Saturday, April 7, 2012

दोस्तक प्रयोजन‍ :: जगदीश मण्‍डल


दोस्तक प्रयोजन‍

एकटा पैध पोखरि छल। ओकर उत्तरबरिया महारमे मोर रहै छल आ दछिनबरियामे मोरनी। दुनू असगरे-असगरे रहैत। एक दिन मोर मोरनी ऐठाम जा बि‍आहक प्रस्ताव रखलक। मोरक प्रस्ताव सुनि मोरनी पुछलकै- अहाँकेँ कएटा दोस अछि?”
नजरि दौगबैत‍ मोर उत्तर देलकै- एक्कोटा नै।
मोरक जबाब सुनि मोरनी बि‍आह करैसँ इनकार क देलक। तखन मोरक मनमे एलै जे सुखसँ जीबैक लेल दोस जरूरी अछि। ओतएसँ विदा भ मोर पुबरिया महार होइत चलल। पुबरिया महारमे सिंह रहैत छल। आ पछबरियामे काछु। सिंह बैसल-बैसल झपकी लैत छल। मोर सिंहक आगूमे ठाढ़ भ गेल। मोरकेँ बजैक साहसे ने होय। बड़ी खान धरि मोरकेँ ठाढ़ भेल देखि‍ सिंह पुछलकै- की बात?”  
निराश मोने मोर कहलकै- भैया, हम अहाँसँ दोस्ती करए एलौंहेँ। किएक तँ जिनगीक लेल दोस्तक खगता होइ छै
सिंह मानि दोस्ती कऽ लेलक। सिंहसँ दोस्ती भेलाक बाद मोर पछबरिया महार आबि काछुसँ सेहो दोस्ती केलक। पछबरिये महारक गाछपर टिटही सेहो रहैत छल। जे अपन काज इमानदारीसँ करै छल। जखन कखनो शिकारीक आगमन होय आकि‍ कोनो आफत अबैबला होय तँ टिटही सभकेँ जानकारी द दैत।
दोस्ती केलाक बाद मोर मोरनी लग आबि सभ बात कहलक। मोरनी बि‍आह करैले राजी भऽ गेल। दुनूक बीच बि‍आह भ गेलै। दुनू एक्के ठाम रहए लगल।
एक दिन एकटा शिकारी शिकारक भाँजमे पहुँचल। भरि दिन शिकारी शिकारक पाछू हरान भेल रहए मुदा कतौ किछु नै भेलै। थाकियो गेल रहै आ भूखो लागि गेल रहए। गाछक निच्चाँमे सुसताए लगल। गाछक निच्चाँमे चिड़ैक चट देखि‍ गाछपर चढ़ि चिड़ैकेँ पकडै़क विचार केलक। गाछेपर सँ मोर-मोरनी सेहो शिकारीकेँ देखैत। शिकारीकेँ गाछपर चढ़ैत देखि‍ दुनू परानी -मोर-मोरनी- सोचए लगल जे आइ दुनूक जान जाएत। मोर उडै़त टिटही लग गेल। टिटही जोर-जोरसँ बोली देमए लगलै। सिंह बूझि गेल। शिकार पकड़ैले सिंह विदा भेल। ताबे कछुआ सेहो पानिसँ निकलि किनछरिमे आबि गेलै। सिंहकेँ देखि‍ शिकारी भगैक ओरियान करए लगल आकि काछुपर नजरि पड़लै। काछुकेँ पकड़ए शिकारी किनछरिमे गेल आकि काछु ससरि पानिमे चलि गेल। शिकारी पानिमे पैइसए लगल आकि गादि -दलदल- मे लसकि गेल। ने आगू बढ़ि होय आ ने पाछू भऽ होय। ताबे सिंह आबि शिकारीकेँ पकड़ि लेलक। शिकारीकेँ पकड़ल देखि‍ मोरनी मोरकेँ कहलक- बि‍आह करैसँ पहिने जे दोस्तक संख्या पुछने रही से देखलि‍ऐ। आइ जँ दोस्ती नै केने रहितौं तँ की होइत?”

(तरेगन संग्रहसँ साभार)

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