वंश
एक दिन महान् विचारक सिसरोकेँ एकटा धनिक सरदारसँ कोनो
बाते कहा-सुनी हुअए लगलनि। ने ओ धनिक पाछू हटैले तैयार आ ने सिसरो। दुनूक बीच पकड़ा-पकड़ीक
नौबत अाबए लगलै। खिसिया कऽ ओ धनिक सिसरोकेँ कहलकनि- “तूँ नीच कुलक छेँ, तँए तोरा-हमरा
कथीक बराबरी?”
ऐ बातसँ सिसरो बिचलित नै भऽ साहससँ उत्तर देलखिन- “हमरा कुलक कुलीनता हमरासँ शुरू
हएत जबकि तोरा कुलक कुलीनता तोरासँ अंत हेतौ।”
सभ्यता आ कुलीनता जन्मसँ नै बल्कि चरित्र आ कर्तव्यसँ पैदा
लैत अछि।
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