Saturday, April 7, 2012

उपहास :: जगदीश मण्‍डल


उपहास

कोनो अधलो प्रचलन माने चलनि‍ आकि‍ ढर्राकेँ तोड़ब अपने-आपमे कठिन कार्य होइत। जखन कखनो कि‍यो समाज आकि‍ परिवारमे गलत कार्यकेँ छोड़ि स्वस्थ आकि‍ तर्कयुक्त कार्य आरंभ करैत तँ सिर्फ परिवारेटा मे नै समाजोमे सभ उपहास करैत अछि। जइसँ धैर्यवान तँ स्थिर रहैत मुदा साधारण मनुख अधीर भ जाइत।
पहिने इंग्लैंडमे छतरी -छत्ता- ओढ़नाइ गमाड़पन बुझल जाइत छलै। जइ दुआरे लोक बरखोमे भीजैत चलैत मुदा छाता नै ओढ़ैत। ऐ गलत प्रथाक विरोध करैत हेनरी जेम्स छाता ओढ़ब शुरू केलनि। सदिखन ओ छाता संगेमे राखथि। जइसँ जेम्‍हर होइत चलथि‍ व्यंग्यक बौछार हुुअए लगनि। मुदा तेकर एक्को पाइ परवाह नै करथि।
देखा-देखी लोक हुनकर अनुकरण करए लगल। किछु दिनक बाद सभ छाता राखए लगल। जइसँ चलनि बनि गेल। चलनि‍ एत्ते बढ़ि गेलै जे स्त्रीगणो आ राजमहलोक सभ छाता ओढ़ए लगल।
बादमे जएह सभ व्यंग्य करैत वएह सभ हेनरी जेम्सकेँ बधाइ देमए लगलनि। बधाइ देनिहारकेँ हेनरी जेम्स कहथिन- जे कि‍यो, उपहास आ व्यंग्यक विरोधसँ नै डरत, वएह छोट-सँ-पैध धरि परिवर्तन कऽ सकैत अछि।
चाहे शिक्षा हो आकि‍ खेती आकि‍ आन-आन जिनगीक पहलू, रुढ़िवादी पुरान प्रथाकेँ तोड़ए पड़त। जाबे ओ नै टुटत ताबे नव समाजक निर्माण कल्पना रहत। तँए किछु प्रथाकेँ तोड़ि आ किछुकेँ सुधारि चलए पड़त। ऐ लेल सभमे साहस आनए पड़त।



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