Tuesday, April 24, 2012

उपकार



रग्घू कनियाँ पीलियासँ ग्रस्त अंतिम अवस्थामे दिल्लीक लोकनायक जयप्रकाश अस्पतालमे आइ  दस दिनसँ भर्ती भेल जीवन आ मृत्युक बिच संघर्ष कए रहल छलथि  | पीलियाक अधिकता आ कोनो आन कारणे आँखिमे से इन्फेक्सन भए गेलनि लोकनायक जयप्रकाश अस्पतालक डाक्टर रग्घूसँ कहलकनि जे कनियाँक आँखि लोकनायक जयप्रकाश अस्पतालक बगलेमे आँखिक अस्पताल गुरुनानक आई हॉस्पिटल छैक ओहिठामसँ जाँच करा कए आनै लेल |
रग्घू  डाक्टरक बात मानि एहि काजमे लागि गेला | लोकनायक आ गुरुनानक दुनू सरकारी अस्पताल छैक तैं खर्चाक बात नहि मुदा  रग्घूकेँ  बोनि मजुरी रहैन रोज कमाऊ आ रोज खाऊ आ आइ दस दिनसँ अपन बोनि छोरि कनियाँ संगे एहि ठाम अस्पतालमे छथि | दस दिनसँ नव काज नै | जमा पूंजी खत्म | एखन तत्काल लोकनायकसँ गुरुनानक अस्पताल तक जाइमे पन्द्रह रुपैया जइती आ पन्द्रह रुपैया आबितीतिस रुपैया चाही  | हुनका लग छलनि कुल दस रुपैया | ओहि दस रुपैयामे अपन किछु  नास्ता भोजन सेहो, कनियाँकेँ  तँ  अस्पतालेमे भेट जाइ छलनि | ओइ ठामसँ काज करै लेल कतौ जेबों करता ताकी पाइ  होइन तँ  कम सँ कम दस रुपैया बस भारा चाहीएन |
  सभ समस्याकेँ जनैत रग्घूक कनियाँ रग्घूसँ कहलनि,  " फोन कए  ' अपन भैयासँ दू सय रुपैया माँगि लिअ, काइल्ह-परसु काज कएला बाद पाइ होएत तँ  दए  देबैन |"
रग्घू अपन कनियाँकेँ कन्हापर उठा लोकनायकसँ गुरुनानक अस्पतालकेँ लेल बिदा भए गेला आ चलैत-चलैत बजला, "अहाँ जुनि चिंता करु, रिक्सासँ नीक सबारी हमर पिठक होएत आ रहल ई  मुसीबत तँ  ई तँ चारि दिन बाद खत्म भए  जाएत मुदा केकरो उपकार सधबैमे पूरा जीवनों कम परत |"   

ठकबुद्धि


विलट राम पहिल बेर दूनू प्राणी गाम आयल अछि.संग मे दूनू बच्चा सभ सेहो अयलहि अछि.गंगाधर पण्डित कार सँ उतरैत विलट, ओकर कनिञा आ' बच्चा सभके देखने रहथि.अनमन विदेशी लगैछै. गोर धप-धप बच्चा सभ. कनिञा सेहो बड्ड सुन्नरि छैक.विलट त' पहिनहि जँका अछि.गहुँमक रंग सन मुदा मूँहक चमक बढ़ि गेलैक अछि.किएक नहि बढतै कलक्टरक पोस्ट कोनो मामूली पोस्ट नहि होइ छै.जिलाक राजा होइत अछि कलक्टर.तखन राजसी ठाठ-बाठक चमक त' एबे करतै.कनिञा बिभा कुमार सेहो एस.डी.ओ.छैक.दू बरखक जुनियर छै कनिञा विलट सँ.दिल्लीए मे दुनू प्रेम विवाह केने रहए.बेचनी, विलटक माय दियामान सँ फाटल जा रहल छै.पाँच बरखक पोता राकेश आ' दू बरखक पोती रश्मि के देख ओकर खुशीक कोनो ठेकान नहि छै.बेर-बेर दुनू के करेजा सँ सटाबैत अछि.राकेशक मुँह सँ "दादी" शब्द सुनतहि ओकर आँखि नोरा जाइत छै.आँचरक खूट सँ बेर-बेर अपन आँखि पोछि लैत अछि बेचनी.

भरि गामक लोक करमान लागल छै विलटक दलान पर. गंगाधर पण्डित जी, दयाकांत मास्टर साहेब,किरतु मुखिया,...गामक मुँहपुरूख बच्चा बाबू सेहो कुरसी लगा बैसल छथिन्ह.एतबे मे रश्मि के कोरा मे नेने विलट सेहो आँगन सँ दलान पर अबैत अछि.विलटक अबिते ओहिठाम कुरसी पर बैसल सभ लोक ठाढ़ भऽ जाइत अछि.विलट,बच्चा बाबू,पण्डितजी,मास्टर साहेब,सभ के पएर छूबि गोर लगैत अछि.मास्टर साहेब विलट के भरि पाँज पकरि छाती सँ सटा लैत छथिन्ह.हुनका मूँह पर गर्वक भाव स्पष्ट देखार भऽ रहल छैन्ह जे हुनकर विद्यार्थी आइ कलक्टर बनि गेल.विलट सभ के विनम्र भावे बैसबाक आग्रह करैत अछि.सभ बैसथि अछि.

