Thursday, April 12, 2012

जंग लागल :: जगदीश मण्‍डल


जंग लागल

एकबेर भगवान बुद्धक समक्ष श्रेष्ठि पुत्र सुमंत आ श्रमिक पुत्र तरुण संगे प्रब्रज्या लेलक। दुनू गोटे भावनापूर्वक संघारामक अनुशासनक पालन करए लगल। किछु मासक प्रगतिक जानकारी दैत प्रधान भिक्षु (संघाराम) कहलकनि- तरुणक अपेक्षा सुमंत अघिक स्वस्थ आ पढ़ल-लिखल अछि। भावनो प्रवल छै। मुदा सौंपल गेल काज आ साधनोक उपलब्धि तरुणमे सुमंतक अपेक्षा अधिक अछि। जेकर कारण बूझिमे नै अबैत अछि।
संधारामक विचार सुनि तथागत -बुद्ध- कहलखिन- अखन सुमंत जंग लागल लोहाक औजार सदृश अछि। जंग छुटैमे किछु समए लागत।
तथागतक बात संघाराम नीक-नाहाँति नै बूझि सकल। तँए प्रश्न वाचक नजरिसँ नजरि मिला टकर-टकर मुँह दिस तकैत रहलनि।
स्पष्ट करैत बुद्ध कहलखिन- ओकर (सुमंतक नमहर) अधिक समए आलस्य आ प्रमादमे बीतल अछि। जइसँ व्यक्तित्व, जंग लागल औजार सदृश भऽ गेल अछि। जबकि तरुण एहेन उपकरण अछि जकरामे जंग छूबो ने केलक अछि। तँए, लगले फल पाबि रहल अछि। सुमंतक जंग छोड़बैमे पर्याप्त समए आ साधना लागत। तखन जा कऽ अभीष्ट फल निकलत।

No comments:

Post a Comment