निशॉ :: जगदीश मण्डल
निशाॅ
एकटा बेपारी
अफीम खाइत छल। ओ अपना नोकरोकेँ अफीमक चहटि लगा देलक। एक दिन दुनू गोटे बाजार जाइक विचार
केलक। दोकानमे जे सामान सभ सठल रहै ओकर पुरजी बनौलक। रूपैया गनलक। दुरस्त बाजार रहने
दुनू गोटे घरेपर भरि पेट खा लेलक। बाजार विदा भेल। किछु दूर गेलापर दुनू गोटे खेनाइ
बिसरि गेल। रास्तामे होटल छलै, दुनू गोटे घोड़ासँ उतरि खाइले गेल। घोड़ाकेँ छानि कऽ चरैले
छोड़ि देलक। दोकानमे दुनू गोटे खा सोझे बजार विदा भेल। बजारक कात जखन पहुँचल तँ बेपारीकेँ
मन पड़लै जे घोड़ा ओतै छूटि गेल। मनहूस भऽ दुनू गोटे माथपर हाथ दऽ बैस
रहल। थोड़ेकाल गुनधुन करैत घोड़ा आनए दुनू गोटे घुमि गेल। घुमि कऽ दोकान लग आएल तँ
घोड़ाकेँ चरैत देखलक। लगाम लगा दुनू गोटे चढ़ि बजार दिस विदा भेल। बाजार पहुँचि दोकानमे
सौदा-बारी कीनलक। सामान समेटि, मोटरी बान्हि जखन रूपैया देमए लगलै तँ रूपैयाक झोरे
नै। दुनू गोटे मन पाड़ए लगल जे रूपैयाक झोरा की भेल? किछु कालक
बाद मन पड़लै जे झोरा तँ ओतै छूटि गेल जेतए बैसल छलौं। दुनू गोटे बपहारि काटए लगल। कनैत
देखि, एकटा ग्रामीण महिला सामान किनैत छलि, बेपारीकेँ कहलक- “ई गति सिर्फ
अहीं दुनू गोटेकेँ मात्र नै बल्कि सभ नसेरीकेँ होइ छै।”
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