बुलकी
एकटा खेत-बोनिहारक घरवाली नाकक बुलकी लेल रुसि रहलि।
बुलकी किनैक उपाए पतिकेँ नै। हर जोति कऽ जखन ओ बोनिहार आएल तँ घरवालीकेँ
रुसल देखलक। मुँह-तुँह फुलौने ओसारपर बैसलि। धिया-पुता खाइले कनैत। बोनिहार अपन तामसकेँ
घोटि घरवाली लग जा कऽ कहलकै- “किअए रुसल छी? भूखे बच्चो सभ लहालोट होइए। आबो
भानस करू।”
अपन रोष झाड़ैत पत्नी बाजलि- “जाबे बुलकी नै आनि देब ताबे ने
खाएब आ ने किछु करब।”
खुशामद करैत पति कहलकै- “आइये साँझमे हाटसँ कीन कऽ आनि देब। अखन भानस करू गऽ।”
पतिक बात पत्नी मानि गेलि। बोनिहार कर्ज रूपैया
अनैले विदा भेल। दस रूपैया अना दर सूदपर अनलक। रूपैया घरवालीक हाथमे दऽ देलक। भानस भेलै। सभ खेलक। बेरू
पहर दुनू परानी हाटसँ बुलकी कीन अनलक।
दोसर साँझमे
बुलकी पहिर सुगिया-दादीकेँ गोड़ लगैले बोनिहारिन गेलि। सुगिया दादी ओसारपर बैस पोता-पोतीकेँ
नल-दमयत्नीक खिस्सा सुनबैत रहथि। दादीकेँ गोड़ लागि बोनिहारिन बुलकी देखैले कहलकनि।
बुलकी देखि दादी कहए लगलखिन- “कनियाँ।
सोन-चानी गरीब-गुरबा घरमे नै रहै छै। जइ घरमे पेटेक
भूख नै मेटाइ छै ओइ घरमे सिंगारक चीज केना रहतै। अनेरे अपन सख करै छह। कहुना-कहुना
बच्चा सभकेँ पालह जे कुल-खानदान जीबैत रहतह।”दादीक बात सुनि बोनिहारिन आंगन आबि पतिकेँ कहलक- “गलती भेल जे हम रुसि कऽ अहाँसँ बुलकी किनेलौं। अखैन रखि दइ छिऐ, काल्हि घुमा कऽ कर्जाबलाक रूपैया दऽ एबै।”
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