Thursday, April 12, 2012

पहिने तप तखन ढलिहेँ :: जगदीश मण्‍डल


पहिने तप तखन ढलिहेँ

एक दिन एकटा कुम्हार माटिक ढेरी लग बैस, माटिसँ लऽ कऽ पकाओल बर्तन धरिक विचार मने-मन करैत छल। कुम्हारकेँ चिन्तामग्न देखि‍ माटि कहलकै- भाय, तोँ हमर एहेन बर्तन बनाबह जइमे शीतल पानि भरि कऽ राखी आ प्रियतमक हृदए जुरा सकी।
माटिक सवाल सुनि, कनी-काल गुम्म भऽ कुम्हार माटिकेँ कहलक- तोहर वि‍चार तखने संभव भऽ सकै छौ जखन तोरा कोदारिक चोट, गदहापर चढ़ैक, मुंगरीक मारि खाइक, पएरसँ गंजन सहैक आ आगिमे पकैक साहस हेतौ। ऐसँ कम गंजन भेने पवित्र पात्र नै बनि सकै छेँ।

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