भरि गौँआ के आइ गर्व भऽ रहल छैक जे ओकरा गाम मे एकटा कलक्टर सेहो छैक-बच्चा बाबू विलट दिस तकैत बजलाह........एक्केटा नहि दू टा बच्चा बाबू -पण्डित जी बिचहि मे बच्चा बाबूक बात कटैत कहलखिन्ह.कनिञा सेहो अगिला साल धरि कलक्टर बनिए जेतीह ने...पण्डित जी आँगा बजलाह.विलट किछु नहि बाजल.खाली मुस्कियाएल रहए कने.

आँगन सँ गोपीया, विलटक पितियौत एकटा छिपली मे पाँच-छह कप चाह नेने आयल.सभ गोटे चाह पिबै लगलाह.एतबे मे बुद्धिनाथ सेहो विलटक दलानक आँगा बाटे कोम्हरो जाइत रहथि....कतौ जाइत नहि रहथि..ओ त' विलटे सँ भेँट करय आयल रहथि मुदा विलट ल'ग बच्चा बाबू के देखि दोसर बाट पकड़ि लेलथि.सात पुरूखा सँ दुनूक परिवार मे एक-दोसराके निच्चा देखेबाक होर मचल छन्हि.पुस्तैनी दुश्मनी चलैत छन्हि."देखहक बच्चा बाबू केहन निर्लज्ज भऽ गेल, बेचनीक दुआरि पर बैसि आब चाह पिबैत अछि....चमारक दुआरि पर..राम-राम." -ई बात कंटीर सँ कहैत काल बुद्धिनाथक स्वर मे अपन दुश्मन सँ पाँछा भऽ जेबाक खौँझी स्पष्ट प्रतीत भऽ रहल छलैन्हि.

राकेश हाथ मे एकटा गेन नेने दलान पर आयल आ' विलट के अपना सँग खेलबाक लेल जिद्द करय लागल. बच्चा बाबू ओकरा अपना कोरा मे बैसा लेलखिन्ह आ' गाल पर चुम्मा लऽ लऽ दुलारऽ लगलखिन्ह.बच्चा बाबूक कोरा मे  अपन पोता के बैसल देखि बेचनी के करीब तीस बरख पहिलुका बात मोन परि गेलइ.छहे मासक रहैक विलटु..हाँ विलट..भरि गौँआ आ' बेचनी सभ तऽ विलटुए कहैत छलै विलट के.बेचनी लेल तऽ विलट एखनहु विलटुए अछि.

ओहि दिन बेचनी एसगरे रहए घर मे.सासु नैहर गेल रहए.ससुर सासु के पहुँचाब गेल रहथिन्ह.विलटक पिता सेहो कोनो आन गाम गेल रहय रसनचौकी बजबै लेल.नवहथ बाली गिरहतनी माने बच्चा बाबू गिरहतक घरबालीके बच्चा होनहारी रहए.प्रसवपीड़ा उठि गेल रहए.बच्चा बाबू गिरहत के हुनकर बाबू माने बड़का गिरहत पठेने रहथिन्ह माय के बजा अनय लेल.असमंजस मे परि गेल रहए बेचनी......घर मे पुरूष-पात नहि छै.ओकरा एखन सालो नहि पुरलैए सासुर बसना. कोना जेतइ घर से बाहर...? छह मासक बच्चा के कत' रखतइ...?.'तऽ आई धरि कहियो, ककरो परसौती करेबो नहि केलकइ....मुदा, नहि जेतइ त' पसारी छियैक गिरहत छुटि जेतइ....बोनि मरि जेतइ....मालिक की कहतइ....तहू मे बड़का गिरहत.....सौसे गाम हुनकर धाक करै छै....बड़का कलेवर बला लोक छथि...अन्ततः बेचनी अपन पितीया सौस के संग कऽ गेल रहए.विलटु के सेहो संगे नेने गेल रहए. छए मासक बच्चा के कत' रखितइ.

