Thursday, April 12, 2012

उग्रघारा :: जगदीश मण्‍डल


उग्रघारा

द्वापर युगक संध्याकालीन कथा थिक। महाभारतक लड़ाइ सम्पन्न भऽ गेल छल। एक दिन एकांतमे बैस अर्जुन त्रेताक राम-रावणक लड़ाइ आ द्वापरक कौरव-पाण्डवक लड़ाइक तुलना मने-मन करैत रहथि। अनायास मनमे उठलनि जे लंका जेबा काल रामक सेना एक-एक पाथरक टुकड़ाकेँ जोड़ि‍ जे समुद्रमे पुल बनौलनि, ओ तँ एक तीरोमे बनि सकै छल। ऐ प्रश्नपर जत्ते सोचथि‍ तत्ते शंका बढ़ले जाइन। अंतमे, यएह सोचलनि जे पम्पापुरमे हनुमान तपस्या कऽ रहल छथि तँए हुनकेसँ किएक ने पूछि लेल जाए।
हनुमानकेँ भजियबैले अर्जुन विदा भेलाह। जाइत-जाइत हनुमानक कुटीपर पहुँचलथि। हनुमान तपस्यामे लीन रहथि। कुट्टीक आगूमे बैस अर्जुन हनुमानक धि‍यान टुटैक प्रतीक्षा करए लगलथि। जखन हनुमानक धि‍यान टुटलनि तँ अर्जुनकेँ देखलखिन। आसनसँ उठि अतिथि-सत्कार करैत हनुमान अर्जुनकेँ पुछलखिन- अहाँ के छी, कोन काजे ऐठाम एलौंहेँ?”
अपन परिचए दैत अर्जुन कहए लगलखिन- अपने त्रेताक महावीर छी तँए एकटा शंकाक समाधानक लेल एलौंहेँ।
पुछू।
लंका जेबा काल जे समुद्रमे एक-एकटा पाथरक टुकड़ा जोड़ि जे पुल बनाओल, ओ तँ एक तीरोमे बनि सकैत छल?”
अर्जुनक बात सुनि किछु काल गुम्म भऽ हनुमान उत्तर देलखिन- हँ, मुदा ओ ओते मजगूत नै होइतै जते एक-एक पाथरक टुकड़ा जोड़ि कऽ भेलै
हनुमानक उत्तरसँ अर्जुन असहमत होइत कहलखिन- तीरोक बनल पुल तँ ओहने मजगूत भऽ सकैत छलै
ऐ प्रश्नपर दुनूक बीच मतभेद भऽ गेलनि। अंतमे परीक्षाक नौबत आबि गेलै। दुनू गोटे समुद्रक कात पहुँचलाह। तरकशसँ तीर निकालि अर्जुन धनुषपर चढ़ा, समुद्रमे छोड़लनि। पुल बनलै। अपन विकराल रूप बना हनुमान पुलपर कुदैक उपक्रम केलनि। अन्तर्यामी कृष्ण सभ देखैत रहथि। मने-मन सोचलनि जे महाभारतक नायक अर्जुन हारि रहल छथि। हुनक हारब हमर हारब हएत। संगहि महाभारतक लड़ाइ सेहो झूठ भऽ जेतैक। तँए प्रतिष्ठा बँचबैक घड़ी आबि गेल अछि। जइ सोझे हनुमान पुलपर खसितथि तइ सोझे कृष्ण अपन कन्हा पुलक तरमे लगा देलखि‍न। हनुमान कुदलाह। पुल तँ टुटैसँ बचि गेल मुदा कृष्णक करेज चहकि गेलनि। जइसँ पानिमे खून पसरए लगलै। खूनसँ रंगाइत पानि देखि‍ हनुमान धि‍यान करए लगलथि जे एना किएक भऽ रहल छै। भजियबैत ओ ओइ जगहपर पहुँचि‍ कृष्णकेँ देखलखिन।
अचेत कृष्णकेँ देखि‍, दुनू हाथ जोड़ि हनुमान क्षमा मंगलखिन।

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