Thursday, April 12, 2012

बुलकी :: जगदीश मण्‍डल


बुलकी

एकटा खेत-बोनिहारक घरवाली नाकक बुलकी लेल रुसि रहलि। बुलकी कि‍नैक उपाए पतिकेँ नै। हर जोति क जखन ओ बोनिहार आएल तँ घरवालीकेँ रुसल देखलक। मुँह-तुँह फुलौने ओसारपर बैसलि‍। धिया-पुता खाइले कनैत। बोनिहार अपन तामसकेँ घोटि घरवाली लग जा क कहलकै- किअए रुसल छी? भूखे बच्चो सभ लहालोट होइए। आबो भानस करू।
अपन रोष झाड़ैत पत्नी बाजलि- जाबे बुलकी नै आनि देब ताबे ने खाएब आ ने किछु करब।
खुशामद करैत पति कहलकै- आइये साँझमे हाटसँ कीन क आनि देब। अखन भानस करू ग
पतिक बात पत्नी मानि गेलि। बोनिहार कर्ज रूपैया अनैले विदा भेल। दस रूपैया अना दर सूदपर अनलक। रूपैया घरवालीक हाथमे द देलक। भानस भेलै। सभ खेलक। बेरू पहर दुनू परानी हाटसँ बुलकी कीन अनलक।
दोसर साँझमे बुलकी पहिर सुगिया-दादीकेँ गोड़ लगैले बोनिहारिन गेलि। सुगिया दादी ओसारपर बैस पोता-पोतीकेँ नल-दमयत्नीक खिस्सा सुनबैत रहथि। दादीकेँ गोड़ लागि बोनिहारिन बुलकी देखैले कहलकनि‍। बुलकी देखि‍ दादी कहए लगलखिन- कनियाँ। सोन-चानी गरीब-गुरबा घरमे नै रहै छै। जइ घरमे पेटेक भूख नै मेटाइ छै ओइ घरमे सिंगारक चीज केना रहतै। अनेरे अपन सख करै छह। कहुना-कहुना बच्चा सभकेँ पालह जे कुल-खानदान जीबैत रहतह।
दादीक बात सुनि बोनिहारिन आंगन आबि पतिकेँ कहलक- गलती भेल जे हम रुसि क अहाँसँ बुलकी किनेलौं। अखैन रखि दइ छिऐ, काल्हि घुमा क कर्जाबलाक रूपैया द एबै।

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