Saturday, August 31, 2013

ड्युटी

140. ड्युटी

"चल बता तँ घर्षण बलक दिशा की होइ छै ?...रै गोलू तूँ किए ने कहलें ? तोहर उत्तर एकदम गलत छलौ ।...चल किताब पढ़ तँ...आहि रौ बा तोरा तँ पढ़ैयो नै आबै छौ गोलू ।एना किए ?" शिक्षकक प्रश्न सूनि एकटा दोसर छात्र बाजल "सर, एकर मम्मी आ पापा मास्टर छै तेँ ।" शिक्षक अकचका गेल "एँ रौ एहिसँ एकर पढ़ाइकेँ कोन लेना-देना छै ?" ओ छात्र झट दऽ बाजल "सर जी, एकर मम्मी आ पापा सदिखन बैसले रहै छथि ।अपन ड्युटी सहीसँ नै करै छथि, तकरे प्रभाव एकरापर पड़लै अछि ।इहो अपन ड्युटी मने पढ़ाइ ठीकसँ नै करैत अछि ।"

अमित मिश्र

ठोपे ठोप

139. ठोपे ठोप

सीमापर एकटा सैनीक गोली खा कऽ खसि पड़ल छल ।ओकर देहसँ ठोपे ठोप खून बहि रहल छल ।ओकर देहक घाव बहैत खूनकेँ कहलकै "रौ खून, तूँ एक्के बेर किए ने बहि जाइत छें ?ठोपे ठोपे बहबें तँ बेसी देर लागतौ आ हमरा दर्दो बेसी हएत ।जल्दीसँ बहि जो जे जल्दी मृत्यु भेंट जेतै आ दर्दसँ छुआछन भेंट जेतै ।"
घावक बात सूनि खून कहलकै "रौ भाइ, हम एकटा देशभक्त सैनीकक खून छियै आ मातृभक्त सैनीक बेसीसँ बेसी देर माएक कोरामे रहऽ चाहैत अछि तें ठोपे ठोपे बहैत छियै ।जते देर माएक कोरामे रहि जाएब, मरबाक तँ अछिए ने ?"

अमित मिश्र

Thursday, August 29, 2013

नोर

138. नोर

- यै काकी, अहाँ केहन मौगी छी ! एँ यै मौगीक करेज तँ कमजोर मोम सन होइत छै आ अहाँक तँ पाथरोसँ कठोर बुझना जाइत अछि ।
- तूँ एना किए बाजै छें रौ छौड़ा ?
- एँ यै, एतऽ अहाँक आगूमे अहाँक पतिक लहास परल अछि आ अहाँक आँखिमे एक ठोप नोर नै अछि ।
- मरि गेलै तँ मरि गेलै, हम किए कानब !हमर नोर सूखि गेल अछि ।
- एना किए बाजैत छी यै ?
- हमर कमौआ बेटा गलतीसँ सीमा पार चलि गेलै ।आठ साल भऽ गेलै मुदा ओ नै एलै ।ओकरा लेल बड नोर बहेलौं ।बुढ़बो कानिते मरल ।एकर हिस्साक नोर तँ बेटाक हिस्सामे चलि गेलै रौ बौआ ... आह... तूँ हमर घाव नोंचि देलें ...रौ बेटा रौ बेटा...कतऽ गेलै रौ सोना...बाप रे बाप...

