पियास
“हे, कने एक ग्लास पानि दिअ। ”
“घैलामे पानि ठरि गेल हेतै। चुपचाप सुति रहू। देखू तँ, पएर उघारे अछि। कम्बल ओढ़ा दैत छी। बाहरमे पाला खसै छै। मन मारिकऽ सुति रहू।”
“पचासी वर्षक भेलहुँ। अहाँ एना कहियो उपदेश देने छलहुँ! वयस बढ़ल तँ पत्नीक धर्म बिसरि गेलहुँ। ”
“आब लिअ, निशाभाग रातिमे धर्म बुझबऽ लगलाह। उकासी होइये। ठरल पानि पीयब तँ हफनी बढ़ि जाएत। सुति रहू।... कहू तँ, जाड़मे कतहु लोककेँ एते पियास लगलैए। ”
“आब हिनका के बुझौतनि! एकटा पियासे तँ छै जे नै मेटाइ छै। ”
(साभार विदेह विहनि कथा विशेषांक अंक ६७- www.videha.co.in)
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