Thursday, May 26, 2016

प्रतिभाशाली

"प्रतिभाशाली लोक पोस नै मानै छै" ई बात बहुत बेरसँ एकटा बूढ़ साहित्यकार युवा साहित्यकारक पक्षमे बाजि रहल छलाह. ओ फेर तर्क देलाह जे सुच्चा रचनाकर्मी स्वतंत्र होइत छै ओकरा केकरो गुलामी नै करबाक चाही. सभामे सभ हुनकर तर्कसँ हारि गेल छल.
बूढ़ साहित्यकार घर एला तँ किछु सुनसान लगलनि. बूढ़ीकेँ सोर पाड़लनि. बूढ़ीकेँ एबासँ पहिनेहे एकटा बेटा आबि कहलकनि "आब हम भिन्न होबए" चाहैत छी. बूढ़ साहित्यकार बिना किछु बजने अंगनासँ निकलि गेलथि.

Friday, May 6, 2016

प्रेम

गुदरी बाजारक भीड़ भाड़सँ निकलैत, एकटा दुकानक आँगा टीवीक आबाज सुनि डेग रूकि गेल । टीवीसँ अबैत मात्र ओकर अबाजे सुनाइ द रहल छल । ओकर देह नहि देखा रहल छल मुदा अबाजेसँ ओकरा चिन्हनाइ कतेक आसान छै । 
आइसँ तीस वर्ष पहिने, हमरे संगे संग नमी वर्ग धरि पढ़ै बाली, सुन्दर, चंचल मात्र मूठ्ठी भरि डाँड़ बाली ---- 
"कि प्रेम इहे छैक की मात्र देहक प्रजनन अंगपर एकाधिकार बना कय राखैमे सफल भेनाइ ।"
@जगदानन्द झा 'मनु'

मँुह झौँसा

“गै दैया ! एतेक आँखि किएक फूलल छौ ? लगैए रा त भरि पहुना सुतए नहि देलकौ।”
“छोर, मँुह झौँसा िकएक नहि सुतए देत, अपने तँ ओ बिछानपर परैत मातर कुम्भकरन जकाँ स ुति रहल आ हम भरि रा ति कोरो गनैत बितेलहुँ।”
जगदानन्द झा 'मनु' 

सोहागिन

हल्द्वानी, हम आ सा । क़ब्रिस्तान पार कय क हम दुनू पहाड़क उपर चढ़ैत, समतल जगह ताकि पार्ककेँ एकटा वेंचपर बैसि, देहक गर्मीकेँ कम करैक हेतु बर्फमलाइ (आइस्क्रीम) कीन खेनाइ शुरू केलौंहँ ।
दुनू गोटा अप्पन अप्पन आधा बर्फमलाइ खेने होएब कि, सा "जँ हम अहाँक सामने मरि गेलौं तँ हमर सारापर चबूतरा बना देब ।" 
मेघ धरि उँच उँच पहाड़, चारू कात प्राकृतिक सौंदर्य, मखमल सन घास, स्वर्गसन वातावरण, बर्फमलाइ केर आनन्दक बिच अचानक एहेन गप्प सुनि, बर्फमलाइ हमर मुँहसँ छूटि हाथमे ठिठैक गेल । कनिक काल सा केर मुँह पढ़ैक असफल प्रयास केलाक बाद; "अवस्य एकटा सुन्दर चबूतरा । जँ हम पहिने मरि गेलौं तँ एतेक व्यवस्था ज़रूर कय जाएब जे एकटा नीक चबू.... "
बिच्चेमे सा हमर मुँहकेँ अप्पन हाथसँ दाबैत, "नीक नहि साधारणे चबूतरा मुदा अहाँक हाथे आ ओहिपर लिखल हुए "सोहागिन सा ।"
@ जगदानन्द झा 'मनु'

अगिला जनम

“डाँड़ टूटल जाइए भरि रा ति अहाँ सूतए नहि देलहूँ । बड़ हरान करै छ ी, अगिला जनममे अहाँ हिजड़ा होएब जे कोनो आओर मौगीकेँ एना तंग नहि कए सकब।”
“ठ ीक छै ! अगिला जनम अगिला जनममे देखल जेतै, एहि जनमक आनन्द तँ लए लिए । आ अगिला जनममे ओहि हिजड़ाक ब्याह जँ अहिक संगे भए गेलहि तँ ।"
@जगदानन्द झा 'मनु'