अमित मिश्र

Thursday, August 22, 2013

सेल्समेन


गामक दलानपर नून तेलक दुकान चलेनाहर, साहजी अपन मुस्काइत मुँह आ शांत स्वभावकेँ कारण गाम भरिमे सबहक सिनेहगर बनल मुदा किछु गोटे हुनकर एहि स्वभाबकेँ कारणे हुनका हँसीक पात्र बनोने। आइ साहजी अपने किछु काजसँ बाध दिस गेल। दुकानपर हुनकर १४ बर्खक बेटा समान दैत-लैत। एकटा बिस्कुट चकलेटक सेल्समेन साइकिल ठार करैत साहजीक बेटासँ, की रौ बौआ तोहर पगला बाबू कतए गेलखुन्ह।
साहजीक बेटा सेल्समेनक मुँह दिस कनी काल देखला बाद, किएक, की बात?
बात की समान देबैकेँ अछि, पुरनका पाइ लेबैक अछि।
किछु नहि लेबैकेँ अछि (भीतरसँ समान सभ उठा कए दैत) ई अपन पहिलका समान सभ नेने जाऊ  
किएक ! पहिलका तँ रखने रहु
नहि अहाँसँ किछु नहि चाही आ हाँ आगूसँ कहियो हमर दुकानपर नहि आएब
सेल्समेन मुँह बोनेए बकर-बकर ओइ नेना दिस देखैत अपन पुरनका समान सभ समटैमे लागल। ताबतमे साहजी सेहो आबि गेलाह।
सहजी सेल्समेनसँ, की यौ मालिक एना सबटा समान किएक समटने जाइ छी।  
हम कहाँ समटने जाइ छी अहाँक नेनकीरबा सबटा समान उठा कए दैत कहलथि एहिठाम कहियो नहि आएब।
किएक अहाँ की कहि देलिऐ ?
हम तँ किछु नहि कहलिएन्हि
नहि, किछु तँ कहने हेबे
हाँ अबैत माँतर पूछने रहिएन्हि, की रौ बौआ तोहर पगला बाबू कतए गेलखुन्ह।
साहजी हँसैत, हा हा हा, हमरा संगे जे हँसी ठठ्ठा करै छी से ठीक मुदा केकरो सामने ओकर बापकेँ पागला कहबै तँ ओ कोना सहत, जेकरा की ओ अपन भगवान बुझै छै। एखन भोरे भोर दिमाग शांत रहै तेँ चूपेचाप समानेटा आपस कए कऽ रहि गेल नहि तँ एहन तरहक गप्पपर बेटखारा उठा कए मारि दैतेए।  

Wednesday, August 21, 2013

वचन

137. वचन

सभक मोन डेराएल रहैत छलै ।लोक घरसँ बहराइत नै छल ।लोक बेसी बाजितो-भुकितो नै छल ।बसातमे मात्र एक टा स्वर गुंजैत छलै, लाल सलाम... ।ओकर कार्यकर्ताक सामने जे आबै से मारल जाइ वा लूटि लेल जाइ ।एक दिन एकटा लड़की ओकरा सभक हाथ लागि गेलै ।लड़की खूब सुन्दर छलै ।कार्यकर्ता सब लड़कीकेँ सरदारक लेल बचा कऽ लऽ गेलै ।सरदारक क्रूर मुँह देख लड़की डरे काँपऽ लागल ।सरदारकेँ अपना लऽग आबैत देख ओ चिकरऽ लागल, कानऽ लागल, मुदा... सरदार ओकरा छूबो नै केलकै ।केलव अपन देह परहक चादर लड़कीकेँ ओढ़ा देलकै आ अपन आदमीपर तमसाए लागलै ।ई सब देख लड़कीकेँ कने हिम्मत एलै ।ओ सरदारसँ पुछलक "अहाँक दल तँ ककरो नै छोड़ैत अछि तखन अहाँ हमरा किए छोड़ि देलौं ?"
सरदार शान्त होइत कहलकै "अहाँ हमर बहिन तुल्य छी ।हम अपन बहिनक रक्षाक वचन खेने छी तेँ अहाँक छोड़ि देलौं ।हमर दलमे किछु असमाजिक तत्व घूसि कऽ एकर नाम खराब करैत अछि ।हम अपने कटि जाएब मुदा ककरो माए-बहिनक इज्जत नै लुटाए देबै ।"
लड़की मोने-मोन सोचि रहल छल 'एहने सोच बला सगरो समाज भऽ जैतै तँ कने नीक होइतै !'

