Thursday, April 12, 2012

हँसैत लहास :: जगदीश मण्‍डल


हँसैत लहास

जिनगीकेँ जिनगी बूझि मनुखकेँ जीबाक चाही। जौं से नै भेल तँ जिनगीक कोनो महत तँ नै रहि‍ जाइत। जे कियो जिनगीकेँ कमेनाइ-खेनाइ धरि रखैत, ओकर संस्कार मरलोपर ओहिना रहि जाइत।
एक दिन दूटा शव एक्केबेर श्‍मशान पहुँचल। कठिआरीक लोक डाहैक ओरियान करए लगल। एकटा शव दोसरकेँ देखि‍ ठहाका मारि हँसए लगल। हँसैत शवकेँ देखि‍ दोसर शव पुछलक- बंधु, एहेन कोन बात भऽ गेल जे अहाँ हँसि रहल छी। जबकि दुनू गोटे एक्के स्थितिमे छी?”

हँसैत शव उत्तर देलक- बंधु, अहाँकेँ मन अछि कि‍ नै मुदा हमरा तँ मन अछि। दुनू गोटे संगे गामक स्कूलमे पढ़ने रही। पढ़लाक वाद अहाँ वणिक वृत्तिमे लगि दिन-राति पाइयेक हिसाबो आ भोग-वि‍लासमे लगि गेलौं। आब अहाँक ओहन स्थिति भऽ गेल अछि जे असमसानो घाटपर पाइयेक हिसाब आ भोगे-वि‍लासक गर लगबै छी।
और अहाँ?” -दोसर पुछलक।
जाधरि जीबैत छलौं मस्तीमे रहलौं। ने कहियो बेसी पाइक खगता भेल आ ने तइले मनमे चिन्ता। जहिना चिन्ता मुक्त पहिने छलौं तहिना अखन छी। अच्छा आब अहूँ जाउ आ हमहूँ जाइ छी। अछिया तैयार भऽ गेल। नमस्कार। कहि पहिल शव चीता दिस बढ़ि गेल आ दोसर कनगुरिया ओंगरीपर हिसाब जोड़ए लगल।

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