Monday, September 1, 2014

गंगाजलक धोल (लक्ष्‍मी दास)

 गंगाजलक धोल

सहदेव काकाकेँ गामे कि‍छु गोरे सहदेवकाका कहै छन्‍हि‍ तँ कि‍छु गोरे फटहाकाका सेहो कहै छन्‍हि‍। कि‍छु गोरे सहदेव भैया कहै छन्‍हि‍ तँ कि‍छु गोरे फटहाभैया सेहो कहै छन्‍हि‍। मुदा हमर ने कि‍छु कहि‍यो बि‍गाड़लनि‍ आ ने नीके केलनि‍ तँए हम सहदेव कके कहै छि‍यनि‍।
अहाँ कहब जे लोकक एकहरी नाओं होइ छै हुनकर कि‍ए दोहरी छन्‍हि‍? दोहरीक कारण अछि‍ जे जे घटि‍या काज सहदेव काका अपने करै छथि‍ ओही काजले दोसरकेँ रेड़बो करै छथि‍न आ आँखि‍क पानि‍योँ उतारि‍ दइ छथि‍न। ओना केते गोरे एहनो छथि‍ जे अपनो सहदेव कक्काक केलहा काज लोके लग उगलि‍ दुसबो करै छन्‍हि‍ आ फटहो कहै छन्‍हि‍। मुदा जहि‍ना गर्दखोर अपन गरदा झाड़ि‍ फ्रेश भऽ जाइए तहि‍ना अपन गरदा झाड़ि‍ सहदेवो काका फ्रेश भऽ जाइ छथि‍।
आइ सहदेव काका केकर मुँह देखि‍ ओछाइन छोड़ने छला केकर नै, भोरे-भोर दुनू परानीमे झगड़ा बझि‍ गेलनि‍। खि‍सि‍या कऽ अलोधनी काकी आगूमे थूक फेकि‍ कहलकनि‍-
अहाँ पुरुख छी आकि‍ पुरुखक झड़ छी?”
पत्नीक समुचि‍त उत्तर दऽ सहदेव काका भरि‍ दि‍नका जतरा दुइर नै करए चाहै छला, मुदा झगड़ा बेर चुपो रहब हारि‍ मानब बूझि‍ बजला-
अहाँ कहने जँ हम पुरुखक झड़ छी तँ अहूँ तँ झड़क झरनि‍येँ ने भेलौं।
सहदेव कक्काक बात जेना अलोधनी काकीकेँ रब-रबा कऽ छूबि‍ लेलकनि‍। जहि‍ना कुकुर कटौजमे दाँतसँ पकड़ा-पकड़ी करैत घीचा-तीरी करए लगैए तहि‍ना काकी बजली-
गामक लोक जे फटका कहैए, से कोनो झूठ कहैए। अहाँकेँ ने कोनो काजक ठेकान अछि‍ आ ने कोनो बातक ठेकान अछि‍।
जेना लंकामे अग्‍नि‍वाणकेँ रोकल गेल, तहि‍ना सहदेव काका अलोधनी काकीक अगि‍याएल बोलकेँ रोकेत बजला-
कथी ले अनेरे अपने मुहेँ दोखी बनै छी, एतबो ने बुझै छि‍ऐ जे हमरा फटहा कहैए ओ कि‍ अहाँकेँ फटही नै कहत।
अपन हूसैत वाणकेँ देखि‍ काकी पाशा बदलि‍ बजली-
लोक दुसैए, तेकर लाज नै होइए?”