अमित मिश्र

Thursday, August 15, 2013

स्वतंत्रता

136. स्वतंत्रता

दस एकड़मे पसरल प्रांगनमे खूब चहल-पहल छलै ।सभक मुँहपर खुशीक चेन्ह साफ झलकै छलै ।रंग-रोगनक बाद चमकि गेल छलै जेलक बन्द प्रांगन ।पुलिस आ कैदी सभक देहपर नव वर्दी चारि चान लगबैत छलै ।एक कोनमे एकटा कैदी मन्हुआएल पड़ल छलै ।एकटा सिपाही ओकरा कहलकै "तुम अपना वर्दी काहे नै पहिनता है ?"
कैदी बाजल "कोन खुशीमे नव कपड़ा पहिरियै ?"
ओकरा हेय दृष्टीसँ देखैत पुलिस बाजल "तुमको मालुम नै आइ स्वतंत्रता दिवस है ।साला भारतिय हो कर भी ई सब कुछ नै जानता है ।"
कैदी बैसैत बाजल "अरे साहेब, जाहिये भारतक कानून निर्देष रहितो हमरा उम्रकैद देलक तहियेसँ हम भारतक नाकरिक नै रहलौं ।हमरा लेल एतुका कानून छैहे नै तखन हम एतुका कोना भेलौं ?...और सरकार स्वतंत्रता अहाँकेँ भेटल हम तँ एखनो परतंत्र छी ।"
कैदीक बात सूनि सिपाही माँथ कुड़ियाबऽ लागल ।

अमित मिश्र

Wednesday, August 14, 2013

चोरक इज्जत

135. चोरक इज्जत

एकटा चोर चारि दिनसँ भुखाएल छलै ।पिछला तीन दिनमे कतौ चोरी नै कऽ सकल छलै ।चारिम दिन ओ एकटा घरमे घूसल ।भनसाघरमे जा नीक-नीक व्यँजन थारीमे निकालि लेलक ।खेनाइ शुरूये करितै कि एकटा चोर और देखाइ देलकै ।पहिल चोर खेनाइ छोड़ि कऽ देखऽ लागल ।दोसर चोर आलमारीसँ टाका निकालि कऽ जाइते छल कि पहिल चोरकेँ देखलक ।दोसर चोर पहिलसँ पुछलकै " तूँ के छें ?"
दोसर जबाब देलकै "हम चोर छी ।तूँ के छें ?"
"हम एहि घरक जेठ बेटा छी ।"
"तखन तूँ चोरि किए करै छें ।"
"हमरा डिस्को जाइकेँ छै तेँ चोरि केलौं ।"
पहिल चोर थारी घुसका कऽ ओतऽसँ जाए लागलै तँ घरक बेटा पुछलकै " तूँ जाइ किए छें ? भोजन कऽ ले ।"
"नै, हम तोरा एतऽ भोजन नै करबौ ।जखन एहि घरक भोजन कऽ घरक बेटा घरेमे चोरी करैत अछि तखन हम तोरा घरमे भोजन कऽ तोहर संस्कार उधार नै लेब ।हम अपन घरमे चोरि नै कऽ सकै छी । आखिर हमरो किछु इज्जत छै कि नै ?"ई कहि पहिल चोर चलि गेल ।

अमित मिश्र

Tuesday, August 13, 2013

मास्टर

134. मास्टर

"आइ नै छोड़बौ...अभगली टाका लागै छै हमर आ करेज टुटै छै तोहर ... सब मिरगी आइ झाड़ि देबौ..." माए चण्डीक अवतार बनि सोहल वर्षिय बेटीकेँ खोरनाठी लऽ पिटैत छलीह ।बेटी बेर-बेर कहैत छलै, हम ओहि मास्टरसँ नै पढ़बौ ।माए मानै लेल तैयार नै छलै ।माए चिकरैत बाजलीह "गै कुतिया, तोरा की जाइ छौ । एक बात जानि ले, इलाका भरिमे ओकरा एहन मास्टर नै भेटतौ ।ओकरा एहन पढ़ाइ किओ नै पढ़ेतौ ।"
माएक बात सूनि बेटी व्यँग्य करैत बाजल" हँ हँ ओकरा एहन तँ किओ नै पढ़ेलकै ।किए तँ ओकरा जेना गाल किओ नै मचोरै छलै आ ओकरा जेना छातीपर हाथ किओ ... "

अमित मिश्र

Friday, August 9, 2013

ईद ?

133. ईद ?

