Thursday, April 12, 2012

सामना :: जगदीश मण्‍डल


सामना

वनमे अनेको सुगर परिवार छल आ एकटा सिंह सेहो रहै छलै। जखन कखनो सिंहकेँ भूख लगै तखन टहलि सुगरकेँ पकड़ि खा जाइत। दोसर-तेसर सुगर सिंहकेँ देखते पड़ा जाइत। एक दिन सभ सुगर मिलि‍ बैसार केलक। बैसारमे तँइ केलक- जखन एका-एकी मरिये रहल छी तखन लड़ि कऽ किअए ने मरब।
ऐ विचारसँ सभ सुगरमे साहस जगलै। सभ मिलि‍ लड़ैले विदा भेल। सभ हल्लो करै आ चिकड़ि-चिकड़ि सिंहकेँ गरियेबो करै। जत्ते जोरगर सुगर छल ओ आगू-आगू आ अबलाहा सभ पाछू-पाछू विदा भेल। सिंहकेँ देखते सभ जोरसँ हल्ला करैत दौगल। आइ धरि सिंहकेँ एहेन मुकाबलासँ भेँट नै भेल रहए। सिंह डरा गेल। अपन जान बँचबैले पड़ाएल। सिंहकेँ पड़ाइत देखि‍ सुगर पाछूसँ खेहारलक। सिंह वनसँ बाहर भऽ गेलै। वन खाली भऽ गेलै। सभ सुगर निचेनसँ रहए लगल।

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