जेना ठोरक बरी पकै छै तहि‍ना काका पकबैत बजला-
जे दुसत से पहि‍ने अपन घरवालीकेँ पुइछ‍ लि‍अ जे अपने केते गंगाजलक धोल छी।

छुतहरि (दुर्गानन्‍द मण्‍डल)

83म सगर राति‍ दीप जरय'मे सखुआ-भपटि‍याहीमे पठि‍त लघु कथा- 

छुतहरि

सि‍मराक शि‍वनन्‍दन बाबूक दोसर बालक राजाबाबू, नाओंक अनुरूप राजकुमारे सन लगै छल। बेस पाँच हाथ नमहर, गोर-नार, भरल-पूरल देह, पहि‍रन-ओढ़न सेहो राजकुमारे सन। वि‍धाताक कृपासँ हुनक पत्नी देखए-सुनएमे सुन्‍दरि‍। मध्‍यम वर्गीए परि‍वारमे जनम। नैहर सेहो भरल- पूरल। राजाबाबूक बि‍आह नीक घरमे भेल। कोनो तरहक कमी नै। जेते जे बरि‍याती गेल रहथि‍, सभ कि‍यो खान-पानसँ प्रसन्न रहथि‍। बड़-बढ़ि‍याँ घर-परि‍वार छल। राजाबाबू बि‍आहक पछाति‍ओ अध्‍ययन जाड़ीए रखलनि‍। नीक-नहाँति‍ पढ़ैले पटनामे नाओं लि‍खा डेरा रखलनि‍। छुट्टी भेलापर गामो चलि‍ अबै छला। गाड़ी-सवारी भेने गाम आबए-जाएब कठीन नै छल। अहीक्रममे राजाबाबूकेँ पहि‍ल सन्‍तानक रूपमे एकटा बालक- अनील आ एकटा कन्‍या सुधाक जनम भेल। माए-बापक अनुरूप दुनू बच्‍चो तेतबए सुन्‍दर छल। क्रमश: दुनू बच्‍चाक टेल्हुक भेलापर ज्ञानोदय झंझारपुरमे नाओं लि‍खा देलखि‍न। बच्‍चा सभ ओतै रहि‍ पढ़ए-ि‍लखए लगल।
एमहर पटनामे रहैत राजाबाबूक संगति‍ खराप हुलगलनि‍। जइसँ ओ दोस्‍ती-यारीमे पीबए लगला। एक दि‍नक गप छी, गाम एलाक बाद अधरति‍यामे जोरसँ हल्‍ला भेल जे राजाबाबू पेटक दर्दे चि‍चि‍या रहल छथि‍। राति‍क मौसम देखि‍ गामक डाक्‍टर बजौल गेला। सुइया-दवाइ दऽ आगू बढ़ैक सलाह देलखि‍न। बि‍मारी उपकले रहनि‍। पत्नी वि‍शेष जतनसँ पथ-परहेजसँ राखि‍ दुइए मासमे दुखकेँ कन्‍ट्रोल कऽ लेलनि‍। एमहर राजाबाबूक मन ठीक होइते फेर जि‍द्द कऽ पटना चलि‍ गेला। परि‍कल जीह केतौ मानल जाए, पुन: वएह रामा-कठोला। गाम आबथि‍ आ भैया जे पाइ दन्‍हि‍ आकि‍ नै दन्‍हि‍ तँ पत्नीएक गहना-जेबर बन्हकी लगा-लगा पीबए लगला। कहबीओ छै चालि‍-प्रकृत-बेमए ई तीनू संगे जाए। छओ मास ने तँ बि‍तलै आकि‍ वएह पुरने दुख राजाबाबूकेँ उखड़लनि‍। मुदा ऐबेरक दर्द बड़ तीव्र छल। सुतली राति‍मे राजाबाबू अपना बि‍छौनपर छटपटए लगला। पेट पकड़ने जोड़-जोड़सँ चि‍चि‍यए लगला। नि‍सि‍भाग राति‍ रहने हो-हल्‍ला सुनि‍ लोक सभ जागल। लोकक लेल अँगनामे करमान लगि‍ गेल। दर्दक मारे राजाबाबू पलंगपर छटपटा रहल छला। एकबेर बड़ी जोड़सँ दर्दक बेग एलै आ राजाबाबू खूनक उन्‍टी करैत सदा-सदाक लेल शान्‍त भऽ गेला।
अँगनामे कन्ना-रोहट उठि‍ गेल। टोल भरि‍क लोक सभ जागि‍ गेल। मुदा राजाबाबू तँ सभसँ रि‍स्‍ता–नाता तोड़ि‍ परमधाम चलि‍ गेल छला। परात भेने बि‍ना बजौने सभ आदमी मि‍लि‍ बाँस काटि‍, तौला-कराही, सरर-धूमन आ गोइठापर आगि‍ दऽ राजाबाबूक पहि‍ल सन्‍तान अनील हाथमे दऽ अपने आमक गाछीमे राजाबाबूकेँ डाहि‍-जारि‍ सभ कि‍यो घर घुमला।   
कौल्हुका राजाबाबू आइ अपन महलकेँ सुन्न कऽ पत्नीकेँ कोइली जकाँ कुहकैले छोड़ि‍ चलि‍ गेला। पत्नीक वएस मात्र पचीसेक आस-पास, सन्‍तानो तँ मात्र दुइएटा। मुदा अपन कर्मक अनुसार आइ कोइली बनि‍ कुहैक रहल छथि‍। काल्हि‍ तक जे सोल्हो सिंगार आ बत्तीसो आवरण केने साक्षात् राधाक प्रति‍मूर्ति मेनका आ उर्वशी सुन्नरि‍ छेली ओ आइ उज्जर दप-दप साड़ी पहि‍रि कुहैक रहल छलि‍। केतए गेलनि‍ भरि‍ हाथ चुड़ी, केतए गेलनि‍ भरि‍ माङ सेनुर...। सभटा धूआ-पोछा गेल। केकरो साहसे ने होइ जे सामने जा बोल-भरोस हुनका दैत। समुच्‍चा टोल सुनसान-डेरौन लगैत। तही बीच छह मास धरि‍ ओकर कुहकब केकरा हृदैकेँ ने बेधि‍ दैत। केना ने बेधि‍ दैत!
