असिरवादक विरोध
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अभाव आ गरीबीक बीच पढ़ि-लिखि
पचास टाकाक मासिक नोकरी शुरू केलनि। हुनक सफलता देखि कुटुम-परिवार सभ असिरवाद देमए
पहुँचए लगलनि। एकटा कुटुम कहलकनि- “भगवानक दयासँ अहाँक दुख मेटा गेल। आब आरामसँ रहू आ चैनसँ जिनगी बिताउ।”
ई असिरवाद
सुनिते विद्यासागरक आँखिसँ नोर खसए लगलनि। नोर पोछैत कहलखिन- “जइ
अध्यवसायिक बले हम ओहन भीषण परिस्थितिक मुकावला केलौं ओकरे छोड़ि दइले कहै छी? अहाँकेँ
ई कहबाक चाही छल जे जइ
गरीबीक कष्ट स्वयं अनुभव केलौं ओइ परिस्थितिकेँ बिसरू नै। अपन असाध्य श्रमसँ ओइ
अवरुद्ध रास्ताकेँ साफ करू।”
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