह।
हृदैक आवाज सुनि किसुन भाय पुछलखिन- अगर हम ऐ बातकेँ मानि अपनाकेँ निरदोस बुझिये लेब तैयो आन केना बुझत?”
- हँ, तोरा ओइ दिन तक कलंकक मोटरी कपारपर रखए पड़तह जइ दिन तक ओहो सभ मुरहन आ दौजीक भेद बूझि नै जाएत

No comments:

Post a Comment