पिछला एक माससँ चौबटिया खाली छलै ।ओतऽ राखल चारि टा ईटा किओ चोरा लेने छलै ।सड़ल आधा टा पटियाकेँ कुकुर-बिलारि भोज्य बस्तु बूझि नोंचि-नाँचि देने छलै ।मास भरिसँ सून भेल जगह आइ बहारल छलै ।ईटा बिनु फाटल पटियापर बैसल छलै जावेद ।बगलमे बैसाखी राखल छलै ।देहपर मात्र फाटल लुंगी आ गंजी, ठोरपर फुफरी पड़ल आ कारी केश गर्दासँ उज्जर भेल छलै ।हम लऽग जा जावेदकेँ आदाब केलियै ।उत्तरक प्रतिक्षा केने बिना पुछलियै "का हो जावेद, आज तँ तोरा आरकेँ पबनी छै न ।सब नव कपड़ा पहिरने छै आ तूँ..."
ओ बाजल "राम भाइ आज पबनी है लेकिन हमरा नै ।एक माह से रोजा रहै तेँ नै ऐलियै ।आज ऐलियै तँ केओ भीखे नै दै है ।सब ईद मनबैमे व्यस्त है ।सालो भर हमरा जे दिन भीख भेटै है वैह दिन ईद होइ है ।अल्ला ताला केहू के भेजिहे तब न हमर ईद होइहे ।"
जावेदक बाद अल्लापर प्रश्न चिन्ह लगा देने छल ।आशा अछि जे किओ ओकर रोजा खोलि देत ।

अमित मिश्र

Tuesday, August 6, 2013

विधवाक श्रृंगार

132. विधवाक श्रृंगार

प्रेमीसँ पति बनल मोहनकेँ मुइलाक बाद राधाक जिनगी श्मशान सन भऽ गेलै ।नैनमे सदिखन सावन-भादो उमड़ल रहै ।उज्जर कपड़ा ओकरा लेल कफन सन बनि गेल छलै ।मात्र मोहनक प्रेम जे ओकर कोखिमे छलै से ओकरा मरऽ नै दैत छलै ।ओकर श्रृंगार बिनु मलीन भेल रूप देख ओकर सासुकेँ रहल नै गेलै ।अन्तत: सासु राधाकेँ दोबारा वियाह करबाक लेल कहलै ।राधाक जबाब छलै "नै माँ, हम दोसर वियाह कऽ मोहनक दिल तोड़ऽ नै चहैत छी ।हम एखनो हुनकेसँ प्रेम करैत छी ।सब ठाम ओ हमरा देखाइ दैत छथि ।"
"यै कनियाँ, अहाँक सून रूप देख मोहन बेसी दुखित होइत हेतै ।अहाँक सपनामे सब दिन आबैत अछि, मने ओ सदिखन अहाँक संग अछि ।जखन अहाँक प्रेम ओकरा लेल जिबिते अछि तखन ओकरा अपनेबाक चाही ।विदेहे रूपमे सही ओ अहाँक पति अछि जे सदिखन अहाँकेँ चाहैत अछि, अहाँक संग अछि ।"एते कहि सासू राधाक माँथपर आएल भाव पढ़ऽ लागलीह ।फेर कहलनि "जखन अहाँक पति अहाँ संग अछिए तखन अहाँकेँ श्रृंगार करबाक चाही ।जखन सोहागसँ नेह करैत छी तँ सोहाग सजेबाक चाही ..."
सासुक बात सूनि राधा दोसरे दुनियाँमे पहुँचि गेलीह ।हाथमे बिन्दिक पत्ता लेने, बाँहि खोलने ओकरा मोहन देखाइ पड़लै ।बेसुध भेल राधाक हाथ नहूँ-नहूँ बिन्दी दिश बढ़ऽ लागलै आ विधवाक रूप चमकऽ लागलै ।

अमित मिश्र

Monday, August 5, 2013

बज्जर खसै

131. बज्जर खसौ

दू टा सखी बड दिन बाद मिल रलह छलीह ।एकटा सखीक देहपर दामिल कपड़ा आ दोसरक देहपर साधारण साड़ी छलै ।पहिल सखी बाजल "सखी, तोरा तँ मौजे-मौजा छौ ।घरबलाकेँ सरकारी नोकरीमे लाइफ स्टाइल तँ बढ़िये ने जाइ छै ।"
दोसर सखी उदास मोने उत्तर देलक "गै सखी, हम मौजमे रहितियै तँ हमरो देहपर तोरे सन चमकौआ बनारसी रहितै ।"
"हमर मरद तँ प्राइभेटेमे अछि तैयो मोन खोलि कऽ खर्च करैत छथि ।दरमाहाक तीसो हजार खर्च कऽ दैत छथि ।"
"एँ गै, तोहर ओझा तीस कमाइ छथुन आ हमर सैयाँकेँ तँ सरकारीयोमे बीस नै पुरैत छन्हि ।मजा तँ तोरे छौ ।हमर मरद खर्चे नै करैत छथि ।कहैत छथि जे बुढ़ारी लेल जोगा कऽ राखब ।"
पहिल सखी उपहास करैत बाजल "दुर बताहि, जुआनीमे माँटि चटनाइ आ बुढ़ारीमे घी पिनाइ नीक नै ।तोहर पाठक जी एहन कंजूस मरद आ सरकारी नोकरपर बज्जर खसौ ।हमरे नीक अछि ।"
पहिल सखीक बात दोसरक करेजमे काँट जकाँ गड़ि गेल, मुदा कने कालक बाद ओकर बात सत्य लागल लागलै दोसर सखीकेँ ।

