पहिने तप तखन ढलिहेँ
एक दिन एकटा कुम्हार माटिक ढेरी लग बैस, माटिसँ लऽ कऽ
पकाओल बर्तन धरिक विचार मने-मन करैत छल। कुम्हारकेँ चिन्तामग्न देखि माटि कहलकै- “भाय, तोँ हमर एहेन बर्तन बनाबह
जइमे शीतल पानि भरि कऽ राखी आ प्रियतमक हृदए जुरा सकी।”
माटिक सवाल
सुनि, कनी-काल गुम्म भऽ कुम्हार माटिकेँ कहलक- “तोहर विचार
तखने संभव भऽ सकै छौ जखन तोरा
कोदारिक चोट, गदहापर चढ़ैक, मुंगरीक मारि खाइक, पएरसँ गंजन सहैक आ आगिमे पकैक साहस हेतौ।
ऐसँ कम गंजन भेने पवित्र पात्र नै बनि सकै छेँ।”
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