सूरेश बाबू जनमल रहथिन्ह.बड़का गिरहत, बच्चा गिरहत सभ गिरहतनि,सभ केयो बड्ड हरखित रहथिन्ह.बेचनी सेहो मोने मोन निचेन भेल रहए जे गिरहत नहि छुटलै.बेटा जनमलैन्ह तै बोइनो बेशी कऽ के भेटतइ.घोघ तनने, विलटुके कोरा मे उठेने विदाह भेल रहए कि तखने पएर मे किछु अभरल रहए.घोघ त'र से नहि देखायल रहए ओकरा. अरे बाप रे ..जुलूम भऽ गेलै..मैँयाक पितरिया लोटा छुआ गेलै...कोनो बच्चा चिकरि उठल  रहए.बेचनी के देह जेना पथरा गेल रहै ई बात सुनितहि देरी...बु......दी,ख...राही..,असर्ध-असर्ध गारि पढ़ैत बच्चा बाबू बेचनी दिस मारय लेल हुरकल रहै..ओ'तऽ बेचनी के पितिया सौस पएर पर खसि परल रहै बच्चा बाबू आ' बड़का गिरहत के तँइ जान बचलै.एकएक टा बात,एकएक टा गारि बेचनी के एखनहु ओहिना मोन छै.एखन धरि नहि बिसरल भेलैए ओहि अपमान के...विलटुआ के बाप जखन गाम अयलहि तऽ सभटा बात बेचनी कहि देलकै आ' दुनू परानि ओही दिन सप्पत खैने रहै जे आब ओ ककरो पसारी बनि के नहि रहत.छुटि गेलै गिरहत..छुटलै कि छोड़ि देलकै...फेर विलटुआक बाप रसनचौकी बजाके आ' बेचनी खेत मे बोइन कऽ के विलटु के पढेलकै.......कलक्टर बनेलकै.परूका साल विलटु के बाप चलि गेलै बेचनी के असगरे छोड़ि के.नहि...नहि ओ एसगर कहाँ अछि......भरल-पुरल परिवार छै.एहन परिवार जकरा देख ककरा ने सेहन्ता लगैत छै.बेचनी के आँखि फेर नोरा गेल रहै.ओ फेर आँचर सँ आँखि पोछि लेलक.एतेक दिन बेचनी के एकटा प्रश्न बेर-बेर मोन मे उठैत छलै जे बच्चा बाबूक पुतोहु डाक्टरनी छै.ओहो तऽ परसौती करबै छै लेकिन ओकर छूअल किछो किएक नहि छुआएत छैक...?..मुदा आई अपना दलान पर बच्चा बाबू के चाह पिबैत देख बेचनी के एहि प्रश्नक उत्तर सेहो भेट गेलै.

मंच सजल छैक.मंच पर विलट बैसल अछि.गामक गणमान्य लोक सभ सेहो बैसल छथि.विलटक सम्मान समारोह आयोजित कयल गेल अछि.सभटा खर्च बच्चा बाबू केलखिन्ह.माइक पर किरतु मुखिया भाषण दऽ रहल छथिन्ह.-"हमर गामक श्री विलट राम,कलक्टर बनि गेलाह. ई हमरा सभक लेल गौरव के बात अछि.हम सभ आइ हुनका समस्त ग्रामीणक तरफ सँ सम्मानित करब..." बच्चा बाबू विलट के पाग, माल आ' दोपटा पहिराय सम्मानित करैत छथिन्ह.विलटक मुँह पर एखनो बस मुस्की टा छै.ओकरा सभटा बुझल छैक.बच्चा बाबूक किरदानी...मायक ब्यथा...समाजक चापलूसी..सभ जनैत अछि विलट आ तइँ ओकरा माथक पाग कोनो ठकक द्वारा पहिराओल टोपी सँ बेशी नहि लगैत छैक.मुदा,आब विलट ठकाइ बला नहि अछि आर तइँ ओकरा बच्चा बाबूक ठकबुद्धि पर हँसी लगैत छैक.

लोहनावाली


भोरक करीब सात बजैत रहै. लोहनावाली भनसाघर मे चुल्हा पजारति रहय.सिमसल चेरा पजरैत नहि रहय खाली धुआँइत छलैक. धुआँ भरल भनसाघर. फुकैत-फुकैत अकच्छ मोन भेल छै. आँखि फुटि रहल छलैक ओहि
धुआँभरल भनसाघर मे. आँखि लाल बून्न भ' गेल रहय. आँखि सँ नोर बहय लागल रहय मुदा कनैत नहि रहय एखन लोहनावाली. ओ त' आँखि मे धुआँ लागि गेल रहय तइँ नोरा गेल रहय.कानल त' राति मे रहय ओ. भरि राति कानल रहय...भरि राति कि जीवन भरि त' कनिते रहल अछि. ...नहि..नहि..जीवन भरि नहि .....जहिया से एहि घर मे वियाहि के आयल अछि तहिया से..जा धरि वियाह नहि भेल रहै, नैहर मे रहैत रहय, कहियो कोनो दुख-दर्दक भान नहि भेलै.बेटी भऽ जनम नेने छल तइयो बड्ड प्रेम भेटैत छलै माय-बापक.तीन भाय-बहिन मे एसगर बहिन तहू मे सबसे छोट.सभक मुहलगुआ..मायक रधिया..बाबूक राधा बेटी,......लोहनावाली........चुल्हि फुकैत लोहनावाली.
राति मे फेर जुगेसरा पी के आयल रहय.बड़का पियक्कर निकलि गेलैए.रोज ताडी-दारू चाही.सभटा जथा-पात बेचि पीबि गेलै.बड्ड मना करैत छैक लोहनावाली मुदा के सुनैए ओकर गप्प. बेचारी के रोज गारि-फज्झति सुन' पड़ैत छै उनटे.की करतइ अबला नारी, सहि लैत छैक सभटा.मुदा आब ओकरो कखनो-काल बर्दाश्त सँ बाहर भऽ जाइत छैक.मोन होइछै जे मरि जाय.एहन जीवन से त' मुइनहि नीक.फेर, दूनू बच्चा के मुँह देखि शांत भऽ जाइत अछि.आठ बरखक सुधीर आ पाँच बरखक सरिता छैक.इसकुलक मास्टर कहैत छथिन्ह जे सुधीर पढ़ै मे बड्ड तेज छैक आ' तइँ एतेक मारि-गारि खेलाक बादो लोहनावालीक एकेटा मनोरथ जियौने छैक जे सुधीर पढ़ि लेतै त' सभटा कलेश दूर भऽजेतइ.सरिता त' बेटी छियैक.अनकर धन.बस कोनो नीक ठाम बियाह भऽ जेतइ तँ सभ चिन्ता दूर भऽ जेतइ लोहनावाली के....आँच एखनो नहि पजरलैए...बियनि तकैत लोहनावाली.

