Thursday, April 12, 2012

खजाना :: जगदीश मण्‍डल


खजाना

एकटा इलाकामे रौदी भऽ गेलै। सभ तरहक परिवारकेँ सभ तरहक जीबैक रास्ता छलैक। मुदा एकटा दशे कट्ठाबला किसान मजदूर छल। जे अपने खेतमे मेहनति‍ कऽ गुजर करै छल। रौदी देखि‍ वेचारा सोचए लगल जे जाबे पानि‍ नै हएत ताबे खेती केना करब? जँ खेती नै करब तँ खएब की? तँए अनतए चलि जाइ जे काज लागत तँ गुजरो चलत। जब बरखा हेतै तँ धुरि कऽ चलि अाएब आ खेती करब। ई सोचि सभ तूर नुआ-वस्तु लऽ विदा भऽ गेल।
जाइत-जाइत दुपहर भऽ गेलै। भूखे-पियासे बच्चा सभ लटुआए लगलै। छोटका बच्चा ठोहि फाड़ि-फाड़ि कानए लगलै। रास्ता कातमे एकटा झमटगर गाछ देखि‍ सभकेँ छाहैरिक आश भेलै। सभ तूर गाछतर पड़ि रहल। छोटका बेटा माएकेँ कहलक- माए, भूखे पराण निकलैए कुछो खाइले दे
बेटाक बात सुनि माएक करेज पघिलए लगलै मुदा करैत‍ की, खाइले तँ किछु रहबे ने करै। मुदा तैयो वेचारी कहलकै- बौआ, कनीकाल बरदास करू। खाइक जोगार करै छी
सभ तूर जोगारमे जुटि गेल। कि‍यो माटिक गोलाक चूल्हि बनबए लगल, तँ कि‍यो जारन आनए गेल। कि‍यो पानि अानए इनार दिस विदा भेल। गाछक ऊपरसँ एकटा चिड़ै कहलकै- ऐ मूर्ख, पकबैक तँ सभ जोगार सभ करै छह मुदा पकेब कथी? जखन पकबैक कोनो चीज छहे नै तँ छुच्‍छे चूल्हि जरेबह
बड़का बेटा यएह सोचैत छल जे कतौसँ किछु कन्द-मूल आनि उसनि कऽ खाएब। मुदा तही बीच चिड़ैक मजाक सुनि खिसिया कऽ कहलकै- तोरे सभ परिवारकेँ पकड़ि आनि पका कऽ खेबौ
चिड़ैक मुखिया डरि गेल। मने-मन सोचए लगल जे परस्पर सहयोगक पुरुषार्थ किछु कऽ सकैत अछि। तँए झगड़ब उचित नै। मिलान स्वरमे बाजल- भाय, हमरा परिवारकेँ किअए नाश करबह। तोरा गारल खजाना देखा दइ छिअह। ओकरा लऽ आबह आ चैनसँ जिनगी बितबि‍हह
ओ चिड़ै खजाना देखा देलकै। सभ मिलि‍ ओइ खजानाकेँ लऽ घर दिस घुमि‍ गेल।
ओकरा घरक बगलेमे दोसरो ओहने परिवार छलै। जकरा सभ बात ओ कहि देलकै। मुदा ओइ परिवारक सभ कोढ़ि‍ आ झगड़ाउ। खजानाक लोभे ओहो सभ-तूर विदा भेल। जाइत-जाइत ओइ गाछ तर पहुँचल। पहिलुके जकाँ भानस करैक नाटक सभ करए लगल। गारजन जकरा जे अढ़बै से करैक बदला झगड़े करए लगै। गाछपर सँ वएह चिड़ै कहलकै- भोजनक जोगारे करैमे तँ सभ कटौझ करै छह तखन पकेबह कथी?”
पहिलुके जकाँ परिवारक मुखिया कहलकै- तोरे पकड़ि कऽ पकेबह?”
हँसैत चिड़ै उत्तर देलकै- हमरा पकड़ैबला कि‍यो आर छल जे सभ धन लऽ चलि गेल। तोरा बुत्ते किछु ने हेतह?”

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