Wednesday, April 11, 2012

वंश :: जगदीश मण्‍डल


वंश

एक दिन महान् विचारक सिसरोकेँ एकटा धनिक सरदारसँ कोनो बाते कहा-सुनी हुअए लगलनि। ने ओ धनिक पाछू हटैले तैयार आ ने सिसरो। दुनूक बीच पकड़ा-पकड़ीक नौबत अाबए लगलै। खिसिया कऽ ओ धनिक सिसरोकेँ कहलकनि‍- तूँ नीच कुलक छेँ, तँए तोरा-हमरा कथीक बराबरी?”
ऐ बातसँ सिसरो बिचलित नै भऽ साहससँ उत्तर देलखिन- हमरा कुलक कुलीनता हमरासँ शुरू हएत जबकि तोरा कुलक कुलीनता तोरासँ अंत हेतौ
सभ्यता आ कुलीनता जन्मसँ नै बल्कि चरित्र आ कर्तव्यसँ पैदा लैत अछि।


No comments:

Post a Comment