रामावतार, लोहनावालीक जेठ भाय. बड्ड स्नेह करै छै लोहनावाली से रामावतार. कोनो एहन मास नहि होइछै जे ओ' नैहर से लोहनावाली ले सनेस नहि अनैत हो...सनेस की आब त' लोहनावालीक गुजरो नैहरेक बल पर होइ छै. हरदम पाइ-कौड़ी नैहर से अबैत रहैत छै.पन्द्रहो दिन नहि भेलैए दू गारी आमक चेरा पठा देने रहै रामावतार.एखनो सौसे दरबज्जा पसरल छै. पानि मरैले रौद मे देने रहए.ओही चेरा मे से एकटा घीचि के जुगेसरा राति मे मारने रहै लोहना बाली के. पाँजर मे एखनो कारी-सियाह चेन्ह भेल छै. ई चेन्ह त' तइयो मेटा जेतइ मुदा करेजा मे जे अपमान आ' दुत्कारक चेन्ह लागल छै से त' मुइनहि मेटैते....आँचर सँ नोर पोछैत लोहनावाली.

परसू रामावतार आयल रहै. जाइत काल गोरलगाइ मे एक सय टाका दैत गेल रहै लोहनावाली के. एकमास से सुधीर किताब कीनि दै ले हल्ला मचौने छेलइ.पचास टाका किताबे किनइ मे खर्च भऽ गेल रहय.बीस टाका गामबाली काकी से पैँच लेने छल.सरिताक दबाइक खातिर. ओहो सधा देलकै. तीस टाका बचल छेलै.ओहे तीस टाका काल्हि साँझ मे जुगेसरा के देने रहै लोहनावाली आ' बेर-बेर बुझा के कहने रहय जे घर मे सिधहा खतम भऽ गेल छै से ई पाय कत्तौ अनतऽ नहि खर्च करबा लेल.....अनतऽ की......एहि पाय के पीबै लेल नहि.मुदा हेहर भऽ गेल छै जुगेसरा.कोनो मतलब नहि छै ओकरा जेना बहु बच्चा से. दारू भेट जाउ बस आर किछ नहि चाही.भरि दिन टहलानी मारैत रहै छै.कोने-कोन गाजा तकैत रहैत छै.महा निशाँबाज भऽ गेल छै...पीबि गेलै ओहो तीस टाकाक दारू.साँझखन छूछै हाथ डोलबैत अबैत देख लोहनावाली के तामश चढ़ि गेल रहए.तामश एहि दुआरे नहि चढ़ल रहए जे ओ की खायत,लेकिन धिया-पुता के कोना भूखले सूत' देतइ.साँझे सँ बाट तकैत छल चुल्हि लग बैसलि.एकोरत्ती मोन मे विचार नहि अछि? कोना के पी गेलियै?...एतबे बाजल रहै लोहनावाली कि धेले चेरा मारि देलकै जुगेसरा.लोक-लाजक डर की बाजत.चुप्पे रहि गेल लोहनावाली.ओहन झाँट-बिहाड़ि एलै किछु नहि बुझलकै ओ.सून्न भऽ गेल रहैक ओकर दिमाग जेना.सभटा चेरा भीजि गेलइ.सुधीर आ' सरिता मायक कोरा मे मूड़ी नुकौने निन्न पड़ि गेलै.भुखले सूति रहलै...आ टक-टक तकैत रहि गेल लोहनावाली....भरि राति कनैत रहल लोहनावाली.

जखन लाल बहादुर शास्त्री देशक प्रधानमंत्री बनल रहथि तखन देशमे अन्न-संकट छल आ' ओहि समय मे गाम-घर मे एकटा प्रथा जनमल जे गृहणी लोकनि जखन सिधहा लगाबय लागथि तखन ओहि मे सँ एकमूठ्ठी चाउर निकालि के अलग राखि लैत छलीह आ' एकरा मुठिया चाउर कहल जाइत छल.एहि जोगाओल चाउरक उपयोग ओ' विपरीत काल मे घर चलैबाक लेल किनइ-बेसाहइ मे करैत छलीह.लोहनावाली सेहो माय के देखने रहै मुठिया चाउर जोगबैत आ' तइँ ओहो जोगा के रखइत छल मुठिया चाउर.

