कर्तव्यपरायन तोता
एकटा जमीनदार रहथि। हुनका बहुत खेत रहनि। धानक खेती केने
रहथि। खेतक चारू कोणपर रखवार खोपड़ी बना ओगरबाहि करैत छल। रखवारकेँ रहितो तोता सभ उड़ैत
आबि, धानो खाइत आ सीस काटि-काटि लैयो जाइत। एकटा एहेन तोता छल जे
अपने खेतेेमे खा लैत आ उड़ै काल छअ गोट सीस काटि लोलमे लऽ उड़ि जाइत। एक दिन रखवार ओकरा
जालमे फँसा लेलक। तोताकेँ लेने जमीनदार लग रखबार लऽ गेल।
तोताकेँ देखि जमीनदार पुछलकै- “धानक सीस काटि कतए जमा करै छेँ
”
निर्भीक भऽ तोता उत्तर देलकनि- “दूटा सीस कर्ज सठबैले दूटा कर्ज लगबैले आ दूटा परमार्थ
लेल लऽ जाइ छी। कुल छअ-टा सीस, अपन पेट भरलापर, लऽ उड़ि जाइ छी।”
अचंभित होइत जमीनदार पुछलकै- “की मतलब?”
तोता- “बृद्ध माए-बाप छथि जनिका उड़ि नै होइत छन्हि, तनिका लेल दूटा
सीस। दूटा बच्चा अछि तकरा लेल दूटा सीस आ पड़ोसिया दुखित अछि दूटा सीस हुनका लेल।”
तोताक बात धियानसँ सुनि जमीनदार गुम्म भऽ गेलाह। किछु
समए मने-मन विचारि रखवारकेँ कहलखिन- “ऐ तोताकेँ चीन्हि लहक। जँ कहियो धोखासँ पकड़ाइयो जा तँ छोड़ि दिहक।”
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