आखि‍र वेचारीक वएसे की भेलै। मुदा छओ मास तँ भेले ने रहै आकि‍ ओ घरसँ बाहर, आँगनसँ डेढ़ीआ आ डेढ़ीआसँ टोला-पड़ोसामे डेग बढ़बए लगली। जे कहि‍यो हुनक पएरो ने देखने रहनि‍ ओ आब मुहोँ देखि‍ रहल अछि‍। हुनक हेल-मेल सभसँ पढ़ल जा रहल छन्‍हि‍। आब तँ ओ अपना घरमे कम आनका आँगनमे बेसी समए बि‍तबए लगली। सासु-ि‍दयादि‍नीक गपकेँ छोड़ि‍ अनकर गपपर बेसी धि‍यान दि‍अ लगली। नीक आ अधला तँ सभ समाजमे ने लोक रहै छै। से आब कि‍छु लोक हुनका गुरु मन्‍तर दि‍अ लगलखि‍न। आ ओहो नीक जकाँ धि‍यान-बात दि‍अ लगली। जहि‍ना कहबी छै जे खेत बि‍गड़ि‍‍ गेल खढ़ बथुआ सन ति‍रि‍या बि‍गड़ए जँ जाइ हाट-बजार...। जे काल्हि‍ तक ओकर उकासीओ ने कि‍यो सुनने छल से आइ तँ ओ उड़ाँत भऽ गेलि‍। बि‍ना कोनो धड़ी-धोखाक गामक मुखि‍या-सरपंचक संग हँसि‍-हँसि‍ बजै-भुकए लगली। गामक राजनीति‍मे हाथ बँटबए लगल। गामक उचक्का छौड़ा सभ संगे हाट-बजार करए लगल।
एतबे नै, ओ अपन जीवन-यापनक बहाना बना ब्‍यूटीपार्लर सेहो जाए लगली। सत्संगे गुणा दोषा रंगीन दुनि‍याँ आ वातावरणक प्रभाव ओकरापर पड़ल लगल। ओकर अपन वैधव्‍य जि‍नगी पहाड़ सन लागए लगलै। आब ओ चाहए जे ई उजरा धूआ-साड़ीकेँ फेकि‍ रंगीन दुनि‍याँमे चलि‍ आबी। ओ रसे रसे-रसे उजड़ा साड़ी छोड़ि‍ हल्का छि‍टबला साड़ी पहि‍रए लगल। मन जे एते एकरंगाह रहै से आब सभरंगाह हुअ लगलै। रूप-गुण लछन-करम सभ बुझू जे बदलए लगल। आब ओकर मौलाएल गाछक फूल खि‍लए लगल। एक दि‍न मुखि‍याकेँ कहि‍-सुनि‍ इन्‍दि‍रा अवास स्‍वीकृति‍ करौलक आ बि‍च्‍चे आँगनमे घर बना लेलक। आब जे कि‍यो छौड़ा-माड़रि‍ भेँट-घाँट करए आबए तँ ओ ओही घरमे बैसा चाह-पान करए लगल। चाहो-पान होइ आ हँसी चौल सेहो। एते दि‍न जेकरा भाफो नै नि‍कलै तेकर आब हँसीक ठहाका दरबज्‍जोपर लोक सुनए लगल। गामक आ टोलक बि‍स्‍कुटी लोकक चक्कर-चाि‍लमे पड़ि‍ ओ भैंसुरसँ अरारि‍ कऽ अपन हक-हि‍स्‍सा लेल लड़ए लगली। लड़ि‍-झगड़ि‍ सर-समाजकेँ बैसा पर-पंचायत कऽ ओ बाध-बोनसँ लऽ चर-चाँचर, वाड़ी-झारी एतबे नै डीह तक बाँटबा लेलक। आब तँ कहबी परि‍ भऽ गेल जे अपने मनक मौजी आ बहुकेँ कहलक भौजी। जखनि‍ जे मन फुड़ै तखनि‍ सएह करए। कि‍यो हाँट-दबार करैबला नै। कारणो छेलै, जँ कि‍यो कि‍छु कहैक साहसो करए तँ अपन इज्‍जत अपने गमा बैसए। आब तँ ओ चर्चेआम भऽ गेलि‍। अही बीच ओ एकटा छौड़ाक संग बम्‍बै पड़ा गेल। आहि‍ रे बा! परात होइते घोल-फच्‍चका शुरू भेल ‘कनि‍याँ केतए गेली केतए गेेली’ आकि‍ दू दि‍नक बाद मोबाइल आएल जे ओ तँ बम्‍बैमे अछि‍ फलल्‍मा छौड़ाक संग। ओना गामोसँ मोबाइल कएल गेल जे कनि‍याँ गाम घूमि‍ आबथि‍। मुदा ओ तँ अपने सखमे आन्‍हर।
कि‍छु दि‍नक बाद जेना-तेना पकड़ि‍-धकड़ि‍ ओइ छौड़ाक संग गाम आनल गेल। मुदा ओ तखनो सबहक आँखि‍मे गर्दा झोंकि‍ कोट मैरेज कऽ लेलक तेकर बादे गाम आएल। एतेक भेला बादो गामक समाज बजौल गेला। सभ तरहेँ सभ कि‍यो समझबैक परि‍यास केलनि‍। मनबोध बाबा जे गामक मुँहपुरुख छथि‍ ओ ओकरा बुझबैत कहलखि‍न-
सुनू कनि‍याँ, अखनो कि‍छु ने बि‍गड़लै हेन, आबो ओइ छौड़ाक संग-साथ छोड़ि‍ गंगा असलान कऽ समाजक पएर पकड़ि‍ लि‍औ। जे भेलै से भेलै। सभ अहाँकेँ जाति‍मे मि‍ला लेत। जाति‍ नाम गंगा होइ छै।
मुदा मनबोध बाबाक बातक कोनो असरि‍ ओकरापर नै पड़लै। ओइ छौड़ाक संग-साथ छौड़ैले तैयार नै भेल। अन्‍तमे गौआँ-घरूआक संग मनबोध बाबा ओकरा जाति‍सँ बाड़ि‍ आँगनासँ ई कहैत‍-
“एकरा आँगनमे राखब उचि‍त नै ई कनि‍याँ कनि‍याँ नै छुतहरि‍ छी छुतहरि‍...।”
हम ओत्तै ठाढ़ भेल कि‍छु ने बाजि‍ सकलौं, कि‍छु ने कऽ सकलौं। की नीक की अधला से तखनि‍ नै बूझि‍ पेलौं जे आइ बूझि‍ रहल छी अखनो समाजकेँ समाढ़ गहि‍आ कऽ पकड़ने अछि‍।

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शेफाली, फुलपरासवाली आ हम ( डा. कीर्ति नाथ झा)

शेफाली, फुलपरासवाली आ हम


