Wednesday, April 11, 2012

भाग्यवाद :: जगदीश मण्‍डल


भाग्यवाद

भाग्यवाद, शकुन, फलित ज्योतिष जकाँ अनेको प्रकरण अछि जे जनसमुदायकेँ जंजालमे ओझरा शोषणक रास्ता शोषकक लेल खोलि दैत अछि। एकटा ज्योतिषी सुख-दुख, जनम-मरणक बात कहि मनसम्फे धन जमा कऽ ताड़ी-दारू खूब पीऐत छलाह। एक दिन एकटा जमीनदारक ऐठाम पहुँचि‍, हुनक हाथ देखि‍ कहलखिन जे एक बर्खक अभियनतरे अहाँक मृत्यु भ जाएत। ज्योतिषीक बातक बिसवास कऽ जमीनदार दिनो-दिन सोगाए लगलाह। जमीनदारकेँ तीनटा बेटा। तीनू पिताक आज्ञापालक। पिताकेँ सोगाइत देखि‍ मझिला बेटा पुछलकनि- बाबूजी, अपने दिनानुदिन किएक रोगाएल जाइ छी?”
चिन्तित मोने जमीनदार उत्तर देलखिन- बौआ, हमर औरदा पूरि गेल। सालक भीतरे मरि जाएब।
ई, अहाँ केना बुझलिऐ?”
ज्योतिषी हाथ देखि‍ कहलनि।
मझिला बेटा ज्योतिषीकेँ बजा पुछलकनि‍- अहाँ अपने कत्ते दिन जीब?”
हँसैत ज्योतिषी उत्तर देलखिन- तीस बर्ख। ज्योतिषीक बात सुनि ओ घरसँ फरुसा आनि सोझे ज्योतिषीक गरदनिपर लगा देलक। ज्योतिषीक मुड़ी धरसँ अलग भ गेलै। तखन ओ पिताकेँ कहलक- हिनकर उमेर तीस बर्ख बचले छलनि तखन आइ किएक मरलाह? ई सभ ठक छी। ठकक बातमे पड़ि अहाँ अनेरे सोगाएल जाइ छी।
जमीनदारक भ्रम टूटि गेलनि‍। धीरे-धीरे निरोग हुअए लगलाह।

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