पैर नहि उठैछै भनसाघर दिस जाइक लेल.की करतइ ? भरि राति धीया-पुता भूखले छै.जल्दी-जल्दी चुल्हा लग आयल जे किछ बना के देतइ बच्चा सभ के. सुधीर के बजेलक आ एकटा तौला मे राखल मुठिया चाउर के पोटरी बान्हि दालि किनबा ले दोकान पठा देलकै.ओही तौला मे सँ सिधहा सेहो निकाललक.आँच धधकि गेलै.कतेक दिन तक ओ चलेतै घर एहि मुठिया चाउरक बलेँ...सोचैत अछि लोहनावाली..अधहन चढ़बैत लोहनावाली...सुधीरक बाट तकैत लोहनावाली.आब तऽ एकटा सुधीरे सँ आशा छैक जकरा बलै दिन काटत लोहनावाली.

Friday, April 20, 2012

कपारक लिखल


विहनि कथा
कपारक लिखल
शर्माजीक आफिस शनि आओर रवि सप्ताह मे दू दिन बन्न रहै छैन्हि। आइ शनि छल। आफिस बन्न छल आ शर्माजी दरबज्जा पर बैसल छलाह। तावत एकटा भिखमंगा दरबज्जा पर आएल आ बाजल- "मालिक दस टाका दियौ। बड्ड भूख लागलए।" शर्माजी बजलाह- "लाज नै होइ छौ। हाथ पएर दुरूस्त छौ। भीख माँगै छैं। छी छी छी।" भिखमंगा बाजल- "यौ मालिक, पाई नै देबाक हुए तँ नै दियऽ, एना दुर्दशा किएक करै छी। हम जाइ छी।" ओकरा गेलाक बाद शर्माजी खूब बडबडयला। देशक खराप स्थित सँ लऽ कऽ भिखमंगाक अधिकताक कारण आ नै जानि की की, सब विषय पर अपन मुख्य श्रोता कनियाँ केँ सुनबैत रहलाह।
दुपहर मे भोजन कएलाक उपरान्त आराम करै छला की कियो गेट ठकठकाबऽ लगलै। निकलि कऽ देखैत छथि एकटा त्रिपुण्ड धारी बबाजी ठाढ छल। हिनका देखैत ओ बबाजी बाजऽ लागल- "जय हो जजमान। दरिभंगा मे एकटा यज्ञक आयोजन अछि। अपन सहयोगक राशि पाँच सय टाका दऽ दियौक।" शर्माजी- "हम किया देब?" बबाजी- "राम राम एना नै बाजी। पुण्यक भागी बनू। फलाँ बाबू सेहो पाँच सय देलखिन्ह। अहूँ पुण्यक भागी लेल टाका दियौ।" शर्मा जी- "हमरा पुण्य नै चाही। हम नरक जाइ चाहै छी। अहाँ केँ कोनो दिक्कत? बडका ने एला हमरा पुण्य दियाबैबला।" ओ बबाजी बूझि गेल जे किछु नै भेंटत आ ओतय सँ पडा गेल।
साँझ मे शर्माजी लाउन मे टहलै छलाह। सामने सँ तीन टा खद्दरधारी ढुकल आ हुनका प्रणाम कऽ कहलक- "विधान सभाक चुनाव छैक। दिल्ली सँ फलाँ बाबू एकटा रैली निकालबाक लेल आबि रहल छथि। ऐ मे बड्ड खरचा छैक। अपने सँ निवेदन जे दस हजार टाकाक सहयोग करियौक।" शर्माजी बिदकैत बाजलाह- "एहि लाउन मे टाकाक एकटा गाछ छै। अहाँ सब ओहि मे सँ टाका झारि लियऽ।" एकटा खद्दरधारी बाजल- "हम सब मजाक नै कऽ रहल छी आ आइ कोनो बहन्ना नै चलत। टाका दियौ अहाँ। अहाँक बूझल अछि ने जे हमरे सभक पार्टीक सरकार छै। अहाँक बदली तेहन ठाम भऽ जायत जे माथ धुनबाक अलावा कोनो काज नै रहत।" शर्माजी गरमाइत बाजलाह- "ठीक छै हम माथ धुनबा लेल तैयार छी। अहाँ सब जाउ आ बदली करबा दियऽ। निकलै छी की पुलिस बजाबी।" खद्दरधारी सब धमकी दैत ओतय सँ भागि गेल।
रातिक तेसर पहर छल। शर्माजी निसभेर सुतल छलाह। एकाएक हुनकर निन्न ठकठक आवाज पर उचटि गेलैन्हि। कनियाँ केँ उठा कऽ कहलखिन्ह जे कियो दरबज्जाक गेट तोडि रहल अछि। दुनू परानी डरे ओछाओन मे दुबकि गेलैथ। तावत गेट टूटबाक आवाज भेलै आ टूटलहा गेट दऽ कऽ सात टा मोस्चंड शर्माजी केँ गरियाबैत भीतर ढुकि गेलै। सब अपन मूँह गमछी सँ लपेटने छल। एकटाक हाथ मे नलकटुआ सेहो छलै। बाकी दराती, कुरहरि, कचिया आ लाठी रखने छल। एकटा लाठी बला आबि कऽ हुनका जोरगर लाठी पीठ पर दैत कहलकन्हि- "सार, सबटा टाका आ गहना निकालि कऽ सामने राख। नै तँ परान लैत देरी नै लगतौ।" शर्माजी गोंगयाइत बजलाह- "हमरा नै मारै जाउ। हम हार्टक पेशेन्ट छी। इ लियऽ चाबी आ आलमीरा मे सँ सब लऽ जाउ।" ओ सब पूरा घर हसौथि लेलक। पचास हजार टाका आ दस भरि गहना भेंटलै। फेर हिनकर घेंट धरैत डकूबाक सरदार बाजल- "तौं तँ परम कंजूस थीकैं। कतौ खरचो तक नै करै छैं। एतबी टाका छौ। सत बाज, नै तँ नलकटुआ मूँह मे ढुका कऽ फायर कऽ देबौ।" इ कहैत ओ नलकटुआ हुनकर मूँह मे ढुकेलक। ओ थर थर काँपैत बाजऽ लगलाह लैट्रिनक उपरका दूछत्ती मे दू लाख टाका आ बीस भरि गहना राखल छै। लऽ लियऽ आ हमरा छोडि दियऽ। सरदार दू जोरगर थापर दैत कहलकैन्हि आब लैन पर एले ने, आर कतऽ छौ बाज। शर्माजी किरिया खाइत बजलाह आब किछो नै छै बाबू, छोडि दियऽ हमरा। डकैत सब सबटा सामान समटि कऽ विदा भऽ गेल। थोडेक कालक बाद हिम्मति कऽ कऽ ओ चिचियाबऽ लगलाह- "बचाबू, बचाबू डकूबा........।" अडोसी पडोसी दौगल एलथि। कियो पुलिस बजा लेलक। पुलिस खानापूर्ति कऽ कऽ चारि बजे भोरबा मे चलि गेलै। शर्माजी अपन माथ पीटैत बाजै छलाह- "आइ भोरे सँ शनिक कुदृष्टि पडि गेल छल। कतेको सँ लुटाई सँ बचलौं, मुदा कपारक लिखल छल लुटेनाई से लुटाइये गेलौं।"