जहि‍आ ओ लोकनि‍ जीबै छला तहिआ तँ ने एहेन प्रसि‍द्ध रहथि‍ आ ने कि‍छु सुनबाक पढ़बाक तेना भऽ कऽ साधन रहै। आब सुनै छि‍ऐ एक गोटे ‘मुक्ति‍’ लि‍खने छला तँ केकरो पढ़ि‍ कऽ ठकमुड़ी लागि‍ गेलनि‍ आ दोसर गोटे ‘फुलपरासवाली’ लि‍खलनि‍ तँ कहाँ दन ‘मुक्‍ती’बला नोटि‍स नै लेलखि‍न। माने दूध-भात। जे कि‍छु। आब कि‍ताब आ पोथी सेहो खूब छपै छै आ लोक कि‍नि‍तो अछि‍। मुदा हमरा लोकनि‍ रामायण-महाभारत पढ़ब आकि‍ नव-नव कि‍ताब। मुदा ओइ दि‍न संयोगेसँ टी.भी खूजल छेलै आ दू गोट गोट भऽ सकैए परफेसर छल हेता- बड़ीकाल धरि‍ एक दोसरासँ बहस करैत रहथि‍ माने ‘शेफाली’ नीक केलनि‍ आकि‍ ‘फुलपरासवाली’। धुर, एहन गप-सप्‍प केतौ एतेक खूजि‍ कऽ होउ। धि‍या-पुता तँ अबधारि‍ कऽ आरो रस लेत। बीचमे एक गोटे आैर छला जे बीचमे एकबेर टि‍पलखि‍न ि‍क तँ, कि‍यो कहने छेलखि‍न, जे हि‍नका लोकनि‍क खीसा मर्यादाक बाहरक गप थि‍क।
मुदा नै जानि‍ ओ बुढ़ी लोकनि‍ आइ जीबैत रहि‍तथि‍ तँ की कहितथि‍न। मोने अछि‍, मैयाँकेँ पुछने रहि‍यनि‍, मैआँ अहाँ कहि‍आ वि‍धवा भेलि‍ऐ?” तेतबे वयस रहए जे ई नै बुझि‍ऐ जे एहेन गप पुछबाक नै छि‍ऐ।
आ जेहने हम तेहने मैयाँक जवाब-
जहि‍ए बि‍आह भेल तहि‍ए राँड़ भऽ गेलि‍ऐ।
दूरस्‍थेसँ माए ई गप-सप्‍प सुनलनि‍ तँ दबाड़ि‍ कऽ भगा देलनि‍। मुदा हमरा ले धनि‍ सन। हम तँ मैयाँसँ बस कि‍छु गप करैले कि‍छु फुछने रहि‍यनि‍। देखि‍यनि‍ उज्‍जर धोती, काटल केश, चुड़ी-सि‍नुर-ठोप-ठीका कि‍छु ने। तैपर हम आवेशसँ कखनौं आलताक ठोप करबाक लौल करि‍यनि‍। कहि‍यो चुड़ी पहि‍रबाक। गरमी मासक दुपहरि‍यामे जखनि‍ मैयाँ अपन टेकुरी लऽ कऽ जनौ कटैले बैसै छेली तँ हम सहटि‍ कऽ लग जाइ। 
कि‍छु-कि‍छु छोट काज कऽ दि‍यनि‍। ओहो कखनो मि‍सरी, कखनो एकटा छोहाड़ा तरहथ्‍थीपर रखि‍ देथि‍। नाति‍न आ मैयाँक अही संग बहि‍नाक आपक्‍तामे तँ ओ बुझा कऽ कहने रहथि‍-
है चुड़ी सि‍नुर वि‍धवा नै करै छै।
नेना तँ रहबे करी। पुछलि‍यनि‍-
अहाँ वि‍धवा छि‍ऐ।
ओ कहलनि‍-
हँ।
हम पुछलि‍यनि‍-
कहि‍आसँ?”
