Thursday, April 12, 2012

शिष्यकेँ शिक्षेटा नै परीक्षो :: जगदीश मण्‍डल्‍ा


शिष्यकेँ शिक्षेटा नै परीक्षो

गुरुकुलमे ई अनिवार्य नै जे नीक -आलीशान- मकानक बन्द कोठरियेटा मे शिक्षा देल जाए। अनिवार्य ई जे छात्रक मनः स्थितिक अनुरूप प्रकृतिक पाठशालामे बेवहारिक शिक्षा भेटै। जइसँ व्यक्तित्वमे प्रखरताक समावेश संवर्धन भऽ सकए।
महर्षि जरत्कारुक गुरुकुलमे छात्र विद्रुध प्रवेश पौलक। किछुए दिनक उपरान्त विद्रुधक प्रतिभासँ गुरु जरत्कारु प्रभावित होइत कहलखिन- बाउ, पौरुषक -पुरुषत्व- परीक्षामे उतीर्ण भेलेपर कियो बरिष्ठ -महान- बनि सकैत अछि। अहाँ पराक्रमक संग-संग पोथियो पढ़ू।
महर्षिक परामर्शसँ सहमत होइत विद्रुध कहलकनि- अपनेक जे आदेश हुअए, तैयार छी।
विद्रुध कऽ एक सए गाए प्रभुदारण्यमे चरबैक आदेश दैत कहलखिन- जखन हजार गाए भऽ जाए तखन घुमि‍ कऽ आएब।
पोथी सभ सेहो लऽ लेलक।
सए गाएकेँ हजार गाए बनबैमे विद्रुधकेँ बारह बर्ख समए लगल। बच्चो सभ पुष्ट। किएक तँ कोनो बच्चाकेँ दूध पीबैमे कोताही नै करैत‍।
ऐ बारह बर्खक बीच विद्रुध अनेको साधक, विद्वानसँ सम्पर्क बना सीखबो केलक आ रास्ताक बाधासँ सेहो निपटल। जइसँ ओकर प्रतिभामे आरो चारि चान लगि गेलै घुमि‍ कऽ एलापर चेहरासँ ब्रह्मतेज टपकैत। किएक तँ अपन बुइधिक प्रयोगसँ पढ़बो केलक आ बुझबो आ सीखबो केलक।
विद्रुधक मेहनति‍ आ साहस देखि‍ जरत्कारु हृदैसँ आनन्दित होइत अपन आश्रमक भार दऽ नमहर काज करए अपने चलि गेलाह।

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