Thursday, April 12, 2012

अस्तित्वक समाप्ति :: जगदीश मण्‍डल


अस्तित्वक समाप्ति

एक ठाम कनी हटि-हटि कऽ तीनटा पहाड़ छलै। पहाड़क पजरेमे नमगर आ गहींर खाधियो छलै। जइसँ लोकक आवाजाही नै छलै। एक दिन एकटा देवता ओइ‍ दिशासँ होइत गुजरैत रहथि। तीनू पहाड़केँ देखि‍ पुछलखिन- ऐ क्षेत्रक नामकरण करबाक अछि से केकरा नाओंसँ करी? संगहि अपन कल्याणक लेल की चहै छी?”
पहिल पहाड़ कहलकनि- हम सभसँ ऊँच भऽ जाइ जइसँ दूर-दूर देखि‍ पड़िऐक
दोसर बाजल- हमरा खूब हरिअर-हरिअर प्रकृतिक सम्पदासँ भरि दिअ। जइसँ लोक हमरा दिस आकर्षित हुअए
तेसर कहलक- हमर उँचाइकेँ छील ऐ खादिकेँ भरि दियौ जइसँ ई सौंसे क्षेत्र उपजाउ बनि जाए। लोकोक आबाजाही भऽ जेतैक
तीनूक जोगार लगा देवता विदा भऽ गेलाह। एक बर्खक उपरान्त तीनूक परिणाम देखैले पुनः एलाह। पहिल पहाड़ खूब ऊँचगर भऽ गेल छल। मुदा कि‍यो ओमहर जेबे ने करैत। पानि-पाथर, बिहाड़ि, रौद आ जाड़क मारि सभसँ बेसी ओकरे सहए पड़ैत। दोसर तत्ते प्रकृतिक सम्पदासँ भरि गेल जे बोनाह भऽ गेल। बोनैया जानवरक डरे कि‍यो ओम्‍हर जेबे ने करैत। तेसर पहाड़सँ खाधियो भरि गेलै आ अपनो समतल भऽ गेल। खाधिसँ लऽ कऽ पहाड़ धरिक जगह उपजाउ बनि गेलै। खेती-बाड़ी करैले लोकक आवाजाही दिन-राति भऽ गेलै।
तेसर पहाड़क नाओंपर क्षेत्रक नामकरण करैत देवता कहलखिन- यएह पहाड़ अपन अस्तित्व समाप्त कऽ खाधियोकेँ अपना हृदैमे लगौलक। जइसँ ई क्षेत्र उपजाउ बनि गेल। तँए अहींक नाओंपर ऐ क्षेत्रक नाओं राखब उचित।

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