बस हुनकर जवाब देल छेलनि‍ आकि‍ माँ सुनि‍ते छेली गप-सप्‍प, दबाड़ि‍ कऽ वि‍दा केलनि‍।
मुदा बि‍आहो दि‍न लोक वि‍धवा भऽ सकै छै से पछाति‍ बुझलि‍ऐ।
हमरो सरकार तँ हालहि‍मे गेलाहे मुदा हम? जे कि‍छु सुनि‍ऐ, तइसँ एतबे मोन अछि‍ जे घर डेरा बड़ ऊँच रहनि‍, आ जाति‍ बड्ड पैघ। कि‍दुन सुनि‍ऐ बाबू कहथि‍न-
शुद्ध गहुमनक पोआ छला, सरकार।
ठीके छल हेता। मुदा जहि‍या हुनकर पाला पड़ल रही दाढ़क डाँस बुझबाक वयए नै छल। मुदा आब जखनि‍ बीख भरि‍ देह नि‍जाएल अछि‍ तँ बुझै छि‍ऐ। ओ साँप तँ नै छला मुदा हुनकर बीखक असरि‍सँ की कहि‍यो उबरि‍ सकलौं।
अपना तँ बोध एतबे रहनि‍ जे साबुन आ बर्फीक अन्‍तर नै बुझथि‍न। झोंक एलापर कथीमे दाँत काटि‍ देता तेकर कोन ठेकान। कखनो बाटीक दालि‍केँ बड़की पोखरि‍ कहथि‍न आ फोड़नक मरचाइकेँ पोखरि‍क माँछ।
बि‍आह भेलापर लोककेँ तँ खूब मोन लगै। हम आब बुझै छि‍ऐ, लोक, देखि‍ कऽ माँछी केना गि‍ड़ै छल तहि‍या।
मुदा सोचै छी हम के छी? ‘शेफाली’ कि‍ फुलपरासवाली? एक गोटे उड़हरि‍ कऽ मुक्त भेली। दोसर अपन मोनक सक्कसँ इज्‍जति‍ बँचौलनि‍।
मुदा इज्‍जति‍? रसि‍आरीवाली काकी जीवन भरि‍ इज्‍जति‍ बँचौने रहली मुदा मगज तँ फि‍रि‍ए गेलनि‍। केतए-केतए ने गोहरि‍आ बनि‍ कऽ गेली। केतेक ने इलाज करौलनि‍। कि‍छु भेलनि‍ नै। पछाति‍ जखनि‍ सभ कि‍छु समन भऽ गेलनि‍ तँ लगलनि‍ जे अनकर आगि‍ बाँचए नै देत आ आखि‍री आबि‍ कऽ अपनेसँ अगि‍ लगा कऽ मरि‍ गेली।
मुदा हम? हमरा सरकारक सरकारीक वंशकेँ जे ऊक देखौलकनि‍ तेकर मरला उत्तर मुखबत्ती लगा कऽ शरीर वलानमे भँसौल गेलै।
यएह बलान तँ थि‍की। अपने नोत पुरैले गेल रहथि‍। आ हम एसकरि‍ए रही। मड़रटा मनेजर-हरवाह-कमति‍आ-ओगरवाह सभ छला। बड़ जोर बाढ़ि‍ आएल रहै। आ हमरा मथदुखीक राेग धऽ नेने छल। सभ राति‍ पहि‍ने दहि‍ना कात कपारसँ शुरू हुअए। फेर कनपट्टी होइत माथक पाछूसँ गरदनि‍ धरि‍ जाए। गरदनि‍ तर केत्ताबेर गेड़ुआ दहि‍ना-बामा करी। चैन नै हुअए। शंकर बाम-कृष्‍णधारा- वि‍क्‍स सभ लगाबी। रसे-रसे हुअए माथ दुखाएब दोसरो दि‍स ने पसरि‍ जाए। तखनि‍ भरि‍ देहमे खौंत, पसेना। मोन आऊल। छट-पटी लगि‍ जाए। बाबूक लि‍खौल-
सर्व बाधा प्रशमन....। केर श्‍लोक पढ़ि‍ अपने हाथ अपने माथपर ली। मुदा भरि‍ राति‍ पहाड़ भऽ जाइत छल। आ दि‍नमे जे नि‍न्न हुअए से आँखि‍ नै खुजए। तहि‍या डाक्‍टर बुझी कि‍ वैद गोनर मि‍सरटा छला। नाड़ी देखथि‍ मथाहाथ दथि‍। एक दि‍न एकटा जड़ी सेहो लत्तामे बान्‍हि‍ कऽ देलनि‍ जे गाड़ामे बान्‍हि‍ लेथु। मुदा कोन भूत छल छूटए नै। एक दि‍न आजि‍ज भऽ ओहो मथाहाथ देब मना करि‍ देलनि‍। कहलखि‍न-
कि‍ तँ नवटोल भगवती स्‍थानमे भगतासँ भाउ कराबथु।
तहि‍या कि‍ से सनस्‍था रहै। जैतौं अपने मोने।
दर-देआदक हवेली डौढ़ी सेहो कि‍ लग-लग रहै। एक दि‍न राति‍मे फेर असाद्ध मथदुक्‍खी धेने छल। कोठलीमे कुहरैत छेलौं। कहबो केकरा कहि‍ति‍ऐ? गोनर झा सेहो जवाब दऽ देने छला। सासु छेली नै। हमरा भेल जेना कि‍यो आस्‍तेसँ कहलकैए-
बौआसीन!
