Wednesday, April 11, 2012

श्रमिकक इज्जत :: जगदीश मण्‍डल


श्रमिकक इज्जत

अपन संगी-साथीक संग नेपोलियन टहलैले जाइत रहथि। जेरगर रहने सौंसे रास्ता छेकाएल छलै। दोसर दिससँ एकटा घसबहिनी माथपर घासक बोझ लेने अबैत छलि। ओइ घसबहिनीपर सभसँ पहिल नजरि नेपोलियनक पड़लैक। ओ पाछू घुमि‍ कऽ देखलनि‍। सौंसे रास्ता घेराएल छलै। अपन पछि‍ला संगीक हाथ पकड़ि खिंचैत कहलखिन- श्रमिकक सम्मान करू। एक भाग रास्ता खाली कऽ दियौ। यएह देशक अमूल्य संपत्ति थिक। एकरे बले कोनो देशक उन्नति होइ छै।
घसबहिनी टपि गेलि। थोड़े आगू बढ़लापर पुनः नेपोलियन संगी सभसँ कहलखिन- सद्प्रवृत्तिकेँ बढ़ेबाक चाही। ओकरा जत्ते महत देबै ओत्ते जन-उत्साह जगतै। जइसँ देशक कल्याण हेतै

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