अमित मिश्र

Saturday, August 3, 2013

कोखि

130. कोखि

लड़काक कानपटीपर बन्दूक राखि चमेलीसँ वियाह कराओल गेलै ।चमेलीक बाबू अपन शक्तिपर खुश होइत छलथि ।चमेली जखन सासुर आएल तँ ओकर दुनियें बदलि गेलै ।ओकर घरबला ओकरा प्रेम नै दैत छलै ।खाइ-पिबैक दिक्कत नै छलै मुदा वैवाहिक जीवन नरक बनि गेलै ।दस वर्षक बाद चमेली नैहर आएल ।बदलल स्वभाव आ उदास मोन देख माए बाजलीह "गै चमेली, एते उदास किए छें ?" चमेलीकेँ चुप्प देख माए फेर बाजलीह "अच्छे, बूझि गेलियै ।एते वर्ष बितलाक बादो बाल-बच्चा नै भेलौं तेँ उदास छें ।चल काल्हिये कोनौ बाबासँ झड़बा दै छियै ।भूत-प्रेत भागि जेतौ ।"
माएक बात सूनि चमेली कानैत बाजलीह "गै, हमरा लेल भूत-प्रेत तँ हमर बापे छै ।हमरा कोनो ओझाक जरूरति नै छै ।हमर बापकेँ कहि दहीं जे फेर मरदाबाक कनपटीपर बन्दूक राखि बच्चा जनमेबाक सबटा जोगार अपना सामने कऽ दै ।जखन हमरा डूबाइये देलनि तखन लाज केहन ?"
बेटीक बात सूनि माएकेँ किछु नै फुरा रहल छलै ।

अमित मिश्र

माँछक महिमा


साँझक छह बजे पशीनासँ तरबतर सात कोस साईकिल चला कए अ०बाबू अपन बेटीक ओहिठाम पहुँचला हुनक साईकिल केर घंटीक अबाज सुनि नाना-नाना करैत हुनक सात बर्खक नैत हुनका लग दौरल आएल अपन पोताक किलोल सुनि अ०बाबूक समधि सेहो आँगनसँ निकैल दलानपर एला दुनू समधि आमने सामने-
“नमस्कार समधि।”
“नमस्कार नमस्कार सभ कुशल मंगल ने।”
“हाँ हाँ सभ कुशल मंगल।”
अपन नैतकेँ झोरा दैत, “लिअ बौआ आँगनमे राखि आबू, माँछ छैक।”
“अहुँ समधि ई की सभ करए लगलहुँ।”
“एहिमे करब की भेलै, आबै काल नहैरमे मराइत देखलिऐ हिलसगर देख मोन भए गेल, धिया-पुता लेल लए लेलहुँ।”   
“मुदा समधि अपने तँ बैसनब छी तहन धियापुताक सिनेह खातीर एतेक कष्ट।”
“एहिमे कष्टक कोन गप्प, हम नहि खाए छी एकर माने ई नहि ने जे ई खराप छै। हम नहि खाए छी अर्थात तियाग केने छी, जे खाए छथि हुनकर नीक बेजएक धियान तँ रखहे परत। ओनाहितो अपन मिथिलाक माँछक महिमासँ के अनभिक छथि।”  

Thursday, August 1, 2013

सादा कागज

जाँत पीसैत दूटा सासु एक दोसरसँ-
“यै बहिन हिनकर पुतहु तँ हीरा छनि हीरा। आइ दू बर्खमे किएक एक्को बेर ऊँच बोलो सुनने हेबनि।”
“हिनको पुतहु कोनो कम नहि छनि, एतेक काजुल पूरा घरकेँ सम्हारि लेलकनि।”
“धूर जाउत ! हिनका तँ सभ अपने जकाँ लगैत छनि ।”
“हाँ, ओनाहितो जखन एकटा नव कनियाँ अपन माए-बाप, घर-घराड़ी छोरि कए एकटा नव घर आबैत छै तखन ओ  सादा कागज जकाँ होएत छैक, जाहिपर जे रंग लगेबै ओहे रंग लगतै। आगू रंग लगाबै बलाक इक्षा।”  