विहनि कथा-- इयाद

विहनि कथा-- इयाद पिछला साल ।दुर्गा पूजा ।अनेक रंग के प्रकाश सँ सजल मँचक सामने पाकरि गाछ त'र सँ हुनका पर एना नजरि गड़ेने छलौँ जेना जंगल मे शीकारी पशु अपन शिकार पर टकटकी लगेने रहै यै ।ओ एहि सब सँ अंजान छली मुदा हमरा सन कतेको हुनक मुखमण्डलक सौँन्दर्यक रसपान क' रहल छल ।हुनकर रूप के माँग सजल सिनूर और बढ़ा रहल छलै ।नाटकक एक-एक भाव हुनकर मुहक भाव देखैत छलौँ ।हुनकर हँसी सँ हास्य आ डबडबाएल नैन सँ करूण अभिनय के भाव स्पष्ट भ' रहल छल । ओ के छली? जानि नै ,मुदा ओ जे केऊ छली हम हुनका सँ बन्हा गेल छलौँ ।एहि बेर दुर्गापूजा मे मोन नै रहितो .ओहि पाकरि गाछ त'र बैसल छी ।हमर जोड़ा आँखि हुनका खोजि रहल छै मुदा ओ नै छथि ।मोन बड व्याकुल भ' गेल ।पता लगा रहल छी ,जे ओ कत' छथि ।तेसर दिन पता चलल ,हुनक दर्शन आब कहियो नै हेएत ।दहेजानन्द अपन शक्ति बढ़ाब' लेल हुनक बली चढ़ा देलकै ।इ समाज हुनका पाइ लेल मारि देलकै मुदा इयाद के नै मारि सकै यै ।भले हीँ ओ पंचतत्व मे समा गेलनि मुदा ओ नाटकक भाव कहैत मुखमण्डल सदिखन हमर इयाद मे जीबैत रहत , हँसैत रहत ।
अमित मिश्र