अकानलि‍ऐ। तँ ठीके जेना कि‍यो हाक दैत हो।
रोइआँ भुलकि‍ गेल। हनुमान जीक नाम लेलौं। दमसि‍ कऽ कहलि‍ऐ-
के छी?”
-    हम, बौआसीन, लोटना!
-    की छि‍अनि‍?”
-    बड़ कुहरै छथि‍न! गोनर मि‍सरकेँ हाक दि‍अनि‍?”
-    नै।
-    एना कोना रहथि‍न। बड़ तरद्दुत् होइए।
-    मरए देथु हमरा।
-    बलानक पानि‍सँ ओसरा धरि‍ छइहे। मरि‍ जाएब तँ कहि‍हथि‍न फेक दइ जेता।
लोटना, लागल जेना गुम्‍म भऽ गेल छला। मुदा गोंगि‍आइत बाजल रहथि‍, से मोने अछि‍-
डोमा जे भाव खेलाइ छेलै, से हम देखने छि‍ऐ। हमरो तँ मथाहाथ देब सि‍खौने छल। लाजे कहलि‍यनि‍ नै। टोलपर सभ जनी-जाति तँ हमरेसँ माथा-हाथ दि‍अबै छै, जखनि‍ डोमा-भैया गाम-गमाइत जाइ छै।‍
मोन आउल-बाउल छल। प्राण अवग्रह छल। सोचए लगलौं जेकर सोझा पएर नै उघार भेले तेकरा सोझा माथपर सँ नूआ केना उतारब। आ केना मथा हाथ देत।
मुदा प्राण अवग्रहमे छल। की करि‍तौं? कहलि‍ऐ-
केकरो कहि‍हथि‍न नै।
‘जानथि‍ भगवान। बौआसि‍न, एक चुरुक नारि‍केरि‍क तेल देथु।
आ हम बाहरक कोठलीक लाथे हमर कोठलीक जे केबाड़ रहै, खोलि‍ देने रहि‍ऐ। मुदा बि‍छौनसँ उठबाक हूबा नै छल। लगमे नारि‍केरक तेलक बोतल राखि‍ देने रहि‍ऐ। डि‍बि‍आक इजोतमे हम आँखि‍ मुननहि‍ आँगुरसँ इशारा कऽ देने रहि‍ऐ।
हमरा एतबे मोन अछि‍, लोटना एक चुरुक तेल कपारपर ढारि‍ कऽ मलए लागल छला। फुसुर-फुसुर कि‍छु पढ़ि‍तो छला। तेतबे मोन अछि‍। ओकर पछाति‍ कखनि‍ नि‍न्न भऽ गेल आ ओ कखनि‍ कोठलीसँ बहार गेला से मोन नै अछि‍। मुदा एतबा मोन अछि‍ जे ने हमर मथदुक्‍खी छूटल छल आ ने फेर कहि‍यो गोनर झा हमरा मथाहाथ देबए हमर अँगना पएर देलनि‍। ईहो सत्ते जे ने ओइ बलानक बाढ़ि‍मे हमर देहे भँसि‍आएल। आ ने कहि‍यो हमरा लोटनाक मथाहाथ देबाक गुणपर संदेहे भेल। हम की छेलौं? की छी? मोने जनैए।
लोटना नि‍:संतान नै छला तैयो मुखबत्ती लगा कऽ बलानमे भँसौल गेला। सरकार नि‍:संतान छला मुदा संतति‍क हाथे वृषोत्‍सर्ग श्राद्ध भेलनि‍। मुदा हम? हम ‘शेफाली’ छी, की फुलपरासवाली?   

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Dr K N Jha 
MBBS (Honors),MS
Professor of Ophthalmology
Mahatma Gandhi Medical College & Research Institute
Pillaiyarkuppam, Pondicherry- 607402 ( India)