गृहस्थ धर्म



      
“ई की बाबू ? जे कियो मांगै लेल अबै छै सभकेँ अहाँ दस बीस रुपैया दऽ दए छीऐ आब ओ जमाना नहि रहलै, चोर उच्चका सभ एनाहिते मांगैकेँ एकटा धन्धा बना लेलकैए। नव-नव बहाना बना कए मांगै लेल आबि जाइ छै।”
“गृहस्थ धर्मक पालन करैत केएकरो खाली हाथ आपस नहि जेए देबा चाही। के जनैए निनानबेटा झूठमे एकटा सत्यो हुए, निनानबेटा झूठ बाजि कए पाइ लए जेए से नीक मुदा एकटा जरूरतमंदकेँ नहि भेटैसे ठीक नहि। बांकी भगवती देखै छथिन।”           

भगवान नहि देखैत हेथिन ?



             
“बाबू, भगवान तँ सभठाम होइत छथिन ने ?”   
“हाँ बेटा।”
“ओ तँ सभ किछु देखैत छथिन ?”
“हाँ बेटा हाँ।”
“तहन अहाँ जे ई दूधमे पानि मिलाबै छियैक की ओ नहि देखैत हेथिन ?”

मजबूरी




एकटा समाचार –
फलां नियालयकेँ फलां जजक कथन, “एकटा पुरुख आ एकटा स्त्री जँ कोनो कोठरीमे बन्द कए देल जेए तँ हुनक दुनूक बिच मात्र सेक्स चर्चा अथवा सेक्स होएत।”
एहि समाचारपर बहुतो रास तथाकथित समाजक ठेकदार सभक विरोध आएल मुदा सत्यकेँ हाजिर नाजिर राखि करेजापर हाथ रखला बाद कियो सत्य कहे, एसगर कोठरीमे की रस्तो चलैत एक दोसर बिपरीत लिंगक मोनमे एहने गप्प नहि अबैत छैक मुदा बाहर समाजक लज्या आ मजबूरी, अन्दर कोठरीमे स्वेक्षा आजादी। विशेष कए पुरखक मोनमे।

इजोरिया

129. इजोरिया

मौलाएल कमल सन मुँह बनेने राजू चुमाउन लेल बैसल ।पएरकेँ घिसियाबैत भारी मोनसँ वियाह करबाक लेल चलल ।ओतऽ लटकल मुँह देख हास-परिहासक कारण बनल ।असलमे ओ ई वियाहसँ खुश नै छल ।कारण जे लड़कीक रंग श्यामला छलै ।राजू दूध सन गोर दप-दप करैत कनियाँ चाहैत छल जकरा घोघ उठाबिते अन्हारमे इजोरिया चमकि उठै ।समाजक एहन दखल पड़लै जे ओकर सबटा सपना टूटि गेलै ।कोहबरमे राजूक लटकल मुँह देख नव कनियाँ बजलीह "अहाक उदासीक कारण हमरा बूझल अछि ।एकटा बात कहू, लोक रंगसँ प्रेम करैत अछि वा लोकसँ ?हम कारी छी मुदा अहाँक छी ।आब चामक रंग तँ ककरो वशक गप नै छै ।हमरा अहाँक रंग, धन आ जातिसँ कोनो मतलब नै अछि ।हम सदिखन अहाँसँ प्रेम करब मुदा अहाँक प्रेमक बीच नै आएब ।हम अहाँक खुशीसँ प्रेम करैत छी तेँ अहाँ सदिखन खुश रहू, मुस्कैत रहू ।हम शिष्ट रहब तेँ अहूँ शिष्टाचारमे रहब, एते आशा अछि ।"
कनियाँक मीठ, ज्ञान आ चातुर्य भरल बात सूनि राजूकेँ लागलै जे कोहबरमे पाड़ल बाँसक दोगसँ इजोरिया छिटकि रहल छै ।

अमित मिश्र