विहनि कथा- घोर संकट

विहनि कथा- घोर संकट

सरोज अपन वियाहक कार्ड पर दोस्त सबहक नाम लिखैत छल तखने टेबूल पर राखल मोबाइल बाज' लागलै । फोन कोनो अनचिन्हार नम्बर सँ आएल छलै । दोसर दिस सँ जे किछ कहल गेलै सँ सूनि सरोजक मुँह जे कने काल पहिले हँसै छल आब कोनो विपदा कए भाव ओहि मुँह पर नाचि रहल छलै । हाँ-हूँ किछ नहि बाजि सकलै । मोन मे अनेको सुनामी एक्के बेर उठि गेलै । फोन काटि सोफा पर आबि क' बैस रहल । आँखि बंद क' डरल मोन सँ सोच' लागल , चारि साल पहिले जकरा सँ एकतरफा प्रेम करै छलौँ आ ओ मिसियो भाव नहि दै छली एतेक दिन कए बाद आइ फोन क' कहि रहल यै जे ओ हमरा सँ बड प्रेम करै छथि , जँ हम हुनका नहि अपनेबै त' ओ अपन प्राण द' देती । एहन समय मे इ सब भ' रहल छै जखन आइ राति हुनक वियाह छै आ परसू हमर । भगवान इ केहन दिन देखा रहर छथिन । एक दिश ओ , दोसर दिश हम आ तेसर दिश सब बात सँ अंजान हमर होइ बाली कनियाँ , किछ नहि फुरा रहल की करी आ की नहि? कोनो उपाय नहि सूझि रहल छै एहि घोर संकट सँ बचबाक?


अमित मिश्र

Thursday, April 19, 2012

कुण्ठित मानवता

घरमे मुरारीजिक कनियाँ अपन आठ बर्खक बेटा आ पाञ्च बर्खक बेटीकेँ  कोनोना सम्हारैमे लागल, मुदा हुनक मोनक भावसँ साफ देखा रहल छल जे हुनकर मोन पुर्णतः मुरारीजीपर लागल छलनि, जे की रातिक दस बजला बादो एखन धरि  नोकरीसँ घर नहि एलथि |
कोनोना दुनू  बच्चाकेँ  सुतेलथि | समयक सुइया सेहो आगू  वरहल | दससँ एगारह बाजल | हुनक मोनमे संका सभक आक्रमण भेनाइ स्वभाबिक छल | एना तँ एतेक राति पहिले कहियोक नहि भेल रहनि  | सहास करैत घरसँ बाहर निकैल, अपन भैंसुरक अँगना पहुँचली | हुनका सभकेँ  कहला बाद शुरू भेल युद्धस्तरपर मुरारीजिक खोज | मुदा सभ  मेहनत खाली मुरारीजिक कोनो पता नहि | हुनक आड़ामिल जाहिठाम ओ काज करैत छलथिसँ ज्ञात भेल जे हुनक छुट्टी तँ  साँझु पहर पाँचे बजए भए गेल रहनि आ ओ अपन साईकिलसँ एहिठामसँ बिदा सेहो भए गेल रहथि |
तकैत-तकैत भोरे चारि बजे हुनक लाश  पिपरा घाटक सतघारा बला धूरि पर भेटल | देखते मातर सभक हाथ-पएर सुन्न | कनाहोर मचल | बादमे स्थानीय प्रतक्षदर्शीसँ ज्ञात भेल की ओ एहिठाम साँझकेँ  साते बजेसँ छथि, किछु गोटे हुनका हाथ-पएर मारैत देखि बैजतो रहेजे, 'बेसी शराब पि क' ड्रामा कए  रहल अछि |'
मुदा हाय रे कुण्ठित मानवता कियोक हुनक बास्तबीक कारण बुझहक प्रयास नहि कएलक, नहि तँ ओ एखन जिबैत रहितथि | हुनका तँ  एपेडेंसीक दर्दक बेग रहैन आ समय पर उपचार नहि हेबाक कारणे ओ चलि बसला |

*****
जगदानन्द झा 'मनु'

Saturday, April 14, 2012

परमेश्वर

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक एकटा विहनि कथा---


परमेश्वर

करमान लागल लोकक बीच पंचैती शुरू भेल।
पहिल पुरुष पंच----- अइ छौंड़ा-छौंड़ीकेँ तँ भकसी झोंका कए मारि दिअ। छोड़ू नै। इ प्रेमक नामपर सगरो समाजकेँ कलंकित केलक अछि।
दोसर पुरुष पंच----- नै एकरा ऐ पड़ौआ छौंड़ासँ मुक्ति दिआ बिआहि दिऔ कोनो लुल्ह,नाङर,घेघाह वा कनाहसँ अपन कुकर्मक सजाए एतै भोगि लेत इ।

मौगी पंच----ऐ उढ़री-ढ़ररीसँ कोन गामक लोक बिआह करत? एकरा तँ तरहड़ा खूनि गाड़ि दिऔ।
एहि घोंघाउजक बीच छौंडीक कुहरल आवाज आएल----- हम अहाँ सभहँक पएर पकड़ै छी। हम उढ़री नै छी। हम एकरासँ प्रेम करै छी। हमरा जे चाही से सजाए दिअ। मुदा हमरा सभकेँ जिनगी दिअ।
आ चोट्टे मुखिया जी छौड़ी माएकेँ बजा कहलखिन्ह------ लिअ एकरा झोंट पकड़ि लए जाउ आ बान्हि राखू।

तखने सभ पंच समवेत स्वरे बाजल---- मुखिया जी अपने तँ परमेश्वर छिऐ तखन फेर एकर सजाए-----बस एतबे।

मुखिया जी बजलाह--- नेतृत्वक काज छै जे जँ कतौ पसाही लागल देखए तँ ओहिमे पानि ढ़ारि दै नै की घी।

