Thursday, April 12, 2012

असिरवादक विरोध :: जगदीश मण्‍डल


असिरवादक विरोध

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अभाव आ गरीबीक बीच पढ़ि-लि‍खि‍ पचास टाकाक मासिक नोकरी शुरू केलनि। हुनक सफलता देखि‍ कुटुम-परिवार सभ असिरवाद देमए पहुँचए लगलनि। एकटा कुटुम कहलकनि- भगवानक दयासँ अहाँक दुख मेटा गेल। आब आरामसँ रहू आ चैनसँ जिनगी बिताउ।
ई असिरवाद सुनिते विद्यासागरक आँखिसँ नोर खसए लगलनि। नोर पोछैत कहलखिन- जइ अध्यवसायिक बले हम ओहन भीषण परिस्थितिक मुकावला केलौं ओकरे छोड़ि दइले कहै छी? अहाँकेँ ई कहबाक चाही छल जे जइ गरीबीक कष्ट स्वयं अनुभव केलौं ओइ परिस्थितिकेँ बिसरू नै। अपन असाध्य श्रमसँ ओइ अवरुद्ध रास्ताकेँ साफ करू।

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