मनुखक मूल्य
एक दिन सिकन्दर आ अरस्तू कतौ जाइत रहथि। रास्तामे एकटा
नदी छल। जइ नदीमे नाहपर पार हुअए पड़ैत छलै। पहिने अरस्तू पार हुअए चहैत
छलाह मुदा सिकन्दर हुनका रोकि अपने पार भेलाह। जखन सिकन्दर दोसर पार गेलाह तखन अरस्तूकेँ
पार होइले कहलखिन। पार भेलापर अरस्तू सिकन्दरकेँ पुछलखिन- “पहिने हमरा पार होइसँ किएक
मना केलौं?”
हँसैत सिकन्दर उत्तर देलखिन- “अगर हम नदीमे डूमि जैतौं तैयो अहाँ हमरा सन-सन दसो
सिकन्दर पैदा कऽ सकैत छी मुदा जँ अहाँ डूमि जैतौं तँ हमरा सन-सन दशोटा सिकन्दर
बुत्ते एकटा अरस्तू नै बनाओल भऽ सकैत अछि।”
सिकन्दरक विचार सुनि अरस्तू अपन जिनगीक मूल्य बुझलनि।
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