Thursday, April 12, 2012

पागलखाना :: जगदीश मण्‍डल


पागलखाना

एकटा छोट-छीन देश आनन्‍द लोक। देशमे लोकक संख्‍या जमीने अनुकूल। उर्वर माटि‍ मीठ पानि‍, मधुर हवाक मि‍लान तँए मनुक्‍खसँ लऽ कऽ गाछ-वि‍रि‍छ, फल-फूल, जीव-जन्‍तु धरि‍ आनंदसँ रहैत। दुनि‍याँक आन देशमे तँ ढेरो सम्‍प्रदाय अछि‍ मुदा ओइ देशमे दुइयेटा। दू सम्‍प्रदाय रहनौं कहि‍यो अपनामे झगड़ा-झंझट नै होइत। एक्के इनारक पानि‍ पीबैत, एक्के पोखरि‍मे नहाइत। एक्के स्‍कूलमे पढ़ैत आ मौका-कुमौका एक्के जहलोमे रहैत। ततबे नै बाढ़ि‍, रौदी, बि‍हाड़ि‍, शीतलहरी सेहो संगे झेलैत।
एक दि‍न दुनू सम्‍प्रदायक बीच एकटा गाममे झगड़ा ऐ लेल भऽ गेलै जे दुनू अपन-अपन सम्‍प्रदायकेँ दोसरसँ पैघ कहए लगलै। एक ठामसँ झगड़ा शुरू भेल आ सगरे देश पसरि‍ गेल। झगड़ोक रूप बदलए लगलै। गारि‍-गरोबलि‍सँ पटका-पटकी होइत खून-खच्‍चर हुअए लगलै। अंतमे दुनू सम्‍प्रदाय दू देश बना लेलक।
दुनू देशक सि‍पाही सि‍मापर बाँसक खुटा गारि‍-गारि‍ सि‍मान कायम करए लगल। अाधासँ जखन आगू बढ़ल तँ सि‍मापर एकटा पागलखाना पड़ैत रहए।
दुनू देशक सि‍पाही पगलखन्नाक बगलमे बैस वि‍चारए लगल जे ऐठाम केना सि‍मा कायम करब? दुनूमे सँ कि‍यो अपना दि‍स पगलखन्ना लेमए नै चाहैत। दुनूक बीच वि‍वाद शुरू भेल। दुनू अपन काज रोकि‍ अपना-अपना सरकारकेँ खबरि‍ देलक। सरकार पागलक संख्‍या पता लगबए चाहलक जे दुनू सम्‍प्रदायक कअए-कअए गोट पागल अछि। तइले आदेश देलक। दुनू देशक सि‍पाही मिलि‍ कऽ पागलखाना जा पुछलक- अपन-अपन सम्‍प्रदायक नाओं कहू?”
सभ पागल हल्‍ला करैत कहए लगलै- अरे बेकूफ, भाग एतऽ सँ हम सभ एक छी आ एक रहब।

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