Thursday, April 12, 2012

पागलखाना :: जगदीश मण्‍डल


पागलखाना

एकटा छोट-छीन देश आनन्‍द लोक। देशमे लोकक संख्‍या जमीने अनुकूल। उर्वर माटि‍ मीठ पानि‍, मधुर हवाक मि‍लान तँए मनुक्‍खसँ लऽ कऽ गाछ-वि‍रि‍छ, फल-फूल, जीव-जन्‍तु धरि‍ आनंदसँ रहैत। दुनि‍याँक आन देशमे तँ ढेरो सम्‍प्रदाय अछि‍ मुदा ओइ देशमे दुइयेटा। दू सम्‍प्रदाय रहनौं कहि‍यो अपनामे झगड़ा-झंझट नै होइत। एक्के इनारक पानि‍ पीबैत, एक्के पोखरि‍मे नहाइत। एक्के स्‍कूलमे पढ़ैत आ मौका-कुमौका एक्के जहलोमे रहैत। ततबे नै बाढ़ि‍, रौदी, बि‍हाड़ि‍, शीतलहरी सेहो संगे झेलैत।
एक दि‍न दुनू सम्‍प्रदायक बीच एकटा गाममे झगड़ा ऐ लेल भऽ गेलै जे दुनू अपन-अपन सम्‍प्रदायकेँ दोसरसँ पैघ कहए लगलै। एक ठामसँ झगड़ा शुरू भेल आ सगरे देश पसरि‍ गेल। झगड़ोक रूप बदलए लगलै। गारि‍-गरोबलि‍सँ पटका-पटकी होइत खून-खच्‍चर हुअए लगलै। अंतमे दुनू सम्‍प्रदाय दू देश बना लेलक।
दुनू देशक सि‍पाही सि‍मापर बाँसक खुटा गारि‍-गारि‍ सि‍मान कायम करए लगल। अाधासँ जखन आगू बढ़ल तँ सि‍मापर एकटा पागलखाना पड़ैत रहए।
दुनू देशक सि‍पाही पगलखन्नाक बगलमे बैस वि‍चारए लगल जे ऐठाम केना सि‍मा कायम करब? दुनूमे सँ कि‍यो अपना दि‍स पगलखन्ना लेमए नै चाहैत। दुनूक बीच वि‍वाद शुरू भेल। दुनू अपन काज रोकि‍ अपना-अपना सरकारकेँ खबरि‍ देलक। सरकार पागलक संख्‍या पता लगबए चाहलक जे दुनू सम्‍प्रदायक कअए-कअए गोट पागल अछि। तइले आदेश देलक। दुनू देशक सि‍पाही मिलि‍ कऽ पागलखाना जा पुछलक- अपन-अपन सम्‍प्रदायक नाओं कहू?”
सभ पागल हल्‍ला करैत कहए लगलै- अरे बेकूफ, भाग एतऽ सँ हम सभ एक छी आ एक रहब।

ऊँच-नीच :: जगदीश मण्‍डल


ऊँच-नीच

एक राति, जखन पुजेगरी मंदिरक केबाड़ बन्न कऽ चलि गेल, स्तम्भक माने खुटाक पाथर देवमूर्ति बनल पाथरसँ पुछलक- की भाय, हम सभ तँ एक्के पहाड़क पाथर छी। फेर अहाँक पूजा होइए आ हम जे मकानक -मंदिरक- भार उठैने छी से हम्मर कोनो मोजरे नै?”
देवताक आसनपर बैसल पाथर मने-मन विचार करए लगल। मुदा प्रश्नक जबाब नै बूझि कहलक- भाय, हम ऐ रहस्यकेँ नै जनै छी। पुजेगरी विद्वान छथि हुनकासँ बूझि काल्हि कहबह।
प्रातःकाल पुजेगरी आबि पूजा करए लगल। फूल-पात चढ़ा, दुनू हाथ जोड़ि पुजेगरी धि‍यान केलनि आकि देव-पाथर पुछलखिन- मंदिरमे जते पाथर अछि सभ तँ गुण-जातिसँ एक्के अछि। फेर हम किएक पूजनीए छी?”
पुजेगरी- हे देव, अपने बड़ पैघ बात पुछलौं। एक गुण, घर्म आ जातिक सभ वस्तुक उपयोग एक्के पदक लेल होय, ई सर्वथा असंभव अछि। प्रकृति ककरो एक रंग नै रहए दैत अछि। जे मनुष्योमे अछि। बहुतो मनुखमे एक तरहक प्रतिभा आ गुण-घर्म होइए मुदा ओहूमे अपन श्रेष्ठ कर्मक कारणे कियो सभसँ आगू बढ़ि जाइत आ कियो पाछू पड़ि जाइत। तँए एकर अर्थ ई नै जे ओ -पाछू पड़ल- अपनाकेँ हेय बुझए। किएक तँ परिवर्त्तन सृष्टिक निअम छिऐ। आइ जे ऊपर अछि ओ काल्हियो ऊपरे रहत एकर कोनो गारंटी नै छै। तहिना जे निच्चाँ अछि ओ सभ दिन निच्चेँ रहत सेहो बात नै।