धर्मक असल रूप
श्रावस्तीक सम्राट चन्द्रचूड़केँ अनेक धर्म आ ओकर प्रवक्ता
सभसँ नीक लगाव छलनि। राज-काजसँ जे समए बचनि ओकरा ओ धर्मेेक अध्ययनो आ सत्संगेमे बितबथि।
ई क्रम बहुत दिनसँ चलि अबैत छल। एक दिन ओ असमंजसमे पड़ि गेलाह। मनमे एलनि जे जखन धर्म
मनुक्खक कल्याण करैत अछि तखन एतेक मतभेद एक-दोसर प्रवक्तामे किएक अछि?
अपन समस्याक समाधानक लेल चन्द्रचूड़ भगवान बुद्ध लग पहुँचलाह।
ओइठाम ओ अपन बात बुद्धकेँ कहलखिन। चन्द्रचूड़क बात सुनि बुद्धदेव हँसए लगलखिन। सत्कारपूर्वक
हुनका ठहरै लऽ कहि दोसर दिन भिनसरे समाधानक बचन देलखिन। एकटा हाथी आ पाँचटा आन्हर ओ
जुटौलनि।
दोसर दिन भिनसरे वुद्धदेव चन्द्रचूड़केँ संग केने ओइ
हाथी आ अन्हरा लग पहुँचलथि। एकाएकी ओइ अन्हरा सभकेँ हाथी छूबि ओकर स्वरूप बुझबैले कहलखिन।
बेरा-बेरी ओ अन्हरा सभ हाथीकेँ छूबि-छूबि देखए लगल। जे जे अंग हाथीक छूलक ओ ओहने स्वरूप
हाथीक बतबए लगलनि। कियो खुटा जकाँ तँ कियो सूप जकाँ तँ कियो डोरी जकाँ तँ कियो टीला जकाँ
कहलकनि।
सबहक बात
सुनि वुद्धदेव चन्द्रचूड़केँ कहलखिन- “राजन, सम्प्रदाय
अपन सीमित क्षमताक अनुरूप धर्मक एकांकी व्याख्या करैत अछि। अपन-अपन मान्यताक प्रति
जिद्द धऽ अपनेमे सभ लड़ैत छथि। जहिना एक्केटा हाथीक स्वरूप पाँचो अन्हरा पाँच रंगक कहलक, तहिना धरमोक
व्याख्या करैबला सभ करै छथि। धर्म तँ समता, सहिष्णुता, उदारता आ सज्जनतामे सन्निहित अछि।”
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