Thursday, April 12, 2012

अनंत :: जगदीश मण्‍डल


अनंत

हरि अनंत हरि कथा अनंता –तुलसी

एक दिन भगवान बुद्ध आनंदक संग एकटा सघन वनसँ गुजरैत रहथि। रास्तामे दुनू गोटेक बीच ज्ञानक चर्च चलैत छल। आनंद पुछलखिन- देव, अपने तँ ज्ञानक भंडार छिऐ। अपने जे जनै छी ओ हमरा बुझा देलौं?”
आनंदक बात सुनि उलटि कऽ बुद्धदेव पुछलखिन- ऐ जंगलक जमीनपर केत्ते सुखल पात पड़ल छै, जइ गाछक निच्चाँमे ठाढ़ छी ओइ गाछमे केत्ते सुखल पात लागल छै? आ अपना सबहक पएरक निच्चाँ कते पड़ल छै। सभ मिला कऽ कत्ते हएत?”
वुद्धदेवक प्रश्नसँ आनंद निरुत्तर भऽ गेलाह। आनंदकेँ उत्तर नै दैत देखि‍ तथागत कहलखिन- ज्ञानक विस्तार ओते अछि जते ऐ वन प्रदेशमे सुखल पातक परिवार। अखन धरि हमहूँ एतबे बुझलौंहेँ जे जते वृक्षक ऊपर सुखल पात अछि। मुदा पएरक निच्चाँ जे अछि ओ हमहूँ ने बुझै छी।

No comments:

Post a Comment